Saturday 29 October 2022

फेसबुक और ट्विटर जैसा हम अपना सोशल मीडिया क्यों नहीं बनाते



सोशल मीडिया के बेहद प्रभावशाली माध्यम ट्विटर को खरीदते ही धनकुबेर एलन मस्क ने उसके सी.ई.ओ पराग अग्रवाल और विधिक नीति प्रमुख विजया गड्डे को नौकरी से निकाल दिया | हालाँकि उनको  बतौर मुआवजा कई अरब रूपये प्राप्त होंगे | ट्विटर का सौदा अनेक महीनों से विवादों के घेरे में था | सुनने में आता रहा कि पराग इस सौदे में मस्क के लिए बाधक बने हुए थे | कारपोरेट जगत में इस तरह के अधिग्रहण मामूली बात है | उस दृष्टि से ट्विटर का मालिकाना बदलने के साथ ही दो शीर्षस्थ अधिकारियों का हटाया जाना आश्चर्यचकित नहीं करता किन्तु वे भारतीय मूल के हैं लिहाजा सोशल मीडिया में रूचि रखने वाले एक वर्ग ने इसका संज्ञान लेते हुए तरह – तरह से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की | वैसे भी बीते काफी समय से ट्विटर अनेक कारणों से चर्चाओं में बना हुआ है | मुख्य रूप से  विशिष्ट हस्तियों के फालोअरों की संख्या विवाद में रही है | देखने में आया है कि किसी चर्चित व्यक्ति के ट्विटर पर आते ही  रातों - रात उसके फालोअरों की संख्या लाखों में जा पहुँचती है | इसके अलावा फेसबुक और व्हाट्स एप की तरह ट्विटर पर भी बड़ी संख्या में फर्जी नामों की भरमार है जो विवादास्पद और आपत्त्तिजनक सामग्री प्रसारित करते हुए माहौल गंदा करने के साथ ही सौहार्द्र बिगाड़ने का काम करते हैं | ट्विटर के प्रभाव का प्रमाण ये है कि दुनिया के लगभग सभी चर्चित उद्योगपति , लेखक , पत्रकार इसके जरिये  अपने विचार प्रेषित करते हैं | फालोअरों की संख्या इनकी लोकप्रियता  का मापदंड मानी जाती  है और इसी को लेकर बड़े – बड़े खेल होते हैं | फिलहाल ट्विटर के शीर्ष पदों पर बैठे भारतीय मूल के पराग और विजया को हटाये जाने की खबर भारत में चर्चा का विषय बनी हुई है | ये भी  सुनने में आया है कि मस्क ने चीनी दबाव में आकर ये कदम उठाया है | लेकिन किसी भारतीय की ताजपोशी या उसे अपदस्थ किया जाना मुद्दा न होकर विचार इस बात का होना चाहिये कि 135 करोड़ की आबादी वाला देश जहां के इंजीनियर और तकनीशियन अमेरिका के साफ्टवेयर उद्योग की रीढ़ बन चुके हों , अपना स्वयं का सोशल मीडिया माध्यम क्यों नहीं बनाता ? हालाँकि इस कार्य में ढेर सारी तकनीकी , आर्थिक और कूटनीतिक बाधाएं भी आयेंगी किन्तु समय आ गया है जब हमें इस बारे में सोचते हुए कदम आगे बढ़ाने चाहिए | चूंकि अन्तरिक्ष विज्ञान में भारत ने काफी महारत हासिल कर ली है इसलिए योजनाबद्ध तरीके से काम किया जाये तो वह दिन दूर नहीं जब गूगल जैसा हमारा अपना सर्च इंजिन हो सकता है | उपग्रह प्रक्षेपण की क्षमता होने के कारण हम अपना संचार माध्यम विकसित करने में समर्थ हैं | सबसे बड़ी बात ये है कि सोशल मीडिया के जितने भी  माध्यम हैं उनमें भारतीयों की मौजूदगी जबरदस्त है | यही वजह है कि गूगल और फेसबुक जैसे संस्थानों ने भारतीय मूल के लोगों को अपने शीर्ष पदों पर बिठाया | ये उसी तरह है कि अनेक विदेशी चैनलों ने भारत में आने के बाद हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओँ में समाचार और मनोरंजन से जुड़े कार्यक्रम प्रसारित करना शुरू कर दिए | चुनावों में फेसबुक