Saturday 8 October 2022

आर्थिक मंदी : चिंता की बजाय चिंतन से निकलेगा रास्ता



अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष सहित विश्व के अनेक वित्तीय संस्थानों द्वारा इस बात की पुष्टि कर दी गयी है कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी का आगमन हो चुका  है और ये दौर 2008 की  मंदी से ज्यादा व्यापक और भयावह होगा | जो आंकड़े मुद्रा कोष ने अनुमानित किये हैं उनके अनुसार दुनिया भर में मांग घटने से उत्पादन में जो कमी आगामी सालों में आने वाली है वह तकरीबन 4 लाख करोड़ अमेरिकी डालर की होगी जो जर्मनी की कुल अर्थव्यवस्था के बराबर है | अमेरिका में तो विकास दर नकारात्मक होने के संकेत आने लगे हैं | कोरोना संकट के बाद से अब तक चीन की अर्थव्यवस्था संभल नहीं सकी है | ब्रिटेन में भी आर्थिक ढांचा गड़बड़ा रहा है | ऐसे में भारत इस स्थिति से अछूता रहेगा ये मान लेना अपने आपको धोखा देना होगा | लेकिन हमारे देश में राजनेताओं , अर्थशास्त्रियों और कुंठा का शिकार हो चुके कतिपय पत्रकारों द्वारा जिस  तरह का  निराशाजनक वातावरण बनाया जा रहा है वह देशहित में नहीं है | हालाँकि बीते कुछ समय से हमारे निर्यात में आई कमी से डालर के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं | 82 रु. से ज्यादा उसका विनिमय मूल्य निश्चित रूप से परेशानी  पैदा करने वाला है | उसकी वजह से विदेशी मुद्रा का जो भंडार लबालब था उसमें भी उल्लेखनीय गिरावट आई है | अमेरिका में बैंकों द्वारा जमा पर ब्याज दरें बढ़ा दिए जाने से भी विदेशी निवेश भारतीय पूंजी बाजार से निकल रहा है | हालाँकि दुनिया भर के  शेयर बाजार जिस तरह से लड़खड़ा रहे हैं उनकी तुलना में हमारी स्थिति बेहतर है | सबसे अच्छी बात ये  देखने में आ रही है कि बैंकिंग क्षेत्र बहुत ही अच्छा प्रदर्शन कर रहा है | कोरोना संकट के बाद उत्पन्न हालातों में अर्थव्यवस्था सुस्त हो चली थी किन्तु जैसे ही हालात सामान्य हुए उसने तेजी से वापसी की | इसका सबसे बड़ा सबूत जीएसटी के संग्रह में प्रति माह हो रही वृद्धि है | औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक भी सुधार के संकेत दे रहा है | उपभोक्ता बाजार में मांग भी लगातार ऊपर जा रही है | ऑटोमोबाइल और हाऊसिंग सेक्टर तो कोरोना पूर्व की स्थिति से बेहतर हालत में आ गये हैं | इलेक्ट्रानिक वाहनों के उत्पादन और बिक्री में जिस तरह से तेजी हो रही है वह अर्थव्यस्था में आ रहे क्रांतिकारी बदलाव की ओर इशारा करती है | हालाँकि रूपये का मूल्य गिरते जाने से कच्चे तेल के आयात का खर्च बढ़ता जा रहा है लेकिन इलेक्ट्रानिक वाहनों का उत्पादन यदि इसी तरह बढ़ा तो आने वाले वर्षों में कच्चे तेल का आयात घटाने की जिस  कार्ययोजना पर परिवहन मंत्री नितिन गडकरी कार्य कर रहे हैं वह फलीभूत हो सकती है | बहरहाल इस बारे में जो बात  सबसे ज्यादा विचारणीय है वह है अर्थव्यवस्था को लेकर नकारात्मक  वातावरण  बनाने से बचना | जिस तरह  किसी चीज के अभाव का प्रचार होते ही व्यापारी और ग्राहक दोनों जमाखोरी करने लगते