Saturday 22 October 2022

वीआईपी संस्कृति का विरोध : बात निकली है तो फिर ....



दिल्ली स्थित देश के सबसे बड़े सरकारी चिकित्सा केंद्र एम्स (अ.भा आयुर्विज्ञान  संस्थान ) के चिकित्सकों ने सांसदों को अति विशिष्ट व्यक्ति मानकर उनके इलाज के लिए विशेष व्यवस्था किये जाने संबंधी परिपत्र का जिस जोरदारी से विरोध करते हुए प्रबंधन को उसे वापस लेने मजबूर किया वह शुभ संकेत है | उल्लेखनीय है एम्स के निदेशक द्वारा हाल ही में ये निर्देशित किया गया था कि किसी सांसद के वहां  आने पर एक विशेष अधिकारी  उनके इलाज और देखभाल में समन्वय स्थापित करेगा जो अस्पताल का चिकित्सक ही रहेगा | सांसद  को चिकित्सक के पास ले जाने का कार्य अस्पताल प्रबन्धक करेगा और उसके लिए लैंडलाइन और मोबाइल फोन अदि की व्यवस्था हर समय रहेगी |  यही नहीं इस व्यवस्था के अंतर्गत सांसद  द्वारा भेजे गये मरीज का इलाज भी प्राथमिकता के आधार पर किया जाना था  | हालाँकि इस तरह की  व्यवस्था एम्स में अघोषित तौर पर पहले से ही लागू है | सही मायनों में इस अस्पताल की स्थापना देश की आजादी के बाद राजधानी में रहने वाले अति विशिष्ट लोगों की चिकित्सा हेतु ही की गई थी | उस समय निजी क्षेत्र के बड़े अस्पताल भी नहीं थे | कालान्तर में उक्त संस्थान अस्पताल के साथ ही चिकित्सा की शिक्षा और शोध का बड़ा केंद्र बन गया | यहाँ से शिक्षित होकर निकले चिकित्सक न सिर्फ देश अपितु विदेशों तक में अपनी सफलता के झंडे फाहरा रहे हैं } धीरे – धीरे न सिर्फ दिल्ली अपितु पूरे उत्तर भारत में एम्स सबसे बड़े चिकित्सा केंद्र के तौर पर प्रसिद्ध हो गया | सरकारी होने से यहाँ का इलाज सस्ता तो है ही लेकिन उससे भी बढ़कर वह विदेशों के किसी भी नामी  अस्पताल से कम नहीं होने के कारण पड़ोसी देशों से भी मरीज यहाँ आने लगे | इस प्रकार एम्स में भीड़ बढती गई जिसकी वजह से अच्छा इलाज होने के बावजूद जल्द इलाज करवाने की समस्या होने लगी | और यहीं से आम और खास का फर्क शुरू हुआ जो बढ़ते – बढ़ते उस स्तर तक आ गया जिसके विरोध में वहां के चिकित्सकों ने आवाज बुलंद की | इसमें दो राय नहीं है कि एम्स में चिकित्सा और चिकित्सक दोनों उच्च कोटि के हैं | लेकिन बढ़ती आबादी के मद्देनजर अकेले दिल्ली में ही ऐसे कुछ और संस्थान खुल जाएँ तो भी कम पड़ेंगे | आश्चर्य की बात है कि इस दिशा में काफी देर से विचार शुरू हुआ और वाजपेयी सरकार के समय प्रदेश की राजधानियों में एम्स खोलने की योजना बनी जिसके परिणामस्वरूप  हर प्रदेश में एम्स के स्तर का चिकित्सा संस्थान प्रारम्भ हो सका | लेकिन दूसरी तरफ ये भी  सही है कि दिल्ली का एम्स आज भी चिकित्सा क्षेत्र का सिरमौर बना हुआ है | रही बात वीआईपी संस्कृति की तो ये समस्या केवल दिल्ली ही नहीं अपितु पूरे देश में है | सांसद तो खैर बड़ी बात हैं किन्तु शासन और प्रशासन में बैठा हर ओहदेदार चाहता है कि वह जब ऐसे संस्थान में  जाए तो बाअदब - बामुलाहिजा होशियार की पुकार लगे