भारत के राजनीतिक दलों से जमकर पैसा बटोरकर उनके पक्ष में माहौल बनाने के लिए आलोचना भी झेल चुकी है | ट्विटर के मुकाबले कू नामक एक माध्यम भारत में शुरू भी हो चुका है जिसकी पहुँच और पकड़ धीरे – धीरे बढ़ती जा रही है | फेसबुक जैसा माध्यम भी यदि भारत में तैयार हो सके तो वह भी क्रांतिकारी साबित होगा | भारतीय मूल के लोग पूरी दुनिया में फैले हुए हैं | उन्हीं के कारण हमारे देश की फ़िल्में वहां प्रदर्शित होती हैं | फिल्मी  सितारों , गायकों और संगीतकारों के कार्यक्रम भी अप्रवासी भारतीय आयोजित करते हैं | वहीं साधु – महात्मा भी प्रवचन देने जाने लगे हैं | इन सबकी वजह से भारतीय सामाजिक जीवन की झलक दुनिया के हर कोने में कमोबेश मिल जाती है | ये देखते हुए भारत अपने सोशल मीडिया माध्यम प्रारंभ करे तो इसमें कोई शक नहीं है कि करोड़ों लोग उससे जुड़ जायेंगे जिससे आर्थिक दृष्टि से भी वह लाभ का सौदा रहेगा | इस बारे में विचारणीय मुद्दा ये है कि अमेरिका ही संचार माध्यमों का चौधरी क्यों बनता है ? पाठकों को याद होगा कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका से संचालित दो काल्पनिक चरित्रों को  विश्वव्यापी लोकप्रियता और विस्तार मिला | ये थे फैंटम जिसे मृत्युंजय और भूतनाथ जैसे नाम भी मिले | और दूसरा था जादूगर मेंड्रेक | धारावाहिक शैली में अख़बारों और पत्रिकाओं में इनकी कहानियां अनेक दशकों तक प्रकाशित्त होती रहीं | इसके माध्यम से अमेरिका ने अपने आपको वैश्विक शक्ति के रूप में पूरी दुनिया में स्थापित किया | इन आभासी  चरित्रों की सबसे रोचक बात  ये थी कि इनके मुख्य पात्र फैंटम और मेंड्रेक के सहयोगी अफ्रीकी  थे | इसके जरिये अमेरिका ने ये संदेश दिया कि वह गोरी – काली चमड़ी के आधार पर नस्लीय भेदभाव में विश्वास नहीं रखता | दुनिया के बाजार में पैठ बनाने में वह माध्यम मनोवैज्ञानिक रूप से काफी सफल रहा | ये भी देखने वाली बात है कि अभिव्यक्ति के सबसे सशक्त माध्यम के तौर पर लोकप्रिय माध्यम सिनेमा के सबसे बड़े केंद्र के रूप में अमेरिका में  लॉस एंजेल्स स्थित हॉलीवुड है | यहाँ दिए जाने वाले ऑस्कर अवार्ड को इस विधा में सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है | जब इन्टरनेट का आविष्कार हुआ तब बाकी देश समझ पाते  उसके पहले  ही अमेरिका ने उसे संचालित करने वाले समूचे तन्त्र को अपने नियन्त्रण में ले लिया | इसके जरिये सोशल मीडिया का विकास हुआ जिसका सहारा लेकर दुनिया भर से अरबों लोगों की निजी जानकारी अमेरिका के पास जा पहुँची जिसका उपयोग बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने कारोबार के प्रसार हेतु करती हैं | ये सब देखते हुए इस बात की जरूरत महसूस होने लगी है कि भारत भी अपने सर्च इंजिन और सोशल मीडिया माध्यमों का विकास करने की दिशा में पहल करे |  सरकार के साथ देश के दिग्गज उद्योगपतियों को भी इस चुनौती को स्वीकार करना चाहिए | विश्व की बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की दिशा में बढ़ रहे देश के पास अपना सोशल मीडिया माध्यम होना ही चाहिए क्योंकि इसका केवल सामाजिक और आर्थिक ही नहीं अपितु कूटनीतिक प्रभाव भी होता है |

-रवीन्द्र वाजपेयी 

No comments:

Post a Comment