Thursday 27 October 2022

सड़कें चमकदार ही नहीं टिकाऊ भी होनी चाहिए



राजतन्त्र के ज़माने में कुछ राजा भेस बदलकर प्रजा के हाल - चाल जानने के साथ ही ये पता लगाने की कोशिश भी किया करते थे कि वह उनके बारे में क्या राय रखती है ? कुछ शासकों के बारे में ये भी पढ़ने मिलता है कि वे रात में साधारण नागरिक बनकर घूमते हुए ये देखते थे कि उनके राज में कानून व्यवस्था चाक – चौबंद हैं या नहीं ? आशय ये कि बजाय महल में आराम की ज़िन्दगी गुजारने के वे जनता की तकलीफों का प्रत्यक्ष अवलोकन करते हुए इस बात की जाँच करते थे कि उनके मंत्री तथा अन्य दरबारी उन्हें जो जानकारी देते हैं वह सही है अथवा नहीं | शासक की लोकप्रियता केवल उसकी सम्पन्नता और सैन्यबल पर नहीं अपितु प्रजा के प्रति उसकी संवेदनशीलता और प्रशासनिक दक्षता पर निर्भर होती है | इसीलिये लोक कल्याणकारी राज्य के जो मापदंड सदियों पहले तय किये गए थे वे आज भी  प्रासंगिक हैं | ताजा सन्दर्भ म.प्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा गत दिवस राजधानी भोपाल की अधिकतर सड़कों की खस्ता हालत पर व्यक्त की गयी नाराजगी है | इस साल हुई रिकॉर्ड तोड़ बरसात ने भोपाल की सड़कों के चीथड़े उड़ाकर रख दिए है | गड्ढे और धूल से राहगीर परेशान हैं | मुख्यमंत्री ने सम्बन्धित अमले को 15 दिनों का समय  देते हुए कहा है कि वे दोबारा जब निरीक्षण करें तब तक सड़कें चकाचक हो जानी चाहिए | खबर है प्रदेश के मुखिया की नाराजगी से सरकारी मशीनरी सक्रिय हो उठी है | आज भोपाल में लोक निर्माण विभाग और नगर निगम के अधिकारियों  की बड़ी बैठक में सड़कों को दुरस्त करने की कार्ययोजना बनाई जावेगी | इस बारे में ध्यान देने वाली बात ये है कि राजधानी चाहे देश की हो या प्रदेशों की , उनकी सड़कों तथा अन्य कार्यों की गुणवत्ता अन्य शहरों की अपेक्षा बेहतर होती है | राजधानी परियोजना के अंतर्गत अतिरिक्त धन भी आवंटित होता है | और फिर सरकार का मुख्यालय होने से सारे बड़े नेताओं और नौकरशाहों का   निवास राजधानी में होने से उसका रंग - रूप निखारने के प्रयास भी निरंतर चलते रहते हैं | उस दृष्टि से भोपाल दूसरे प्रदेशों की राजधानियों की तुलना में बेहद साफ़ - सुथरा और सुविधा - संपन्न है | लेकिन हाल में विदा हुए मानसून ने बीते अनेक दशकों का रिकॉर्ड तोड़कर रख दिया | जिससे सबसे ज्यादा नुकसान सड़कों को पहुंचा | मुख्यमंत्री ने  निरीक्षण के बाद जिस सख्त लहजे में प्रशासन को फटकारा उसका असर होना स्वाभाविक है | ये मान लेना गलत नहीं होगा कि भोपाल में बैठे नौकरशाह आज से ही मुख्यमंत्री के निर्देशों का पालन करने में दिन - रात एक कर देंगे और जो समय सीमा श्री चौहान ने तय की है उसके पहले ही राजधानी की सड़कों को गड्ढा मुक्त करते हुए चमका दिया जाएगा | किसी शासक का अपने प्रशासनिक अमले पर इतना दबदबा होना उसकी मजबूत पकड़ का प्रमाण है | वैसे भी श्री चौहान लम्बे समय से मुख्यमंत्री हैं इसलिए नौकरशाही को हांकने और हड़काने की महारत उनमें होना स्वाभाविक है | बीते एक साल से उनकी शैली काफी बदली हुई है जिसे कुछ लोग उ.