और समूची व्यवस्था उनकी सेवा में जुट जाए | एम्स से आई ताजा खबर ने इस बारे में सोचने की जरूरत एक बार फिर पैदा कर  दी है | बतौर जनप्रतिनिधि सांसद को कुछ तो सुविधा मिलनी ही चाहिए | इसी तरह उसके जरिये आये मरीज की मदद यदि हो सके तो वह भी स्वीकार्य है | लेकिन इसके कारण आम मरीज के इलाज में कमी न हो ये देखने वाली बात है | इस बारे में ये कहना गलत नहीं होगा कि आम जनता की परेशानी या नाराजगी इस बात पर नहीं है कि किसी को विशेष  सुविधा मिले | उसे कोफ़्त तब होती है जब उसकी उपेक्षा कर किसी को महज इसलिए महत्व दिया जाता है कि वह मंत्री , सांसद , विधायक या कोई बड़ा नेता या सरकारी साहब है | और फिर किसी चिकित्सक को वीआईपी की सेवा में बतौर शिष्टाचार अधिकारी तैनात करना भी  अनुचित प्रतीत  होता है | एम्स , दिल्ली में न सिर्फ सांसदों अपितु राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री सहित अन्य अति विशिष्ट जनों का इलाज होता रहा है  | शायद यही कारण है कि आम जनता को भी इस  संस्थान की गुणवत्ता में विश्वास है | यह विश्वास बना रहे इसके लिये जरूरी है उसके इलाज को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जावे | इस बारे में ये भी गौर तलब है कि कोरोना संकट के बाद रेलवे द्वारा वरिष्ट नागरिकों आदि को मिलने वाली रियायतें बंद किये जाने के कारण आम जनता में ये मुद्दा अक्सर जनचर्चा में आता रहा है कि सांसदों की पेंशन और मुफ्त यात्राएँ बंद क्यों नहीं की जातीं ? इस तरह के और भी  सवाल उठते  रहते हैं जिनकी वजह से जनप्रतिनिधियों के प्रति ईर्ष्या और गुस्सा पैदा होता है | एम्स प्रबंधन ने अपने संदर्भित परिपत्र को वापिस लेकर बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया | भले ही सांसदों को मिल रही विशेष सुविधाएँ और वीआईपी व्यवहार पूर्ववत रहेगा लेकिन इस घटना के बाद सांसदों के मन में भी ये भावना जन्म ले सकती है कि उनको मिलने वाली प्राथमिकता अब जनता ही नहीं अपितु उन चिकित्सकों की नाराजगी का कारण भी बनने लगी है जिन्हें उनका इलाज करने का दायित्व सौंपा जाता है | बहरहाल एम्स से शुरू हुई ये मुहिम देश भर में फैलना चाहिए क्योंकि वीआईपी संस्कृति ने समाज में वर्गभेद पैदा कर  दिया है | यद्यपि अनेक नेता और अधिकारी बेहद सरल स्वभाव के होने के कारण अपने रुतबे के बेहूदे प्रदर्शन से दूर रहते हैं लेकिन उनके साथ चिपके लोग अपने आप को किसी सामंत से कम नहीं समझते | एम्स के चिकित्सकों का विरोध और प्रबंधन का कदम पीछे खींच लेना निश्चित रूप से एक बड़ा संकेत है वीआईपी संस्कृति के विरुद्ध उठ रही भावनाओं के सतह पर आने का | जिन लोगों को लोकतंत्रिक व्यवस्था में भी शासक वर्ग जैसी सुविधा और अधिकार मिले हुए हैं उनको एम्स की घटना से सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि बात निकली है तो दूर तलक जायेगी |

-रवीन्द्र वाजपेयी 


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