Saturday 15 October 2022

तकनीकी कारण से छूटे साईंबाबा : अभियोजन पक्ष की अक्षमता उजागर



बाम्बे उच्च न्यायालय की  नागपुर पीठ ने गत दिवस एक महत्वपूर्ण फैसले में दिल्ली विवि के पूर्व प्रोफेसर जी. एन. साईंबाबा और उनके साथ पांच अन्य लोगों को निचली अदालत द्वारा दी गई आजन्म कारावास की सजा को रद्द कर दिया |  9 मई 2014 को उन सबको प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ( माओवादी ) से सम्बन्ध रखने के आरोप में पकड़ा गया था | महाराष्ट्र का गढ़चिरौली क्षेत्र नक्सल प्रभावित रहा है | वर्ष 2013 में पुलिस को प्रतिबंधित भाकपा ( माओवादी ) से जुड़े लोगों की सूची प्राप्त हुई जिसके बाद उक्त सभी को गैर कानूनी गतिविधि  रोकथाम ( यूएपीए ) के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया | मार्च 2017 में गढ़चिरौली की सत्र अदालत ने प्रोफेसर साईंबाबा और अन्य पांच को आजीवन कारावास का दंड दिया | उसके विरुद्ध अपील पर गत दिवस नागपुर पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकार को आतंकवाद के विरुद्ध दृढसंकल्प के साथ युद्ध करना चाहिए किन्तु कानून में निर्धारित प्रक्रिया का पालन भी जरूरी है | उच्च न्यायालय ने उक्त आरोपियों की सजा रद्द करने का जो कारण अपने फैसले में बताया वह अभियोजन पक्ष की  अक्षमता और लापरवाही का एक और नमूना है  | दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को ये कहते  हुए रद्द कर  दिया कि उक्त आरोपियों पर मुकदमा चलाने  के लिए यूएपीए कानून की धारा 45 (1) के तहत जरूरी अनुमति नहीं  ली गई थी | इस प्रावधान के अनुसार यह अनिवार्यता है कि अभियोजन की मंजूरी अधिनयम के तहत नियुक्त स्वतंत्र प्रधिकारी की रिपोर्ट के बाद ही दी जा सकेगी जो जाँच के दौरान पाए गए सबूतों की  स्वतंत्र समीक्षा करने में भी सक्षम है |  खंडपीठ ने ये माना कि उक्त प्रक्रिया का समुचित पालन नहीं किए जाने से अभियोजन की समूची कार्रवाई चूंकि नियम विरुद्ध थी , अतः निचली  अदालत द्वारा प्रोफेसर साईबाबा और अन्य पांचो आरोपियों को दी गयी सजा रद्द करने योग्य है और किसी अन्य प्रकरण में वे आरोपी न हों तो उन्हें तत्काल रिहा किया जावे | एनआईए और महाराष्ट्र सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिका पेश कर दी गई जिस पर आज सुनवाई होनी है |  गत दिवस ज्योंहीं नागपुर पीठ का फैसला आया त्योंही वामपंथी विचारधारा से जुड़े लोग मुखर होने लगे | उनका कहना था कि प्रोफेसर साईबाबा को जबरन फंसाया गया | उनकी पत्नी ने न्यायपालिका का आभार  भी जताया | निश्चित तौर पर किसी निरपराध व्यक्ति को चाहे वह किसी बड़े ओहदे पर हो या सामान्य हैसियत रखता हो , गलत तरीके से आजीवन कारावास जैसा कठोर दंड मिलना किसी भी सभ्य  समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकता | वामपंथी विचारधारा से प्रेरित हर व्यक्ति देश विरोधी हो ये भी जरूरी नहीं है | लेकिन  नक्सली गतिविधियों से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष तरीके से सम्बद्ध लोगों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए | ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि माओवादी या नक्सलवादी केवल जंगलों में नहीं रहते बल्कि