Monday 31 October 2022

मोरबी हादसा : लापरवाही की पुनरावृत्ति रोकने का तंत्र विकसित हो



गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर बने 140 वर्ष पुराने केबल ब्रिज के टूट जाने से लगभग 150 लोगों की जान चली  गयी | नदी में अभी और शव होने की आशंका है | सैकड़ों लोग घायल हैं | बचाव कार्य जारी है | दुर्घटना का कारण पुल पर क्षमता से ज्यादा लोगों का होना बताया जा रहा है | इसको बीते 6 महीने तक मरम्मत के लिए बंद रखने के बाद चार दिन पहले ही  खोला गया था | दो करोड़ रु. खर्च कर सुधारे गये पुल पर अधिकतम 100 लोगों के जाने की स्वीकृति है लेकिन घटना के समय 500 की संख्या थी | जिस जगह दुर्घटना घटी वह पिकनिक स्थल है | रविवार  होने से भी ज्यादा भीड़ आई | 6 महीने बाद पुल के खोले जाने की वजह से भी लोगों में उत्साह था | पुल पर जाने हेतु 19 रु. टिकिट लगती है | पुल का संचालन करने वाले ठेकेदार ने क्षमता से अधिक टिकिट बेच डाले | कल ही वहां सरदार पटेल की प्रतिमा स्थापित होने के कार्यक्रम से सामान्य से अधिक जनता थी |  पुल प्रबंधन का ठेका जिस कम्पनी ने मोरबी नगर पालिका से मार्च 22 से आगामी 15 साल के लिए लिया है उसे पुल की सुरक्षा , साफ़ – सफाई , रखरखाव , स्टाफ रखने के साथ ही टिकिट लगाने का अधिकार है  | लेकिन 765 फीट लम्बे इस पुल को सुधार के बाद खोलने के पूर्व न तो तकनीकी अनापत्ति या फिटनेस प्रमाणपत्र लिया गया और न ही  उसकी भार क्षमता का प्रमाणीकरण  हुआ | इसीलिये  उक्त कम्पनी के विरुद्ध गैर इरादतन हत्या का प्रकरण दर्ज कर लिया गया | मृतकों और घायलों को  मुआवजा और सहायता राशि देने की घोषणा के साथ जाँच समिति भी गठित कर दी गई है जिसकी रिपोर्ट आने तक लोग इस दुर्घटना को भूल चुके होंगे | मृतकों के परिजन मुआवजे के साथ यदि आश्रित को सरकारी नौकरी मिल गयी तो ठन्डे होकर बैठ जायेंगे और जो घायल हैं वे मुफ्त इलाज के साथ मिलने वाली   सहायता राशि की लालच में अपना दर्द  उपेक्षित कर देंगे | स्थानीय प्रशासन जाँच के दौरान तरह – तरह के दबाव झेलेगा | जिस ठेकेदार की लापरवाही के कारण उक्त हादसा हुआ उसे भी निश्चित तौर पर शासन और प्रशासन में बैठे बड़े लोगों का संरक्षण प्राप्त रहा होगा जिससे  वह साफ बचकर निकल जायेगा | विचारणीय मुद्दा ये है कि ऐसे हादसे थोड़े – थोड़े अंतराल पर होते रहते  हैं | कभी किसी मंदिर में धक्का मुक्की के कारण लोग  मारे जाते हैं तो कभी अग्निशमन के इंतजाम न होने से बेशकीमती जानें चली जाती हैं | बिहार , असम और बंगाल में नावों में  ज्यादा सवारियां भर लेने के कारण  डूबने की घटनाएँ होती हैं | वहीं यात्री बसों में निर्धारित संख्या से अधिक लोगों को बिठाने के बाद  दुर्घटनाग्रस्त होने पर बाहर नहीं निकल पाने की वजह से बहुत सी मौतें होती हैं | इनमें से अधिकतर का कारण लापरवाही और अव्यवस्था ही होती है | यदि नियमों और अपेक्षित सावधानियों का पालन किया जावे तो इनसे काफ़ी हद तक बचा जा सकता है | उदाहरण के लिए गत दिवस मोरबी में जो पुल टूटा उसका प्रथम दृष्टया कारण क्षमता से पांच गुना ज्यादा लोगों का पुल पर होना बताया गया | पुल की चौड़ाई पांच फीट से भी कम होने से भीड़ ज्यादा होने पर और कुछ भी हो सकता था | प्रत्येक हादसे के बाद घिसापिटा सरकारी कर्मकांड होता है | राजनीति भी होने लगती है | कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगा दिया कि विधानसभा चुनाव के  मद्देनजर   उसने पुल को बिना पर्याप्त मरम्मत के ही खुलवा दिया | राहत कार्यों में भी श्रेय लेने की होड़ मचेगी | भ्रष्टाचार भी ऐसे मामलों में जरूरी तत्व होता ही है | यही वजह है कि दुर्घटना के कारणों पर पर्दा डालकर असली कसूरवारों को बचा लिया जाता है | जिस पुल पर दुर्घटना हुई उसका प्रबंधन भले ही किसी निजी कम्पनी के जिम्मे हो लेकिन स्थानीय प्रशासन और पुलिस का भी दायित्व था  कि वह भीड़ का अनुमान लगाकर समुचित निगरानी रखते | सरदार पटेल की मूर्ति का कार्यक्रम होने से वहां आम दिनों की अपेक्षा ज्यादा लोगों के आने की सम्भावना थी ही | उस अनुपात में वहां पुलिस बल होना चाहिए था ताकि पुल पर निश्चित संख्या से ज्यादा लोगों की मौजूदगी रोकी जा सकती | और यदि पुलिस के रहने के बाद भी पुल पर 100 की जगह 500 लोग जा पहुंचे तब तो ये लापरवाही का खुला सबूत है | ज़ाहिर है ये गैर इरादतन हत्या का मामला है लेकिन ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति रोके जाने का तंत्र विकसित न होना भी आपराधिक उदासीनता है | जो हुआ वह बेहद दर्दनाक और दुखद ही कहा जावेगा | जिन परिवारों के लोगों की मौत हुई उनके दुःख को पैसे या अन्य भौतिक लाभों से कम करना असंभव है | अनेक घायल लोग स्थायी रूप से दिव्यांग बनकर रह जाएँ तो आश्चर्य न होगा |  बुद्धिमत्ता इसी में है कि ऐसे हादसों को रोके जाने के प्रति गंभीरता बरती जावे | भीड़ हमारे देश की आम समस्या है | लेकिन उसका प्रबंधन ही समस्या का हल है | दशकों पहले प्रयागराज के कुम्भ में भगदड़ के कारण सैकड़ों  लोग कुचलकर मारे गये थे | उस हादसे से सबक लेकर कुम्भ का आयोजन बेहद पेशेवर तरीके से किया जाने लगा | ऐसी ही जिम्मेदारी बाकी आयोजनों में भी प्रदर्शित की जानी चाहिए | मोरबी का हादसा रोका जा सकता था यदि पुल पर  क्षमता से ज्यादा बोझ न होता | फ़िलहाल तो सभी  का ध्यान बचाव कार्य पर  है | लेकिन बाद में इस बारे में समग्र सोच के साथ आगे बढ़ना होगा | हादसे विकसित देशों में भी होते हैं | लेकिन वे उसकी पुनरावृत्ति रोकने के बारे में समुचित प्रबंध करने के साथ ही दोषियों को दण्डित करने में रहम नहीं करते | हमारे देश में भी यदि ऐसा होने लगे तो उनसे बचा जा सकता है | लेकिन उसके लिए दृढ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है |

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment