Monday 17 October 2022

तो भारत भी इजरायल की तरह विश्व शक्ति बन जाएगा



इसे सुखद संयोग ही कहा जायेगा कि कांग्रेस में रहकर भी पं. नेहरु के सामने हिन्दी  को राजभाषा का दर्जा दिलवाने के लिए संसद और बाहर आवाज उठाने वाले म.प्र के स्वाधीनता  संग्राम सेनानी स्व. सेठ गोविन्द दास की 127 वीं जयन्ती पर प्रदेश में हिन्दी भाषा में चिकित्सा ( मेडिकल ) शिक्षा के प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम के  तीन विषयों की पुस्तकों के हिन्दी अनुवाद का विमोचन हुआ | केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आतिथ्य में आयोजित भव्य समारोह में विमोचित इन पुस्तकों को लगभग चिकित्सकों के जिस दल ने तैयार किया वह विशेष तौर पर प्रशंसा  और अभिनंदन का पात्र है क्योंकि बीते 75 वर्ष में तकनीकी विषयों की शिक्षा यदि हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओँ में शुरू नहीं हो सकी तो उसका सबसे प्रमुख कारण पुस्तकों का अनुवाद न हो पाना ही रहा | ऐसा ही पहले न्यायपालिका में भी था किन्तु  सर्वोच्च न्यायालय के अलावा अब देश के ज्यादातर न्यायालयों में क्षेत्रीय भाषा में काम होने लगा है | लेकिन इंजीनियरिंग और मेडीकल की  शिक्षा पर पूरी तरह से अंग्रेजी का प्रभुत्व बना रहा | नई शिक्षा नीति इस बारे में काफी प्रेरणादायी है क्योंकि उसमें मातृभाषा में शिक्षा को  बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है | श्री शाह के हालिया बयानों का हालाँकि तमिलनाडु में विरोध हुआ लेकिन वहां के नेता भी इस बात से इंकार नहीं कर सकेंगे कि तकनीकी विषयों की शिक्षा तमिल भाषा में दिए जाने से बड़ी सख्या में ऐसे छात्र भी इंजीनियर – डाक्टर बन सकेंगे जो योग्य होने के बावजूद अंग्रेजी में कमजोर होने से इसकी पढ़ाई नहीं कर पाते | म.प्र की  शिवराज सरकार इस बात के लिए बधाई की हकदार है जिसने अंग्रेजी  माध्य्म रूपी बाधा दूर कर छिपी हुई प्रतिभाओं को उभारने की पहल की |  ये बात बिल्कुल सही है कि 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की दासता से मुक्त होने के बाद भी देश अंग्रेजी की गुलामी से आजाद नहीं हो सका | 14 अगस्त की मध्य रात्रि में संसद के केन्द्रीय कक्ष में पं. नेहरु ने अंग्रेजी में भाषण देकर उसको एक तरह से स्वीकृति दे दी | आजाद भारत में महात्मा गांधी के बाद नेहरु जी ही सर्वाधिक लोकप्रिय और सम्मानित नेता थे | यदि वे गांधी जी की तरह हिन्दी को प्राथमिकता दे देते तो देश को अंग्रेजी माध्यम में उच्च और तकनीकी  विषयों की शिक्षा की मजबूरी न झेलनी पड़ती | खैर , जब जागे तब सवेरा की तर्ज पर म.प्र सरकार ने जो कदम उठाया उसकी देखा – सीखी अगर उ.प्र , बिहार , दिल्ली , हरियाणा , झारखण्ड , हिमाचल , छत्तीसगढ़ , गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्य भी इस दिशा में आगे बढ़ें तो आगामी कुछ सालों के भीतर बड़ा सुधार होने की सम्भावना प्रबल हो जायेगी | देश की बड़ी आबादी इन्हीं प्रदेशों में रहती हैं | सबसे प्रमुख बात ये है कि इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने की बजाय नई पीढ़ी की प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का अवसर देने की कोशिश के तौर पर देखा जाना  चाहिए | म.