हैं वैसी ही स्थिति आर्थिक संकट का ढिंढोरा पीटने पर बनती है | भारत के बारे में दुनिया के लगभग सभी वित्तीय संस्थान  रहे हैं कि वैश्विक मंदी से वह आसानी से निपटने में सक्षम है और इसके पीछे सबसे बड़ा  कारण आम भारतीय की  संयमित जीवनशैली है | भले ही जमा पर ब्याज दरें पूर्वापेक्षा बहुत कम हो चुकी हैं लेकिन उसके बाद भी आम भारतीय बचत के संस्कारों को नहीं भूला और यही हमारी  सबसे बड़ी शक्ति है | लेकिन एक वर्ग ऐसा है जो अर्थव्यवस्था को लेकर भय का वातावरण बनाने में जुटा है | हालाँकि ये मान लेना निहायत मूर्खता होगी कि दुनिया भर में आर्थिक हालात बिगड़ने का हमारी अर्थव्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन 135 करोड़ का विशाल उपभोक्ता परिवार और तेजी से विकसित घरेलू औद्योगिक ढांचे के साथ स्वदेशी का भाव भारतीय अर्थतंत्र को खतरे की स्थिति से बचाए रखने में काफी हद तक सहायक हो सकता है बशर्ते बजाय हड़बड़ाहट में फैसले करने के सार्थक चिंतन के साथ आने वाले संकट का समना करने की योजना बनाई जाए | इसके लिए सबसे पहले सरकार को अपने फ़िज़ूल अर्थात गैर उत्पादक खर्चों में कटौती करनी चाहिए | घाटे में चल रहे सार्वजनिक क्षेत्रों के उद्यमों के विनिवेश को विपक्ष द्वारा देश बेचने का नाम दिया जा रहा है लेकिन इन सफ़ेद हाथियों को खुराक देते  रहने का दुष्परिणाम झेलने के बाद ऐसा करना बहुत ही सही था | उनसे प्राप्त धन विकास कार्यों विशेष रूप से इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए उपयोग किया जावे तो आर्थिक मंदी पर प्रभावी तरीके से काबू  किया जा सकेगा | उसके साथ ही सरकार को छोटे निवेशकों को बचत के लिए  आकर्षित करने के उपाय तलाशने होंगे | हालाँकि बाजार में मांग बनाये रखने के लिए मुद्रा की तरलता बनाये रखना जरूरी है लेकिन ये भी सही है कि महंगाई के कारण उत्पन्न हालातों के मद्देनजर मुद्रास्फीति पर नियन्त्रण करने के रास्ते भी निकालने होंगे | ये तो तय है कि मंदी आ रही है और कहीं रूस - यूक्रेन युद्ध ने खतरनाक मोड़ लिया तो वैश्विक अर्थव्यवस्था में होने वाली उथल पुथल का अंदाज  लगाना और कठिन हो जाएगा | लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों युद्धरत देशों पर  दबाव बनाकर लड़ाई रुकवाने का प्रयास कर रहे हैं उससे ये उम्मीद भी बढ़ रही है कि भारत एक विश्व शक्ति के रूप में जिस तरह स्थापित हो रहा है उसके दूरगामी लाभ हमारी अर्थव्यवस्था को जरूर हासिल होंगे | लेकिन देखने  वाली बात ये भी है कि सब कुछ हमारी सोच के मुताबिक हो जाए ये  जरूरी नहीं | इसलिए बेहतर है चिंता छोड़ चिंतन का सहारा लेते हुए आर्थिक मंदी से निपटने हेतु आपातकालीन योजना बनाकर उसका ईमानदारी से पालन किया जावे जिससे आग लगने के बाद कुआ खोदने वाली विडंबना से देश बच सके | इसके साथ ही ये भी उचित होगा कि सरकार समय – समय पर आर्थिक स्थिति की सच्चाई से देश को अवगत करवाती रहे जिससे खुशफहमी और निराशा दोनों से बचा जा सके |

- रवीन्द्र वाजपेयी


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