Friday 7 October 2022

बढ़ती मुस्लिम आबादी यूरोपीय देशों के लिए भी सिरदर्द बनने लगी



दशहरा के दिन अपने स्थापना दिवस पर रास्वसंघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने जनसँख्या असंतुलन दूर करने के लिए आबादी नियन्त्रण के लिए प्रभावशाली कदम उठाने की बात कही थी | अपने उद्बोधन में उन्होंने विश्व के अनेक देशों का उदाहरण देते हुए उनके विघटन की वजहों में जनसँख्या असंतुलन को ही बताया था | संघ चूंकि हिंदूवादी संगठन है लिहाजा डा. भागवत के वक्तव्य को मुस्लिम विरोधी मानकर देखा जाना स्वाभाविक है | लेकिन बीते कुछ दिनों से ब्रिटेन से जो खबरें आ रही हैं उनको सुनने के बाद जनसँख्या असंतुलन के खतरों को समय रहते दूर न किया गया तो भारत में भी वैसी ही  स्थिति उत्पन्न होना सुनिश्चित है | जो आंकड़े आये हैं उनके अनुसार ब्रिटेन में अवैध रूप से घुसे अप्रवासियों में 90 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम देशों से आये थे | ये भी बताया गया है कि इंग्लिश चैनल पार कर समुद्री रास्ते से ब्रिटेन में घुसने के बाद इन मुस्लिम घुसपैठियों को उनके समुदाय के लोग अपने ठिकानों में छिपाए रखते हैं | ब्रिटेन में हुए हालिया दंगों के बाद सरकार को इस बात की चिंता सताने लगी है कि यदि मुस्लिम आबादी इसी तरह बढ़ती रही तो ब्रिटेन में जनसंख्या का असंतुलन सामाजिक सौहार्द्र को नुकसान पहुंचाएगा | भारतीय मूल की गृह मंत्री सुएना ब्रेवनमेन ने इस बारे में चिंता जताते हुए कहा है कि बीते कुछ वर्षों में ब्रिटेन में सांप्रदायिक दंगों में चिंताजनक वृद्धि हुई है जिनमें मुस्लिम आबादी की भूमिका ही ज्यादा रही है | ब्रिटेन , यूरोप के उन देशों में है जहाँ पाकिस्तान सहित ऐसे  देशों से आये मुस्लिम  बड़ी संख्या में आकर बसे हुए हैं जहाँ कभी उसका राज था | लेकिन बीते कुछ सालों में सीरिया संकट के बाद से वहां शरणार्थी  बनकर आये मुस्लिम आंतरिक सुरक्षा के साथ ही कानून व्यवस्था के लिए जिस तरह खतरा बनते जा रहे हैं उससे सुरक्षा एजेंसियां चिंता में पड़ गई हैं |  गौर् करने वाली बात ये है कि सांप्रदायिक दंगों में मुस्लिमों ने प्रमुख रूप से हिन्दू समुदाय और उनके धार्मिक स्थलों पर ही हमले किये | ईसाई समुदाय और चर्च से बचकर चलना उनकी रणनीति का हिस्सा है ताकि वे अंग्रेजों के गुस्से से बचे रहें | ब्रिटेन से लौटे अनेक भारतीयों ने इस बारे में जो बताया उससे लगता है कि आने वाले कुछ सालों के बाद ब्रिटेन में मुस्लिम समुदाय आंतरिक सुरक्षा और कानून – व्यवस्था के लिए समस्या बने बिना नहीं रहेगा | ब्रिटेन के अलावा फ्रांस  , जर्मनी , डेनमार्क आदि में भी मुस्लिम शरणार्थियों ने समूहबद्ध होकर हिंसक वारदातों को अंजाम दिया | इस्लाम के विरुद्ध टिप्पणियाँ करने वालों की नृशंस हत्या और बम विस्फोट जैसी घटनाओं के बाद ये देश अब शरणार्थियों को अपने यहाँ बसाने पर पछता रहे हैं लेकिन उन्हें निकालना  बस के बाहर हो चुका है | ब्रिटेन में मुस्लिम आबादी पहले से ही काफी है | अनेक परिवार तो पीढ़ियों से बसे हुए हैं | इस वजह से वहां के राजनीतिक ढांचे में भी उनकी मौजूदगी प्रभावशाली होती गई | राजधानी लन्दन के महापौर जैसा पद पाकिस्तानी मूल के मुस्लिम  के पास रह चुका है | 1947 के बाद ब्रिटेन की नीति पाकिस्तान परस्त होने से वहां से आये मुस्लिमों को ख़ास महत्व मिलने से मुस्लिम