प्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से प्रेरित बताते हैं | लेकिन दूसरी तरफ ये भी सही है कि श्री चौहान जनता से सीधे जुड़ाव रखने की कला में बहुत अच्छी तरह पारंगत हैं | और इसीलिए उनसे ये अपेक्षा करना वाजिब है कि जो नाराजगी उन्होंने राजधानी की सड़कों को लेकर व्यक्त की वैसी ही वे पूरे प्रदेश के बारे में दिखाते हुए प्रशासन को हिदायत दें कि निर्धारित सीमा में हर जिले में युद्धस्तर पर सड़कों का सुधार कार्य किया जावे | इसके लिए अतिरिक्त धन का  आवंटन करने के अलावा ये भी ध्यान रखना होगा कि मुख्यमंत्री को खुश करने के फेर में केवल ऊपरी  रंग - रोगन न हो , अपितु टिकाऊ सड़कें बनाई  जावें | इस विषय में सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हर साल बरसात में पूरे प्रदेश की  सड़कें खराब हो जाती हैं | उनके सुधार हेतु नए बजट में धनराशि स्वीकृत होती है | काम शुरू होते - होते अप्रैल – मई का महीना आ जाता है और जून में नया मानसून आ धमकता है | इस प्रकार देखें तो आम जनता को आधे से ज्यादा साल खस्ता हाल सड़कों पर चलना होता है | जिन शहरों में स्मार्ट सिटी के नाम पर विकास कार्य हो रहे हैं उनकी दशा तो बहुत ही ख़राब है | म.प्र एक ज़माने में सड़कों के मामले में बेहद बदनाम था | दिग्विजय सिंह की सरकार के जाने के लिये खराब सड़कें भी बड़ा कारण थीं | हालाँकि भाजपा की सरकार के दौर में सड़कों की स्थिति में जबरदस्त सुधार हुआ लेकिन यहाँ के मौसम और जमीन को देखते हुए  जिस तरह की सड़कें बननी चाहिए उस ओर ध्यान न दिये जाने का दुष्परिणाम ये है कि करोड़ों रूपये की लागत से बनने वाली सड़क पहली बरसात में ही गड्ढों में बदल जाती है | इंजीनियरिंग के क्षेत्र में नई – नई तकनीक विकसित होने के बावजूद म.प्र में टिकाऊ सड़कों का निर्माण न होना अनेकानेक सवाल खड़े करता है | इसलिए श्री चौहान को चाहिए कि जिस तरह उनके  राज में म.प्र कृषि में अग्रणी बन गया उसी तरह उन्हें  सड़कों के निर्माण में गुणवत्ता पर ध्यान  देना चाहिए | ये बात वाकई गौर तलब है कि जब राजधानी भोपाल की सड़कें बरसात नहीं झेल नहीं पाईं तब तहसील और कस्बों में क्या हालत होगी ? बेहतर हो श्री चौहान प्रशासन को सख्त हिदायत दें कि 15 दिन में सड़कों की दशा सुधारने के काम में गुणवत्ता का ध्यान न दिया तो दोषी अमले पर गाज गिरे बिना नहीं रहेगी | बीते काफ़ी समय से मुख्यमंत्री की कार्यशैली में काफी बदलाव आया है | इसके कारण उन्हें सिंघम  अवतार भी कहा जा रहा है | लेकिन इस तरह के विशेषणों से आत्ममुग्ध हुए बिना उनको चाहिये कि वे म.प्र की सड़कों को इस तरह का बनवाएं जिससे उन पर खर्च होने वाला जनता का धन सार्थक हो | बरसात में सड़क खराब न हो इसके लिए जो तकनीकी सलाह लेनी हो वह ली जानी चाहिए | आईआईटी जैसे संस्थान इस बारे में उपयोगी सलाह दे  सकते हैं | चुनाव वर्ष में श्री चौहान यदि प्रदेश को गुणवता युक्त  दे सड़कें दे सकें  तो यह उनके लिए बेहतर होगा क्योंकि अगले साल बरसात के तुरंत बाद उनको विधानसभा चुनाव लड़ना होगा और तब खस्ता हाल सड़कें झटका साबित हो सकती हैं | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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