Wednesday 12 October 2022

सं.रा.संघ की हालत भारत के चुनाव आयोग जैसी हो गयी



रूस और यूक्रेन की जंग खतरनाक स्थिति में पहुँच रही है | 2014 में जब रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया बंदरगाह पर बलात कब्ज़ा किया तब विश्व जनमत ने उसकी उपेक्षा की | इससे उसकी हिम्मत और बढ़ गयी | यूक्रेन के कुछ रूसी भाषी सीमावर्ती प्रान्तों में विद्रोही गतिविधियों को राष्ट्रपति पुतिन सैन्य मदद देकर अस्थिता फैलाते  रहे | उनके विस्तारवादी रवैये से आशंकित यूक्रेन ने अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य संगठन नाटो में शामिल होने की पहल की जिससे रूस को लगा कि अमेरिका उसकी देहलीज पर आकर बैठ जाएगा | और इसी कारण उसने इस साल फरवरी में यूक्रेन पर ऐलानिया हमला कर दिया | बीते लगभग आठ माह में यूक्रेन में हजारों  नागरिक मारे जा चुके हैं जिनमें बच्चे और वृद्ध भी हैं | देश का बड़ा हिस्सा  मलबे में बदल चुका है | बिजली , सड़क , पेयजल , शिक्षा संस्थान  , अस्पताल  , परिवहन व्यवस्था  सभी रूस के हमलों में तबाही  के शिकार हो चुके हैं | लाखों  यूक्रेनी नागरिक पड़ोसी देशों में शरण लेने मजबूर हो गये | भारत के हजारों छात्र भी पढाई बीच में छोड़ घर लौट आये जिससे वहाँ के  हालात का अंदाज लगाया जा सकता है | यद्यपि शुरुआत में लगा था कि रूस की विशाल सैन्यशक्ति के सामने यूक्रेन दो – चार दिन में ही घुटने टेक देगा लेकिन उसके राष्ट्रपति जेलेंस्की ने जिस साहस का परिचय दिया वह अकल्पनीय है | युद्ध शुरू होते ही जब अमेरिका सहित उसके  समर्थक देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाकर आर्थिक नाकेबंदी की तब ये लगा था कि वह सीधे तौर पर यूक्रेन की तरफ से लड़ाई में कूद सकता है | लेकिन उसने यूक्रेन को आर्थिक और सामरिक सहायता देने का विकल्प चुना | इसी वजह से वह अभी तक रूस के सामने न सिर्फ डटा हुआ है अपितु उसके कब्जे में गये अनेक इलाके  दोबारा छीन लिए | दूसरी तरफ  रूस ने अपने कब्जे वाले चार सीमावर्ती प्रान्तों में अपनी सेना की मौजूदगी में फर्जी  जनमत संग्रह करवाकर उन्हें अपना हिस्सा बनाने का दांव चल दिया | जबकि ऐसा काम सं.रा.संघ के निरीक्षण में होना चाहिए था | दो दिन पहले यूक्रेन की राजधानी कीव पर दर्जनों मिसाइलें दागकर  पुतिन ने ये दर्शा दिया कि उनको न  विश्व जनमत की परवाह है और न  उनमें मानवता है |  जहां तक बात रूस की है तो आर्थिक प्रतिबंधों ने उसकी कमर भी तोड़ी है और इसीलिए घर में ही पुतिन को विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है | लेकिन कच्चा तेल , गैस और गेंहू के विशाल भंडारों के कारण वे यूरोप के उन देशों को झुकाने में कामयाब हो रहे हैं जो इन चीजों के लिए रूस पर निर्भर रहे हैं  | सर्दियों की आहट के साथ ही समूचा यूरोप ऊर्जा संकट से जूझने मजबूर हो चला है जिससे बचने रूस से गैस का आयात अनिवार्य है | वैसे भी इस युद्ध के पीछे पुतिन की योजना यूरोप के साथ अपने व्यापार के लिए यूक्रेन की धरती और बंदरगाहों का उपयोग करने की मजबूरी खत्म करना है | क्रीमिया बंदरगाह पर बलपूर्वक कब्ज़ा उसकी बानगी थी | यदि उसी समय सं.रा.संघ और अमेरिका सहित दुनिया के अन्य ताकतवर देश उसके विरुद्ध खड़े होते तब शायद पुतिन   यूकेन पर आक्रमण की हिम्मत  न दिखाते | ये देखते हुए कहना गलत न होगा कि विश्व में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से बना सं.रा.संघ अपनी उपयोगिता खो बैठा है | बीते महीनों में रूस के विरुद्द्ध सुरक्षा परिषद में जो भी प्रस्ताव आये वे वीटो कर दिए गए | भारत और चीन ने तो शुरुआत में ही रणनीतिक और आर्थिक मजबूरी के साथ ही वैश्विक शक्ति संतुलन की दृष्टि से तटस्थ रहने का निर्णय कर लिया था | कुछ समय बाद यूरोपीय देश भी रूस के साथ व्यापार जारी रखने मजबूर हो गए | वैसे भी  कोरोना के बाद आर्थिक गतिविधियाँ पटरी पर लौटने लगी थी | लेकिन इस युद्ध ने जबरदस्त नुकसान कर दिया | मौके का लाभ लेकर प. एशिया के तेल उत्पादक देश कच्चे तेल के दाम बढाते जा रहे हैं | भारत इसकी वजह से जबरदस्त नुकसान में है जहां अपनी जरूरत का 85 फीसदी कच्चा तेल आयात होता है | यूक्रेन से सूरजमुखी का आना बंद होने से खाद्य तेल के दाम आसमान छूने लगे हैं | सबसे बड़ी बात ये है कि जिस तरह पुतिन  परमाणु हमले की धमकी दे रहे हैं वह खतरनाक संकेत है | ऐसा वे दुनिया को महज डराने के लिए कर रहे हैं या वाकई वे उस हद तक जा सकते हैं , इसका अंदाज लगाना कठिन है क्योंकि उनके मन की थाह पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है | लेकिन इस संकट का हल नहीं कर पाने में सं.रा.संघ की विफलता या यू नकारापन बेहद चिंताजनक है | रूस की देखा देखी चीन भी ताइवान को हथियाने के लिए हमलावर रुख दिखा रहा है | दरअसल  पुतिन और  जिनपिंग जैसे  राजनेता विश्व शान्ति के लिए हमेशा से खतरा बनते आये हैं | इनसे दुनिया को बचाने के लिए ही  सं.रा.संघ की स्थापना की गई थी | लेकिन सुरक्षा परिषद में  अमेरिका , रूस , ब्रिटेन , फ़्रांस के अलावा चीन  को वीटो का जो अधिकार दे दिया गया उसकी वजह से इन देशों को विश्व जनमत की उपेक्षा करने की छूट मिल गयी | यूक्रेन संकट में रूस जिस तरह से पूरी दुनिया को ठेंगे पर रखने का दुस्साहस कर रहा है उसके बाद सं.रा.संघ की भूमिका और भविष्य पर भी विचार करना जरूरी हो गया है | उसकी मौजूदा स्थिति तो भारत के चुनाव आयोग जैसी हो गई है जिसे सम्मान तो सब देते हैं लेकिन उसकी मानता कोई नहीं क्योंकि उसकी दशा बिना दांत और नाखूनों वाले शेर जैसी है |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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