Tuesday 11 October 2022

श्री महाकाल लोक : आध्यात्मिकता और आधुनिकता का संगम



कुछ लोगों को यह धन का अपव्यय लगता होगा | लेकिन वाराणसी में विश्वनाथ कारीडोर के बाद म.प्र के उज्जैन में स्थित महाकाल मदिर के समूचे परिसर को सुविकसित कर जिस श्री महाकाल लोक का आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकार्पण कर रहे हैं उसके दीर्घकालिक लाभों से कोई भी समझदार व्यक्ति इंकार नहीं कर सकता | स्मरणीय है गुजरात में सरदार सरोवर बाँध के पास जब सरदार वल्लभभाई पटेल की विशाल प्रतिमा बनवाने का फैसला हुआ था तब उसे भी धन की बर्बादी बताकर उँगलियाँ उठाई गईं थीं | दुनिया की सबसे ऊंची इस मूर्ति के निर्माण की योजना मुख्यमंत्री  रहते हुए श्री  मोदी ने बनाई थी और उसका लोकार्पण प्रधानमंत्री बनकर किया | बीते कुछ सालों में ही उस स्थल पर रिकॉर्ड पर्यटक आ चुके हैं जिसके  कारण उस समूचे इलाके में आर्थिक विकास की गति त्तेज हो गयी | इसी तरह वाराणसी में विश्वनाथ कारीडोर परियोजना का अनेक स्थानीय लोगों ने भी विरोध किया | उनका कहना रहा कि उसकी वजह से काशी का मूल स्वरूप नष्ट हो जाएगा | लेकिन श्री मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र में गंगा घाटों के विकास से जो शुरुआत की उसका चरमोत्कर्ष विश्वनाथ परिसर के लोकार्पण के तौर पर जब सामने आया तो उसने विदेशों में रह रहे हिन्दुओं का ध्यान तो खींचा ही , गैर हिन्दुओं के मन में भी उत्सुकता जाग्रत की | हालाँकि वाराणसी सनातनी श्रद्धालुओं के साथ देशी – विदेशी पर्यटकों को हमेशा से आकर्षित करता रहा है | उसके  उपनगरीय क्षेत्र सारनाथ में दुनिया भर से बौद्ध धर्मावलम्बी आते हैं | उस दृष्टि से विश्वनाथ मंदिर और उसके निकटवर्ती क्षेत्र का कायाकल्प निश्चित तौर पर दूरंदेशी भरा फैसला था | उस प्रकल्प के पूर्ण हो जाने के बाद वाराणसी में आने वाले श्रृद्धालुओं की संख्या में जबरदस्त वृद्धि होना इसकी सार्थकता का प्रमाण है | इस वजह से वहां पर्यटन उद्योग के साथ ही व्यापार - व्यवसाय में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है | इस अनुभव के बाद उज्जैन स्थित ऐतिहासिक महाकाल मंदिर परिसर के साथ ही उससे जुड़े अन्य धार्मिक स्थलों का सुनियोजित विकास कर जिस श्री महाकाल लोक का निर्माण किया गया है वह निश्चित तौर पर वहां भी वाराणसी जैसा उत्साहजनक वातावरण उत्पन्न करने में सहायक होगा | स्मरणीय है उज्जैन सनातन धर्म का प्राचीनतम केंद्र रहा है | यहाँ 12 साल बाद  सिंहस्थ नामक कुम्भ मेला भरता है | भगवान श्रीकृष्ण ने इसी नगरी में सांदीपनि गुरु के आश्रम में शिक्षा ग्रहण की थी | वाराणसी , मथुरा और अयोध्या की तरह उज्जैन को भी विश्व की प्राचीनतम नगरियों में माना जाता है | भगवान शंकर यहाँ महाकाल के तौर पर प्रतिष्ठित हैं | इस ज्योतिर्लिंग के दर्शनार्थ प्रतिदिन हजारों लोग आते हैं | यहाँ की भस्म आरती का अनुभव तो बेहद विलक्षण होता है | उस दृष्टि से महाकाल मंदिर परिसर में स्थानाभाव के कारण लगातार बढ़ती जा रही श्रृद्धालुओं की संख्या के मद्देनजर व्यवस्था नहीं हो पा रही थी | इसके अलावा उपेक्षित पड़े अन्य धार्मिक स्थलों तक श्रृद्धालु नहीं जा पाते थे और जो जाते भी वे वहां की दुरावस्था देखकर दुखी होते थे |  श्री महाकाल लोक के लोकार्पण के बाद अब उज्जैन विश्व भर में वाराणसी की तरह ही आकर्षण का नया केंद्र बनेगा , ये उम्मीद गलत नहीं है | इस बारे में ये  भी शोचनीय है कि जिन धार्मिक केन्द्रों में रोजाना