Friday 21 October 2022

ब्रिटेन का संकट भारतीय मूल के लोगों की मुसीबत बन सकता है



ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने महज 45 दिन के भीतर ये कहते हुए त्यागपत्र दे दिया कि वे जिन कामों के लिये चुनी गईं थीं उनको पूरा नहीं कर सकीं इसलिए पद से हटना ही बेहतर है | उल्लेखनीय है ब्रिटेन इन दिनों महंगाई और जबरदस्त ऊर्जा संकट से जूझ रहा है | अब लेबर पार्टी के एक लाख से ज्यादा सदस्य नये प्रधानमंत्री का चयन करेंगे | दरअसल यूक्रेन संकट के बाद यूरोपीय देशों की  अर्थव्यवस्था बुरी तरह से डगमगा गई है | रूस से मिलने वाले कच्चे तेल और गैस की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होने से समूचा  महाद्वीप गंभीर ऊर्जा संकट का सामना करने मजबूर् हो गया है | अवसर का लाभ उठाते हुए तेल उत्पादक अरब देशों ने दाम बढ़ा दिए | उधर अमेरिका ने ब्याज दरों  में बदलाव करते हुए मुद्रा बाजार को हिलाकर रख दिया | जिससे डालर के दाम बढ़ते जा  रहे हैं | लेकिन  जर्मनी , फ़्रांस और इटली की तुलना में ब्रिटेन में आर्थिक हालात कुछ ज्यादा ही खराब हो गए | कुछ माह पहले बोरिस जॉनसन  की सरकार में वित्त मंत्री रहे ऋषि सुनाक ने विरोध क़ा झंडा उठाकर मंत्री पद त्यागा तब उनके साथ बड़ी संख्या में मंत्रीगण  नीतिगत विफलता को मुद्दा  बनाकर सरकार से बाहर आ गए | आख़िरकार जॉनसन को गद्दी छोड़नी पड़ी जिसके बाद पार्टी सदस्यों ने लिज ट्रस को प्रधानमंत्री चुना | हालाँकि भारतीय मूल के ऋषि सुनाक दौड़ में काफी समय तक आगे रहे लेकिन अंत में नस्लीय भेदभाव की भावना ने जोर पकड़ा और लिज सत्तासीन हो गईं | यद्यपि उनकी सरकार में भी  गृह मंत्री सहित अनेक मंत्रालयों में भारतीय मूल के लोग शामिल हुए | उनसे अपेक्षा थी कि वे कर ढांचे में बदलाव करते हुए जनता को राहत दिलवाएंगीं परन्तु वे उम्मीदों के अनुसार काम नहीं कर पा रही थीं | ये भी  लगा कि प्रधानमंत्री बनने से चूके सुनाक अपनी ह़ार से निराश नहीं हुए और लगातार लिज ट्रस की नीतिगत अक्षमता पर चोट करते रहे | दरअसल  ब्रिटेन के हालात जिस हद तक बिगड़ चुके हैं उनको मात्र 45 दिन में सुधारना असम्भव है | इस लिहाज से कह सकते हैं कि लिज ट्रस को समुचित समय नहीं मिला | लेकिन दूसरी तरफ ये भी सही है कि सत्ता में आते ही उनकी  पार्टी के भीतर ही उनका विरोध शुरू हो चुका था जिसकी अगुआई ऋषि सुनाक के साथ ही  कुछ और पूर्व मंत्री कर रहे थे | ब्रिटेन अपने लोकतंत्र के लिए जाना जाता है | उसकी संसद को दुनिया भर की संसदों की माँ कहा जाता है | अतीत में उसके उपनिवेश रहे भारत जैसे ज्यादातर देशों ने आजाद होने के बाद जो संसदीय प्रणाली अपनाई वह ब्रिटेन से ही प्रेरित है | एक समय था जब ये कहावत प्रचलित थी कि महारानी विक्टोरिया के शासन में कभी सूरज अस्त नहीं होता क्योंकि  आस्ट्रेलिया से लेकर कैरिबियन द्वीप समूह तक ब्रिटिश राज था | उन देशों का शोषण करते हुए ब्रिटेन ने अपने को मालामाल कर लिया | उद्योगों के लिए आने वाला  कच्चा माल इन्हीं देशों से आता था और वही उसके लिये बाजार बन जाते थे | लेकिन दूसरे  महायुद्ध के बाद जैसे – जैसे उपनिवेशवाद का अंत होता गया वैसे – वैसे ब्रिटेन भी भीतर से कमजोर होने लगा | उसकी मौजूदा हालत अचानक नहीं बनी | बीते सात दशक