उनकी मदद करने वाला वर्ग शहरों में रहकर काम करता है | इन्हीं  के बारे में शहरी नक्सली विशेषण उपयोग में आता है | प्रोफ़ेसर साईबाबा और उनके साथ पकड़े गए लोग माओवादियों से किस हद तक जुड़े थे ये सर्वोच्च न्यायालय ही तय करेगा लेकिन उच्च न्यायालय ने जिस आधार पर निचली अदालत द्वारा उन आरोपियों को दी गयी सजा रद्द की है उसके बाद अभियोजन पक्ष जरूर कटघरे में खड़ा हो गया है | बीते अनेक सालोँ में सैकड़ों ऐसे लोगों को संदिग्ध मानकर पकड़ा गया जो किसी सम्मानित पद पर कार्यरत थे | जाँच  एजेंसियों ने उनके विरूद्ध प्रकरण दर्ज किये लेकिन दंड पाने वालों की कम  संख्या अभियोजन पक्ष की लचर कार्यप्रणाली और अक्षमता को  उजागर करने के लिये पर्याप्त है | इसी वजह से गंभीर अपराधों के आरोप में पकड़े गए लोग तकनीकी आधार पर छूट जाते हैं | प्रोफेसर साईबाबा के मामले में भी उच्च न्यायालय ने उन पर मुकदमा चलाये जाने के पहले पूरी की जाने वाली कार्रवाई का पालन न करने के लिए अभियोजन पक्ष को फटकारते हुए सभी को छोड़ने के आदेश दे दिए | सर्वोच्च न्यायालय ने यदि  उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी तो हो सकता है अभियोजन पक्ष अपनी गलती सुधारकर नए सिरे से मुकदमा चलाये और सभी आरोपी दोबारा पकड लिए जाएं | लेकिन स्थगन न मिला तब जरूर जाँच एजेंसियों को आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा | वैसे चाहे सीबीआई और  ईडी हो या आतंकवाद विरोधी अन्य जाँच एजेंसियां , उन सबकी सुस्त कार्यप्रणाली और सफलता का बेहद कम प्रतिशत गंभीरता के साथ विचारणीय एवं समीक्षा योग्य है | राजनीतिक दबाव के कारण भी जाँच प्रक्रिया प्रभावित होती है | इसका उदाहरण अतीत में सीबीआई द्वारा अनेक नेताओं पर चल रहे भ्रष्टाचार के मुकदमे ठन्डे बस्ते में डालने से मिला जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद फिर से खोला गया | मौजूदा केंद्र सरकार पर भी ये आरोप आये दिन लगा करता है कि वह अपने राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए जाँच एजेंसियों का बेजा उपयोग कर रही है | प्रोफेसर साईनाथ के मामले में उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के फैसले में जो कारण उल्लिखित हैं वे जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली में आमूल सुधार की ओर ध्यान  दिलाते हैं | उक्त सभी आरोपियों पर लगे आरोप बेहद गंभीर किस्म के होने के बावजूद वे जिस आसानी से बरी कर दिए गए उसकी वजह से देश के विरुद्ध षडयंत्र में रत ताकतों का मनोबल ऊंचा होता है | कभी – कभी  लगता है जाँच एजेंसियों पर काम का बोझ उनकी क्षमता से ज्यादा होने से अभियोजन प्रक्रिया में गंभीर चूक होती है जो किसी भी स्तर पर क्षम्य नहीं हो सकती | प्रोफ़ेसर साईबाबा की सजा जारी रहेगी या वे मुक्त हो जायेंगे ये कहना मुश्किल है लेकिन जाँच एजेंसियों के साथ अभियोजन के काम में लगे सरकारी अमले द्वारा की गई गलती के लिए उनको दण्डित किया जाना जरूरी है | अन्यथा  इस तरह की गलतियाँ आगे भी होती रहेंगी जिनसे जाँच और कानूनी प्रक्रिया हंसी का पात्र बनकर रह जाती  है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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