Tuesday 4 October 2022

इंदौर से प्रेरणा लें म.प्र के बाकी शहर : राज्य स्वच्छता सर्वेक्षण भी शुरू हो



हाल ही में 2022 के राष्ट्रीय स्वच्छता सर्वेक्षण के नतीजे आये जिनमें म.प्र के इंदौर को लगातार देश के सबसे साफ़ - सुथरे शहर का पुरस्कार तो मिला ही म.प्र को भी सबसे स्वच्छ प्रदेश चुने जाने का गौरव हासिल हुआ | ये निश्चित रूप से गौरव की बात है | शुरुआत में भोपाल ने दूसरा स्थान हासिल किया था | यद्यपि इस साल वह पीछे चला गया परन्तु अभी भी छटवें स्थान पर उसका बना रहना संतोषजनक है | प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने जिन प्रकल्पों को प्रमुखता से हाथ में लिया उनमें स्वच्छता भी है | उसकी आदत पैदा करने के लिए उन्होंने खुद भी प्रतीकात्मक तौर पर झाड़ू उठाई | यद्यपि उस मुहिम  का कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ये कहते हुए मजाक उड़ाया था कि जिन युवाओं के हाथ में काम देना था उनको प्रधानमंत्री ने झाड़ू पकड़ा दी | लेकिन विरोधी भी श्री मोदी के जिन कार्यों की प्रशंसा करते हैं उनमें शौचालय और स्वच्छता है | इसी तरह जब स्वच्छता के सर्वेक्षण को  प्रतिस्पर्धा की शक्ल दी गई तब भी उसकी व्यवहारिकता पर उंगलिया उठीं | लेकिन धीरे – धीरे यह प्रयास रंग दिखाने लगा | हालाँकि इसके साथ भी वे सभी विसंगतियां जुडी हुईं हैं जो सरकारी कार्यप्रणाली की पहिचान होती हैं | लेकिन  इस सर्वेक्षण की वजह से  न सिर्फ प्रशासन अपितु आम जनता में भी शहर को स्वच्छ रखने की मंशा पैदा हुई है | पहले सर्वेक्षण में जहां इंदौर को सबसे साफ़ शहर का दर्जा हासिल हुआ वहीं म.प्र का ही दमोह सबसे गंदे शहरों की सूची में अव्वल आया | ये निश्चित रूप से बड़ा विरोधाभास था क्योंकि उद्योग – व्यवसाय में आगे रहने और प्रदेश में  सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर होने से इंदौर में  गंदगी ज्यादा अपेक्षित थी जबकि छोटे से दमोह को उस दृष्टि से स्वच्छ होना था | लेकिन नतीजा इसके विपरीत निकलने के बाद इंदौर ने जहां अपनी बादशाहत बनाए रखी वहीं दमोह ने भी सबसे गंदे शहर की शर्मिन्दगी से उबरने में सफलता हासिल की | हालाँकि उसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता लेकिन इस सर्वेक्षण से एक बात तो हुई कि स्वच्छता भी किसी शहर के विकास का पैमाना बन गयी | कुछ दशक पहले गुजरात के औद्योगिक शहर सूरत में प्लेग महामारी फ़ैली | इसका प्रमुख कारण चूहों को माना जाता है जो कचरे के ढेर के कारण पनपते हैं | महामारी पर नियन्त्रण होने के बाद सूरत नगर निगम के आयुक्त ने शहर की साफ - सफाई को अभियान बनाया और रात के समय कचरा उठाने के साथ ही सड़कों की सफाई को प्राथमिकता दी | उस कोशिश का नतीजा बेहद उत्साहवर्धक निकला और देखते ही देखते सूरत साफ़ - सफाई के मामले में नजीर बन गया | हालाँकि उस समय तक स्वच्छता सर्वेक्षण जैसी कोई बात नहीं सोची गयी थी | हो सकता है श्री मोदी के मन में भी सूरत का उदाहरण रहा हो जिससे प्रेरित होकर उन्होंने स्वच्छता को राष्ट्रीय अभियान की शक्ल दी | बहरहाल इंदौर की जनता