Friday 28 October 2022

अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री की मांग एक खतरनाक विचार



दीपावली के शोर में ये मुद्दा दबकर रह गया लेकिन भारत में भी अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री की मांग उठाना बेहद गैर जिम्मेदाराना सोच है | दुर्भाग्य ये है कि यह बात कांग्रेस नेता पी. चिदम्बरम और शशि थरूर जैसे उन नेताओं ने उछाली जो विश्व के सुप्रसिद्ध संस्थानों में उच्च शिक्षा प्राप्त हैं | दोनों के पास राजनीति के अलावा लम्बा पेशेवर अनुभव है और उनकी छवि बुद्धिजीवी की है | दरअसल ब्रिटेन में ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने की खबर आते ही समूचे भारत में स्वाभाविक रूप से खुशी का अनुभव किया गया | इसके प्रमुख कारणों में पहला उनकी पत्नी का भारतीय होना और दूसरा ब्रिटेन में जन्म लेने के बावजूद हिन्दू बने रहना | यद्यपि एक तबके ने ब्रिटिश लोकतंत्र की तारीफ के पुल बांधते हुए विदेशी मूल के व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाये जाने को उसके उदारवाद का प्रतीक बताया | कुछ लोगों ने  सुनक के बहाने इस बात पर तंज भी  कसा कि ब्रिटेन ने एक विदेशी मूल के व्यक्ति को देश की सत्ता सौंपने में संकोच नहीं किया जबकि भारत में इसकी सम्भावना नजर आते ही आसमान सिर पर उठा लिया गया था | ज़ाहिर है निशाना 2004 में  सोनिया गांधी को  प्रधानमंत्री बनाये जाने के विरोध पर था | अमेरिका में कमला हैरिस के उपराष्ट्रपति बनने का जिक्र भी हुआ | लेकिन भारत में अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री बनाये जाने जैसा सुझाव ऐसे अवसर पर न सिर्फ अनावश्यक और अप्रत्याशित अपितु आपत्तिजनक भी कहा जाएगा | और इसीलिये बिना देर लगाये कांग्रेस की ओर से महामंत्री ( संचार  ) जयराम रमेश ने श्री चिदम्बरम और श्री  थरूर के बयान पर बिना नाम लिए टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत को किसी से सीखने के जरूरत नहीं है | हमारे देश में डा.जाकिर हुसैन , फखरुद्दीन अली अहमद और डा.अब्दुल कलाम के रूप में तीन मुस्लिम राष्ट्रपति और बरकतुल्ला खान तथा अब्दुल रहमान अंतुले मुख्यमंत्री रह चुके हैं | जब उनसे  संदर्भित बयान का समर्थन करने वाले विपक्ष के अन्य नेताओं के बारे में पूछा गया तब श्री रमेश ने टालते हुए कहा कि वे सिर्फ राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर बात करेंगे | चूंकि  श्री रमेश इन दिनों श्री गांधी के साथ यात्रा में  समाचार माध्यमों  से सम्पर्क का काम देख रहे हैं इसलिए ये मान लिया गया कि उनके द्वारा श्री चिदम्बरम और श्री थरूर के बयान से असहमति व्यक्त किया जाना एक तरह से कांग्रेस की अधिकृत प्रतिक्रिया थी | पार्टी के नये अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इस बारे में मौन साधे रखा | ये भी उल्लेखनीय है कि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में श्री चिदम्बरम के सांसद पुत्र कार्ति , श्री थरूर के चुनाव संयोजक थे | सही बात ये है कि भाजपा ने दोनों नेताओं के बयान पर जब ये कहते हुए हमलावर रुख अपनाया कि क्या कांग्रेस दस साल तक प्रधानमंत्री रहे डा.,मनमोहन सिंह को अल्पसंख्यक नहीं मानती तब पार्टी को लगा कि  देर की तो मामला उसके गले पड़ जाएगा और इसीलिये श्री रमेश के मार्फत फटाफट अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री वाले बयान से किनारा कर लिया गया | लेकिन तीर तो तरकश से