Monday 24 October 2022

सुख – समृद्धि की कामना का अधिकार सभी को है



 दुनिया जब अर्थव्यवस्था के बारे में जानती भी नहीं थी तब से भारत में दीपावली का त्यौहार मनाया जा रहा है | कालान्तर में इसके साथ लगातार पौराणिक प्रसंग जुड़ते चले गए | न सिर्फ सनातन धर्म के अनुयायियों अपितु जैन , बौद्ध , सिख सभी इस पर्व पर हर्षोल्लास से भर उठते हैं | इस्लाम को मानने वाले कुछ व्यवसायी भी दीपावली अपने ढंग से मनाते हैं | ये कहना भी गलत न होगा कि दीपावली भारत का सबसे बड़ा लोक महोत्सव है | इसका प्रमाण ये है कि पूरे विश्व में फैले भारतवंशी इसका आयोजन पूरे उत्साह और उमंग से करते हैं | अब  तो अमेरिका , कैनेडा और ब्रिटेन तक में सरकारी तौर पर भी दीपावली पर जलसा होने लगा है | इसका कारण वहां भारतीयों की बढ़ती संख्या ही नहीं बल्कि शैक्षणिक , आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में भारतीय मूल के लोगों की प्रभावशाली उपस्थिति है | वैसे अन्य भारतीय तीज – त्यौहारों की तरह दीपावली भी कृषि आधारित पर्व ही है | वर्षा ऋतु की विदाई के बाद नई फसल आते ही आर्थिक और धार्मिक गतिविधियाँ शुरू होने के साथ शुरू हो जाता है शीतकाल  जिसमें रबी फसल की तैयारी होती है | इस प्रकार दीपावली न सिर्फ एक धार्मिक बल्कि व्यापारिक महत्त्व का अवसर भी है |  इसे दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक मेला भी कह सकते हैं |  भारत की अर्थव्यवस्था आज  भी कृषि आधारित है और  दीपावली भी उसी से जुडी हुई है | अच्छी फसल से समाज के हर वर्ग को  उत्साह के साथ ही भविष्य के आर्थिक नियोजन में  मदद मिलती है | जब फसल अच्छी आती है तब शादियाँ भी खूब होती हैं जिनकी वजह से बाजार में रौनक आती है | इसीलिए दीपावली पर होने वाले व्यापार को अर्थव्यवस्था का मापदंड मानते हुए वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत इसे वणिक ( व्यवसायी )  समुदाय का त्यौहार कहा जाता है | दीपावली पर धन -  धान्य की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी की पूजा का महात्म्य भी इसी वजह से है | बावजूद इसके इस त्यौहार से जुड़ी परंपराओं में सामाजिक ढांचे का भी ध्यान रखा गया था | इसीलिए तमाम चमक – दमक के बावजूद मिट्टी का दिया और दीपावली एक दूसरे के पूरक हैं | आधुनिकता के साथ सजावट के अनेकानेक साधन विकसित होने पर भी धनकुबेरों से लेकर तो झोपड़ी में रहने वाला निर्धन भी दीपक के माध्यम से ही दीपावली मनाता है जिसके पीछे भी एक प्रतीकात्मक सोच रही है | दीपावली पर  चूंकि अमावश्या की रात होती है इसलिए दीपमालिका के माध्यम से ये प्रदर्शित किया जाता है  कि निराशा के माहौल में भी आशावान होना हमारा स्वभाव है | इस दृष्टि से यह अँधेरे में प्रकाश उत्पन्न करने रूपी पौरुष का प्रतीक पर्व है | लक्ष्मी की पूजा और आराधना  को केवल धन – संपत्ति की प्राप्ति से जोड़ना अधकचरापन है | सही मायनों में दीपावली श्रम और नैतिकता से अर्जित सम्पन्नता की प्रेरणा देती है | अमावस की अंधियारी रात को दीपों के माध्यम से आलोकित करने की परम्परा इस बात का द्योतक है कि हमारे आचरण में पारदर्शिता हो और हम ऐसा कुछ न करें जिसे छिपाने की जरूरत पड़े | इसके साथ ही ये पर्व हमारी सामाजिक व्यवस्था में निहित सामजंस्य के भाव और समतामूलक सोच का सर्वोत्तम उदाहरण है | इसीलिये भले ही यह लक्ष्मी जी को समर्पित है किन्तु सुख और समृद्धि की कामना करने का अधिकार सभी को है , ये इस त्यौहार का संदेश है | पूंजीवादी और साम्यवादी विचारधारा के विपरीत भारतीय सामाजिक व्यवस्था ऊंच – नीच और वर्ग  संघर्ष जैसे दर्शन से अलग हटकर वर्ग समन्वय को पोषित करने  वाली है | इस अवसर पर रोजगारमूलक सामाजिक ढांचे का सर्वोत्तम स्वरूप उभरकर सामने आता है | धन के साथ धान्य शब्द का संगम सांकेतिक भाषा में बहुत कुछ कह जाता है | आधुनिकता के प्रसार के कारण माटी के दिए से लेकर साज - सज्जा के सामान से बढ़ते – बढ़ते बात इलेक्ट्रानिक सामान , कार , हीरे जवाहरात तक जा पहुंची हो लेकिन सहस्त्रों साल पहले जब मुद्रा बाजार ने जन्म नहीं लिया था और वस्तु विनिमय ही लेन - देन का माध्य्म था तब भी हमारे समाज में धातु में निवेश करने का चलन होने से  हर आय वर्ग का व्यक्ति अपनी हैसियत के अनुसार पीतल , ताम्बे , कांसे , चांदी या स्वर्ण की खरीद कर सुरक्षित निवेश करता था | बाजारवादी व्यवस्था ने यद्यपि काफी कुछ बदलकर रख दिया किन्तु धातु में निवेश की प्रवृत्ति के कारण ही हमारा देश कभी सोने की चिड़िया कहलाता था | 21 वीं सदी ने यद्यपि काफी कुछ बदल डाला लेकिन आज भी बचत और संयम का जो संस्कार  हमें विरासत में मिला उसने अनगिनत झंझावातों के बावजूद भारत को संगठित और सुरक्षित रखा | सदियों  की गुलामी भी हमारे सांस्कृतिक व्यवहार को नहीं बदल सकी तो उसका बड़ा कारण हमारी पर्व परम्परा है जो हमें जड़ों से जोड़े रखती है | दीपावली इस परम्परा का शिखर है | मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों में हमारे देश की भूमिका की ओर पूरा विश्व निहार रहा है | आर्थिक मजबूती के साथ सुरक्षा के क्षेत्र में बढ़ती आत्मनिर्भरता के कारण ही भारत दुनिया की बड़ी ताकतों की कतार में शामिल हो सका है | नई पीढ़ी ने ज्ञान – विज्ञान की हर विधा में अपनी प्रतिभा प्रमाणित की है | स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद की भविष्यवाणी के अनुरूप भारत विश्व का नेतृत्व करने के आत्मविश्वास से भरा हुआ है | हालाँकि राह में बाधाएं भी हैं किन्तु आज का भारत समस्याओं के समाधान के सामर्थ्य से भरपूर है | दीपावली इस आत्मविश्वास को और सुदृढ़ बनाने का पुनीत अवसर है | आइये , अपनी उन्नति के साथ ही हम अपने देश की समृद्धि हेतु भी प्रार्थना करें क्योंकि उसी के साथ हमारा भविष्य भी जुड़ा हुआ है |

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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