हजारों श्रृद्धालु आते हों  और विशेष अवसरों पर ये संख्या लाखों में चली जाती है उनमें समय के साथ सुविधाओं के विकास और सौन्दर्यीकरण पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया ? देश के जिन  प्रमुख धार्मिक स्थलों में यात्रियों अथवा पर्यटकों के लिए समुचित व्यवस्थाएं समय के साथ विकसित की गईं उनके प्रति आकर्षण भी बढ़ा है | इसके  साथ ही किसी भी धार्मिक या ऐतिहासिक स्थल पर आने वाले को  उसके इतिहास के बारे में पर्याप्त जानकारी भी  मिलनी चाहिए | विशेष रूप से विदेशी पर्यटकों के अलावा भी अनेक ऐसे लोग होते हैं जो धार्मिक आस्था के साथ ही उस स्थल के बारे में जो विस्तृत और प्रामाणिक जानकारी चाहते हैं वह  वहां लगे किसी सूचना फलक के सिवाय और कहीं नहीं मिलती | श्री महाकाल लोक के बारे में जो अधिकृत जानकारी आई है उसके अनुसार  समूचे परिसर में इस तीर्थ से जुड़ी ऐतिहासिक और पौराणिक जानकारी मूर्तियों , चित्रों  और साहित्य के रूप में आगंतुकों को सुलभ होगी | जो लोग धार्मिक आस्था न रखते हों वे भी उज्जैन की प्राचीनता के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं | दुनिया भर में भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक परम्पराओं पर शोध कार्य हो रहे हैं | ज्योतिर्लिंगों के अलावा देश में जितनी भी शक्ति पीठ हैं वे सब पूरी दुनिया को आकर्षित करती रही हैं | उस दृष्टि से उन्हें महज धार्मिक केंद्र तक सीमित न रखते हुए यदि पूरी तरह विकसित करते हुए उनके  इतिहास की विधिवत जानकारी का दस्तावेज आने वालों को मिल सके  तो  भारत में नये किस्म का पर्यटन विकसित किया जा सकता है | सबसे बड़ी बात ये है कि सनातन धर्म के जो  सबसे प्रमुख आस्था केंद्र हैं उनमें सामान्य स्तर की सुविधाएँ होने से वहां आने वाले श्रृद्धालु भी कटु अनुभव लेकर लौटते हैं | दुनिया के जितने भी विकसित देश हैं उन्होंने अपने धार्मिक स्थलों को बेहद खूबसूरत बनाकर दूसरे धर्मों में विश्वास रखने वालों को वहां आने प्रेरित किया है | उस लिहाज से वाराणसी और उज्जैन में क्रमशः विश्वनाथ कारीडोर  और श्री महाकाल परिसर का सौन्दर्यीकरण करते हुए बिखरे पड़े पौराणिक महत्त्व के स्थलों को एक ही इकाई के रूप में परिवर्तित करना सराहनीय है | बेशक ऐसे प्रकल्पों पर अरबों का खर्च  होता है लेकिन इसकी वजह से सम्बंधित स्थान पर आने वालों की संख्या बढ़ने से न सिर्फ होटल और टैक्सी व्यवसायी  अपितु स्थानीय दुकानदार भी अच्छी खासी कमाई करते हैं | इन्टरनेट के कारण आजकल पर्यटन स्थलों की जानकारी आसानी से दुनिया में कहीं  भी बैठे व्यक्ति को मिल जाती है |  ट्रेवलिंग एजेंसी का कारोबार भी इसीलिये बढ़ता  जा रहा है | लेकिन  पर्याप्त ध्यान नहीं दिए जाने से दक्षिण एशिया के छोटे - छोटे देशों से भी  कम पर्यटक हमारे  देश में आते हैं | सरदार पटेल की मूर्ति , विश्वनाथ कारीडोर और उसके बाद श्री महाकाल लोक जैसे स्थल नए भारत की तस्वीर पूरी दुनिया के सामने पेश करने में सहायक होंगे , इसमें शक नहीं है | म.प्र को इस वर्ष सबसे स्वच्छ प्रदेश होने के साथ पर्यटन हेतु भी राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिला है | श्री महाकाल लोक के लोकार्पण के बाद प्रदेश में आने वाले सैलानियों की संख्या में और वृद्धि होना अवश्याम्भावी है | केंद्र और राज्य दोनों की सरकारें इस उपलब्धि के लिए अभिनन्दन की हकदार हैं |

-रवीन्द्र वाजपेयी  

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