Thursday 13 October 2022

बकरीद में बचे तो .... खड़गे को किससे खतरा



 2014 के लोकसभा चुनाव में 15 लाख रूपये वाली बात का स्पष्टीकरण देते हुए भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह ने कह दिया वह तो एक जुमला था | फिर क्या था विपक्ष उनके पीछे पड़ गया और मोदी सरकार को जुमला सरकार कहकर मजाक उड़ाया जाने लगा | राजनेताओं के मुंह से निकली अनेक बातें लम्बे समय तक उनका पीछा नहीं छोड़तीं | सोशल मीडिया के प्रादुर्भाव के बाद तो पलक झपकते कोई भी बात दूर - दूर तक फ़ैल जाती है | नेताओं के साथ ये मुसीबत भी है कि वे जहाँ जाते हैं पत्रकार उनसे सवाल पूछने लगते हैं | ऐसा ही गत दिवस भोपाल में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहे मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ हुआ | चुनाव प्रचार हेतु कांग्रेस कार्यालय में प्रवास के दौरान पत्रकारों ने जब उनसे पूछा कि क्या अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी या वे प्रधानमंत्री पद हेतु कांग्रेस का चेहरा होंगे तो श्री खड़गे  ने उत्तर दिया कि बकरीद में बचेंगे तभी तो मोहर्रम में नाचेंगे | हालांकि ये कहावत बहुत प्रचलित नहीं है किन्तु इसके माध्यम से उस बकरे की पीड़ा व्यक्त की गई है जिसे बकरीद पर काटा जाने वाला हो | लेकिन उन्होंने इसका उपयोग जिस सन्दर्भ में किया उसका आश्य स्पष्ट न होने से उक्त टिप्पणी उनके लिए मुसीबत का सबब बन गई | सबसे पहले तो इस बात पर उनकी आलोचना शुरू हुई कि मुस्लिम समुदाय जिस मोहर्रम में मातम मनाता है उसमें श्री खड़गे नाचने की बात कह रहे हैं वहीं  कुछ आलोचकों का कहना है कि उन्होंने मुस्लिम धर्मावलम्बियों की भावनाओं का अपमान किया है | बवाल मचने के बाद हो सकता है वे किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो खेद है , कहकर पिंड छुड़ा लें और साथ में खुद के गैर हिन्दी भाषी होने का रक्षा कवच धारण करें किन्तु उनकी टिप्पणी के राजनीतिक निहितार्थ निकाला जाना स्वाभाविक है | इस बारे में उल्लेखनीय है कि भले ही राहुल गांधी सफाई ने ये सफाई दी हो कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष लोकतान्त्रिक तरीके से चुना जायेगा और वह रिमोट कंट्रोल से नहीं चलेगा किन्तु कांग्रेसजन ही नहीं वरन राजनीति में जरा सी भी रूचि रखने वाला जानता है कि श्री खड़गे  गांधी परिवार के प्रायोजित प्रत्याशी हैं | और इसीलिये वे जहां भी जा रहे हैं उनको जबरदस्त समर्थन और स्वागत हासिल हो रहा है | जबकि उनके प्रतिद्वंदी शशि थरूर द्वारा बौद्धिकता पर ज्यादा जोर दिए जाने से  उनके तर्क और तथ्य अनसुने किये जा रहे हैं | यहाँ तक कि जी – 23 में उनके साथ शामिल असंतुष्ट कहे जा रहे नेता भी उनके साथ खुलकर आने में संकोच कर रहे हैं | स्मरणीय है कि अशोक गहलोत द्वारा गांधी परिवार की इच्छानुसार कांग्रेस अध्यक्ष बनने से बचने की बजाय रायता फैला दिए जाने के बाद दिग्विजय सिंह  भारत जोड़ो यात्रा छोड़कर अध्यक्ष का नामांकन भरने दिल्ली आये और उनके बुलावे पर म.