को भी बधाई दी जानी  चाहिए जिसने एक सरकारी अभियान को प्रभावी जन अभियान में बदल दिया | इंदौर जाने वाले बताते हैं कि वहां के लोग अपने शहर को प्राप्त हुए इस गौरव को सुरक्षित रखने हेतु बेहद सतर्क रहते हैं | बाहर से आने वालों द्वारा सड़क पर कुछ भी फेंके जाने पर ऑटो या टैक्सी चालक टोक देता है | इससे  साबित होता है कि किसी सरकारी कार्यक्रम को सफल बनाने में केवल सरकारी मशीनरी और धन ही नहीं वरन आम जनता की सक्रिय भागीदारी नितांत  आवश्यक  है | इंदौर के साथ ही मैसूर जैसे और भी शहर हैं जिनकी जनता ने स्वच्छता सर्वेक्षण को अपनी परीक्षा मानकर उसमें सफलता हासिल करने जैसा प्रयास किया | इस बारे में सिंगापुर के निर्माता कहे जाने वाले ली कुआन यी का नाम लेना प्रासंगिक होगा | ब्रिटिश गुलामी में रहा सिंगापुर दूसरे महायुद्ध में जापान के कब्जे में चला गया | बाद में अमेरिका ने इस पर भारी बमबारी कर इसे मलबे में बदल दिया | लेकिन आजादी मिलने और मलेशिया से पूरी तरह अलग होने के बाद ली कुआन यी ने इस देश के पुनर्निर्माण के लिये सबसे पहले खुद झाड़ू उठायी और उनको देखकर पूरा देश साथ खडा हो गया | कभी झुग्गियों का शहर रहा सिंगापुर आज दुनिया के सबसे स्वच्छ और विकसित देश के तौर पर जाना जाता है | मुम्बई से भी आकार में छोटे इस शहरनुमा देश में भारत से ज्यादा पर्यटक आते हैं | इस लिहाज से स्वच्छता को पुरस्कार के साथ ही संस्कार से जोड़ना समय की मांग है | वैसे भी भारतीय जीवन शैली रोजमर्रे की ज़िन्दगी में भी स्वच्छता की  पक्षधर रही है | गरीब से गरीब परिवार के घर के सामने की लिपाई - पुताई देखकर ये लग जाता था कि स्वच्छता हमारे संस्कारों का अभिन्न हिस्सा रही है | लेकिन विकास  की अंधी दौड़ के साथ शुरू हुआ शहरीकरण गंदगी की समस्या का आधार बनता गया | धीरे – धीरे ये बीमारी ग्रामीण अंचलों तक फ़ैल गई और आज शहरों में जिस तरह प्लास्टिक बिखरी दिखती है वही आलम कस्बों और गावों का है | ये कहना भी गलत नहीं होगा कि प्लास्टिक से बनी चीजों ने गरीब – अमीर के साथ ही शहर और गाँवों का भेद मिटाकर रख दिया | उस दृष्टि से स्वच्छता के लिए शुरू की गई मुहिम केवल कचरा हटाने तक सीमित न रहकर देश के विकसित और व्यवस्थित स्वरूप को दुनिया के सामने रखने का प्रयास है | राष्ट्रीय स्तर पर सबसे स्वच्छ शहर और प्रदेश का गौरव हासिल होने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  को चाहिए कि स्वच्छता सर्वेक्षण जैसा अभियान प्रादेशिक स्तर पर  भी शुरू किया जावे | ऐसा होने से राष्ट्रीय सर्वेक्षण के समय म.प्र के अनेक शहर  बेहतर  परिणाम देने में सफल साबित होंगे | स्वच्छ रहने के संस्कार का विकास होने से आम  जनता की मानसिकता में भी सकारात्मक बदलाव आये बिना नहीं रहेगा | म.प्र के लोगों  को तो स्वच्छता की सीख के लिये सिंगापुर जाने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि उनके पास तो इंदौर सबसे अच्छा उदाहरण है जिसने स्वच्छता को अपनी पहचान बना लिया है |

-रवीन्द्र वाजपेयी



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