के दौरान वह हर दिन कमजोर हुआ है | यूरोप के अन्य देश आर्थिक तौर पर जिस तेजी से आगे बढ़े उसने भी उसके आभामंडल को फीका किया | बीते दो दशक में चीन और भारत  की अर्थव्यवस्था ने वैश्विक मंच पर जिस तरह अपनी उपस्थिति दर्ज कराई उसकी वजह से भी  ब्रिटेन का अर्थतंत्र काफी हद तक टूटा | सही बात तो ये है कि आज की दुनिया में ब्रिटेन कुछ देने की स्थिति में नहीं रह गया है | कभी शिक्षा और व्यापार के क्षेत्र में उसका दबदबा था | आक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विवि दुनिया भर के आकर्षण का केंद्र हुआ करते थे | दुनिया भर में ब्रिटिश कंपनियों का बोलबाला था | लेकिन 1945 के बाद से  विश्व अमेरिका प्रभावित होता चला गया | पौण्ड की जगह अमेरिकी डालर का डंका बजने लगा | ज्ञान – विज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में वह  विश्व का नेता बन बैठा | तकनीक के विकास ने उसे मालामाल कर दिया | आज अमेरिका में बसने की वैसी ही लालसा दुनिया भर के लोगों में है जैसे कभी ब्रिटेन के प्रति थी | उपनिवेशवाद के कालखंड में ब्रिटेन शासित देशों से वहां आकर बसे लोग धीरे – धीरे वहां की सामाजिक , आर्थिक  और राजनीतिक व्यवस्था पर  हावी होते चले गए जिसका सबसे बड़ा उदाहरण  ऋषि सुनाक हैं जो पिछली सरकार में वित्त मंत्री रहने के बाद प्रधानमंत्री बनते – बनते रह गये | सबसे बड़ी बात  ये हुई कि ब्रिट्रेन में सत्ता को बदलने की कुंजी अब अंग्रेजों के हाथ से निकलकर उन लोगों के पास आ चुकी है जो उसके नागरिक तो हैं लेकिन उनका मूल देश कोई और ही है | ब्रिटेन में जॉनसन सरकार का गिरना और महारानी एलिजाबेथ का निधन एक युग की समाप्ति माना जा रहा था | लिज ट्रस के इस्तीफे से वह बात सही साबित हो रही है | आर्थिक संकट से जूझते इस देश में आयी राजनीतिक अस्थिरता निश्चित रूप से वैश्विक परिस्थित्तियों का परिणाम भी  है  लेकिन  बीते कुछ वर्षों में ब्रिटेन की चमक कम होती दिखने लगी है | कोरोना संकट के दौरान वहां की स्वास्थ्य सेवाएँ जिस तरह गड़बड़ाई वह उसकी कमजोरी का प्रमाण था | कोरोना काल के बाद भारत जैसे देश की अर्थव्यवस्था ने जहां तेजी से रफ्तार पकड़ी वहीं ब्रिटेन में स्थिति और बिगड़ गयी | ऐसी स्थिति में मजबूत राजनीतिक नेतृत्व  की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है | भारत उस दृष्टि से भाग्यशाली है जबकि ब्रिटेन आर्थिक बदहाली के साथ – साथ राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है | भारत के लिए ये चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि वहां बहुत बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग बसे हुए हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा और परिश्रम से महत्वपूर्ण स्थिति बना ली है | लेकिन ब्रिटेन की आर्थिक बदहाली और उस पर राजनीतिक अस्थिरता इसी तरह बढ़ती गई तब वहां 19 वीं और 20 वीं सदी  की नस्लीय सोच दोबारा उभर सकती है और ऐसा हुआ तब उसके सबसे बड़े शिकार निश्चित रूप से भारतीय ही होंगे | इस देश में इस्लामिक उग्रवाद के पांव जिस तरह से जमते जा रहे हैं वह भी बड़े खतरे का कारण बन सकता है |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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