प्र से उनके समर्थक दिल्ली में जमा भी हो गए थे | लेकिन रातों - रात बाजी पलट गयी | राजस्थान के राजनीतिक घटनाक्रम ने कांग्रेस आलाकमान को  जिस तरह चौंकाया उसके बाद अचानक से श्री सिंह को खिसकाकर श्री खड़गे  की ताजपोशी का इंतजाम किया गया | जिस नाटकीय ढंग से वह सब हुआ  उससे ये चर्चा भी चली कि सोनिया गांधी ने राहुल गांधी के प्रत्याशी को बदल दिया | ऐसा ही राजस्थान के बारे में भी सुनने मिला कि राहुल और प्रियंका वाड्रा की इच्छा के बावजूद श्रीमती गांधी ने सचिन पायलट को गद्दी पर बिठाने की बजाय श्री  गहलोत को खुल्ल्मखुल्ला बगावत के बावजूद अभय दान दे दिया | वास्तविकता जो भी हो लेकिन एक तरफ श्री गांधी का ये कहना कि अगला अध्यक्ष रिमोट से नहीं चलेगा किन्तु दूसरी तरफ श्री खड़गे  द्वारा बकरीद में बचे तो जैसी बात कहकर ये संकेत दे दिया कि उनके भविष्य पर भी आशंकाओं के बादल मंडरा रहे हैं | अर्थात अध्यक्ष चुने जाने के बावजूद उनकी गद्दी सुरक्षित रहेगी ये पक्का नहीं है | यद्यपि वे गांधी परिवार के प्रति वे अपनी असंदिघ्ध निष्ठा का प्रदर्शन करते नहीं थक रहे | उनके विरुद्ध लड़ रहे श्री थरूर जानते हैं कि उनका विरोध केवल सांकेतिक रह गया है | श्री खड़गे के साथ पर्याप्त बहुमत होने की बात स्वीकार करने के बाद भी वे अपनी प्रचार सामग्री हर मतदाता तक पहुँचाने में लगे हैं और पत्रकार वार्ता में उन सभी मुद्दों को विस्तार से रख रहे हैं जिन्हें जी  23 गुट के नेताओं द्वारा बीते दो सालों से उठाया जाता रहा है | सही बात ये है कि उसी के कारण कांग्रेस में अध्यक्ष का चुनाव करवाया जा रहा है जिसकी विशेषता ये है कि दोनों प्रत्याशियों में गांधी परिवार का सदस्य नहीं है | बावजूद इसके श्री खड़गे स्वतंत्र होकर निर्णय ले सकेंगे इसमें हर किसी को संदेह है और वह गलत भी नहीं है | उनके द्वारा भोपाल में जिस कहावत को उद्धृत किया गया वह भले ही गलती से उनके मुंह से निकली हो लेकिन उसके जरिये उनके मन में समाया डर भी सामने आ गया | वरना पत्रकारों के सवालों का जवाब वे ये कहते हुए भी दे सकते थे कि प्रधानमंत्री के चेहरे का निर्णय समय आने पर किया जावेगा | सही मायनों में कांग्रेस वर्तमान में जिस द्वन्द से गुजर रही है वह उसकी दिशाहीनता बढ़ा रहा है | अव्वल तो पार्टी अध्यक्ष का चुनाव भारत जोड़ो यात्रा के दौरान करवाने से ध्यान भटकने वाली बात हो रही है | दूसरी तरफ राजस्थान में जिस तरह से श्री गहलोत ने गांधी परिवार के प्रति निष्ठा दिखाने के बावजूद राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ने से इंकार किया उसके कारण भी पार्टी में गांधी परिवार की वजनदारी कम हुई है |  ऐसे में श्री खड़गे  द्वारा बकरीद में  बचे तो मोहर्रम में नाचेंगे जैसी टिप्पणी कर प्रथम परिवार के लिए भी परेशानी पैदा कर दी है क्योंकि इस बात का जवाब वे नहीं दे पा रहे कि आखिर  बकरीद पर बचे जैसी बात से उनका आशय क्या था और उन्हें किससे खतरा है ?

-रवीन्द्र वाजपेयी 

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