निकल ही चुका था | कांग्रेस के दो वरिष्ट नेताओं के बयान का  जम्मू – कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा के अलावा सपा के विवादस्पद सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने भी खुलकर समर्थन कर डाला | ऐसे में कांग्रेस को लगा कि अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री का मुद्दा गुजरात और हिमाचल के चुनाव में उसके गले की फांस बन सकता है  | इसीलिए उसने उससे पल्ला झाड लिया लेकिन भाजपा ने मौके को लपकते हुए इसको मुस्लिम तुष्टीकरण से जोड़ दिया |  श्री चिदम्बरम और श्री थरूर के बयान के बाद श्री रमेश ने निश्चित रूप से कांग्रेस पार्टी को फजीहत से बचाने की कोशिश की लेकिन उनसे उनके बयान की जरूरत और मकसद के बारे में न पूछकर भाजपा को ये कहते रहने का अवसर दे दिया है कि कांग्रेस देश में मुस्लिम प्रधानमंत्री चाहती है | डा.मनमोहन सिंह को अल्पसंख्यक न मानने जैसा सवाल उठाकर भाजपा ने उक्त दोनों नेताओं को कठघरे में खड़ा करते हुए अप्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस को भी घेरने का दांव चला है | इसीलिये श्री रमेश को सामने करते हुए पार्टी ने नुकसान से बचने की कोशिश की | इस बारे में श्री चिदम्बरम और श्री थरूर जैसे नेताओं की समझ पर भी हंसी आती है | उनको इस बात का एहसास अच्छी तरह से है कि अल्पंख्यक  प्रधानमंत्री की मांग से अभिप्राय मुस्लिम ही होता है और भाजपा ऐसे किसी भी मुद्दे पर आक्रामक होने से नहीं चूकती | सवाल ये है कि उन दोनों ने अपनी पार्टी से ये मांग क्यों नहीं की कि वह आगामी लोकसभा चुनाव में किसी अल्पसंख्यक नेता को नरेंद्र मोदी की टक्कर में प्रधानमंत्री पद के  उम्मीदवार के रूप में पेश करे | दरअसल  ब्रिटेन में एक अल्पसंख्यक  के प्रधानमंत्री बनने पर भारत में भी वैसा ही किये जाने की मांग श्री मोदी पर छोड़ा गया तीर था लेकिन वह कांग्रेस की तरफ घूम गया | अब यदि कांग्रेस  ये मानती है कि श्री चिदम्बरम और श्री थरूर का बयान शरारतपूर्ण है तब उसे उन पर कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि उसकी वजह से देश के राजनीतिक माहौल में बेवजह ज़हर घोलने की कोशिश शुरू हो गयी है | प्रश्न ये भी है कि क्या कांग्रेस ने डा.जाकिर हुसैन और फखरुद्दीन अली अहमद को उनके मुसलमान होने के कारण राष्ट्रपति बनाया था ? और क्या डा. कलाम इसलिए समाज के हर तबके में लोकप्रिय हुए क्योंकि वे मुसलमान थे ?  ये भी विचारणीय है कि कहने को भले ही सिख , जैन और बौद्ध धार्मिक अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हों लेकिन वास्तविकता ये है कि भारत में केवल मुस्लिम और ईसाइयों को ही अल्पसंख्यक माना जाता है | और उस पर भी राजनीतिक तौर पर मुस्लिम समुदाय ज्यादा मुखर और आक्रामक है | इनके अलावा पारसी समुदाय  भी है जिसका भारत के आर्थिक विकास में बड़ा योगदान है लेकिन उसकी तरफ से कभी किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की अभिव्यक्ति नहीं हुई | ये देखते हुए कांग्रेस को चाहिए कि यदि वह श्री चिदम्बरम और श्री थरूर के बयान से असहमत है तो उसे इनके विरुद्ध कड़े कदम उठाने चाहिए अन्यथा ममता बैनर्जी ,  अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव के अलावा  ओवैसी जैसे नेता समाज के माहौल में ज़हर घोलने में जुट जायेंगे |

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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