अप्रवासी बढ़ते गये | लेकिन बीते कुछ दशकों में अरब और अफ्रीकी देशों से भी बड़ी संख्या में मुस्लिम अप्रवासियों ने ब्रिटेन में डेरा जमा लिया | शुरुआत में तो ये सामान्य अप्रवासियों जैसे रहे लेकिन जबसे इस्लामिक आतंकवाद का फैलाव हुआ तबसे ब्रिटेन में मुस्लिम आबादी में अपने आवसीय इलाके विकसित करने की मानसिकता उत्पन्न हुई जिसका परिणाम  इनकी गोलबंदी के रूप में देखने मिला | ब्रिटेन के सभी बड़े शहरों में मुस्लिम बस्तियां जिस तरह बढ़ती जा रही हैं उसके कारण अवैध रूप से आने वाले अप्रवासियों को भूमिगत रहने की सुविधा मिल जाती है | पिछले कुछ महीनों में हुए सांप्रदायिक उत्पात के दौरान मुस्लिम  हमलावरों ने मुंह पर कपड़ा बांधकर अपनी पहिचान जिस तरह छिपाई उससे ये संदेह पुख्ता होता है कि वे अवैध रूप से वहां रह रहे हैं | यूरोपीय यूनियन के तमाम देश सीरिया संकट के समय वहां से आये शरणार्थियों के प्रति मानवीय संवेदनाओं के कारण बेहद उदार रहे | वहां की जनता ने भी इस बारे में अपनी  सरकारों पर दबाव डाला | ये भावना अमेरिका और कैनेडा तक फ़ैली | लेकिन इस बारे में चौंकाने वाली बात ये रही कि पश्चिम एशिया में युद्ध के कारण अपना देश छोड़ने मजबूर हुए शरणार्थी यूरोप के ईसाई बहुल देशों में ही क्यों गए ? इस्लाम के सबसे पवित्र केंद्र मक्का में आने वाले हज यात्रियों से करोड़ों डॉलर हर साल कमाने वाले सऊदी अरब के अलावा कच्चे तेल से मालामाल हुए संयुक्त अरब अमीरात में शामिल देशों में भी शायद ही कोई शरणार्थी आया हो | सीरिया के साथ खड़े रूस ने भी किसी को पनाह नहीं दी | ऐसे में ये शोध का विषय है कि सीरिया संकट के बाद शरणार्थियों का रेला थोक के भाव अपने पड़ोसी संपन्न अरबी देशों की बजाय यूरोप ही क्यों गया ? सवाल और भी हैं | लेकिन ब्रिटेन से आ रही ताजा खबरों के बाद मुस्लिम अप्रवासियों और अवैध घुसपैठियों के कारण वहां जनसँख्या के असंतुलन को लेकर जो चिंता गृहमंत्री ने जताई उसके बाद बड़ी बात नहीं अन्य यूरोपीय देश भी इस बारे में सचेत होकर कोई एकदम उठायें | हालाँकि जिस तरह से मुस्लिम आबादी ने इन देशों में अपनी जड़ें जमा ली हैं उन्हें देखते हुए उनको आसानी से न तो बेदखल किया जा सकेगा और न ही उनके द्वारा की जाने वाली आतंकवादी शैली की वारदातों को रोकना सम्भव रहा  | ये देखते हुए भारत को भी सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि पूरे यूरोप में जितने मुस्लिम शरणार्थी या अप्रवासी अवैध रूप से जाकर बस गये उससे कई गुना भारत में दशकों पहले आ चुके थे और वह क्रम आज भी जारी है | दुर्भाग्य से हमारे देश की राजनीति में वोट बैंक चूंकि राष्ट्रहित पर भारी पड़ जाता है लिहाजा शरणार्थी बनकर आये मुस्लिम अब मालिकाना हक मांगने लगे हैं | ऐसे में जरूरी हो गया कि पानी सिर के ऊपर आ जाने के पहले इस समस्या के ठोस हल के बारे में सोचा जाए | ब्रिटेन की कुल आबादी से कहीं ज्यादा तो भारत में बांग्लादेश से आये शरणार्थियों और उनकी औलादों की संख्या हो चुकी होगी | उसके बाद भी म्यांमार से आये रोहिंग्या मुस्लिमों को शरण देने की वकालत की जाती है | वैश्विक परिदृश्य पर निगाह डालने से लगता है कि मुस्लिम अप्रवासियों और शरणार्थियों के कारण  आबादी के असंतुलन से उत्पन्न समस्या अब वैश्विक होती जा रही है |  

- रवीन्द्र वाजपेयी

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