प्र के मुख्यमंत्री ने दो दिन पहले चिकित्सकों से अनुरोध किया था कि वे अपने पर्चे पर हिन्दी का उपयोग करें | गत दिवस इस दिशा में अनेक चिकित्सकों ने जो पहल की उसका स्वागत होना चाहिए | यद्यपि सभी दवाओं का नाम हिन्दी में लिखने में कुछ समय लगेगा लेकिन यह इतना कठिन भी नहीं है जिसे न किया सके | बेहतर होगा  कि इसे  अंग्रेजी या उस माध्यम में दी जाने वाले शिक्षा का विरोध न समझा जावे | अंग्रेजी बेशक एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है | अमेरिका , ब्रिटेन , कैनेडा और ऑस्ट्रेलिया आदि में  उच्च शिक्षा हेतु जाने वाले विद्यार्थियों को इसकी अनिवार्यता महसूस होती है | जबकि जापान , फ़्रांस , जर्मनी में इससे काम नहीं चलता | दरअसल  अंग्रेजी माध्यम को लेकर एक हीन भावना अनावाश्यक रूप से हमारी मानसिकता पर लाद दी गई है | परिणामस्वरूप हिन्दी भाषी राज्यों में भी ऐसे – ऐसे विद्यालय खुल गए जिनसे पढ़कर निकले विद्यार्थी न अच्छी हिन्दी जानते हैं और न ही अंग्रेजी | इस अधकचरेपन का सबसे बड़ा नुकसान ये हुआ कि छात्रों का बड़ा वर्ग  प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में पिछड़ गया | हालाँकि संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षा में हिन्दी माध्यम को अनुमति दे दी गयी है जिसका अनुकूल असर हुआ है | इस समय प्रशासनिक सेवाओं के जो कोचिंग संस्थान देश के अनेक शहरों में चल रहे हैं उनमें से कुछ हिन्दी माध्यम में ही प्रशिक्षण देते  हैं और उनके  छात्र सफलता भी प्राप्त कर रहे हैं जिससे हिन्दी माध्यम में शिक्षित युवाओं का मनोबल भी बढ़ा है | देखने वाली बात ये है कि मेडीकल और इंजीनियरिंग की कक्षा  में भले ही शिक्षक कुछ हद तक हिन्दी का उपयोग करते हों लेकिन उनकी पुस्तकें चूंकि अंग्रेजी में ही हैं इसलिए छात्रों को परेशानी होती है | इस बारे में ये भी विचारणीय है कि आरक्षण की सुविधा प्राप्त जो विद्यार्थी इन विषयों  की पढाई करने आते है उनके लिए अंग्रेजी माध्यम और पुस्तकें बड़ी समस्या बन जाती हैं | जैसे - तैसे वे डिग्री हासिल कर लें तो भी जीवन में आगे बढ़ने के लिए उनमें पर्याप्त आत्मविश्वास का अभाव  बना रहता है | इसलिए म.प्र सरकार द्वारा की गयी शुरुआत एक बीज के अंकुरित होने जैसा है जिसे बड़ा होने में समय लगेगा | इस बारे में ये बात ध्यान रखने योग्य है कि किसी भी बड़ी यात्रा का शुभारम्भ छोटे से कदम से ही होता है | इसी तरह  विशालकाय वट वृक्ष की यात्रा भी नन्हें पौधे से ही आगे बढ़ती है | मेडिकल शिक्षा के प्रथम वर्ष की तीन पुस्तकों का हिदी अनुवाद ऐसा ही कदम है  | अनुवाद में सक्षम अनुभवी लोगों से भी अपेक्षा है कि इस दिशा में आगे आकर सहयोग दें | यदि आने वाले एक दशक के भीतर हम इस लक्ष्य तक पहुँच सके तो मानकर चलिए भारत भी इजरायल की तरह एक विश्व शक्ति बन जाएगा , जिसने सैकड़ों सालों की खानाबदोशी के बाद अपनी भाषा में ही ज्ञान – और विज्ञान की शिक्षा का प्रबंध कर लिया |

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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