Thursday 10 November 2022

वकील का चेहरा देख फैसला देने का आरोप धोना बड़ी चुनौती



भारत के 50 वें मुख्य न्यायाधीश की शपथ लेने के बाद धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने कहा कि वे बातों से नहीं अपितु काम से भरोसा हासिल करेंगे | हालाँकि ये स्पष्ट नहीं है कि ऐसा उन्होंने अपने बारे में कहा या समूची न्यायपालिका को ध्यान में रखकर | श्री चंद्रचूड़ को बहुत ही कुशल और निडर न्यायाधीश माना जाता है | अनेक  महत्वपूर्ण फैसलों में सरकार के विरुद्ध दिए गए फैसलों से वे अपनी निष्पक्षता साबित करते रहे हैं | इसीलिये राजनीतिक क्षेत्रों में चर्चा थी कि शायद केंद्र सरकार उनकी वरिष्टता की उपेक्षा करते हुए किसी और को मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी सौंपेगी किन्तु जब अवकाश प्राप्त मुख्य  न्यायाधीश ने उनके नाम की अनुशंसा भेजी तो सरकार ने बिना देर लगाये उसे मंजूर कर लिया |   उल्लेखनीय है श्री चंद्रचूड के पिता भी देश के मुख्य न्यायाधीश रहे हैं | उनकी शिक्षा विश्व के सुप्रसिद्ध हार्वर्ड विवि में हुई  और विधि क्षेत्र का अनुभव उन्हें इस पद के योग्य साबित करने पर्याप्त है | उच्च न्यायालय में न्यायाधीश और मुख्य न्यायाधीश से देश के मुख्य न्यायाधीश बनने तक का उनका सफर अनेक चर्चित फैसलों से भरा रहा जिसमें अपने पिता द्वारा दिये  गये पुराने फैसले के विरुद्ध दिया गया निर्णय भी है | लेकिन न्यायपालिका विश्वास के जिस संकट से गुजर रही है उसे देखते हुए श्री चंद्रचूड़ को लगभग दो साल के कार्यकाल में फैसले सुनाने के अलावा न्याय को सहज , सुलभ और सस्ता बनाने के लिए साहसिक कदम उठाने होंगे | स्मरणीय है कुछ समय पहले जयपुर में हुए एक कार्यक्रम में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश की मौजूदगी में कानून मंत्री किरण रिजिजू और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने खुलकर कहा था कि बड़े वकीलों की महंगी फीस के चलते आम आदमी न्यायमंदिर की सीढ़ियाँ तक चढ़ने का साहस नहीं कर पाता | मुख्य न्यायाधीश के सामने ये कहने का दुस्साहस भी दोनों ने किया कि न्यायाधीश वकील का चेहरा देखकर फैसला सुनाते हैं | आम तौर पर इस तरह की टिप्पणियाँ सुनने में आती रही हैं  किन्तु सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के सामने देश के कानून मंत्री और एक राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा सुनाई गयी खरी – खरी बातों का समुचित स्पष्टीकरण वे नहीं दे सके जो साधारण बात नहीं थी  | और शायद श्री चंद्रचूड के लिए भी ऐसा करना कठिन होगा क्योंकि अदालत में वकालत शुरू करने से लेकर मुख्य न्यायाधीश बनने तक के दौर में उन्हें उन विसंगतियों का भली – भांति ज्ञान होगा जिनकी वजह से  न्यायपालिका के बारे में ये अवधारणा जनमानस में गहराई तक पैठ बना चुकी है कि वहां फैसले होते हैं किन्तु न्याय नहीं | यद्यपि किसी अधिवक्ता की फीस कितनी हो ये तय कर पाना कानूनन सम्भव नहीं है और न ही केंद्र सरकार द्वारा गरीबों के लिए शुरू की गयी मुफ्त इलाज जैसी सुविधा कानूनी सहायता के रूप में दिया जाना संभव होगा । लेकिन श्री चंद्रचूड अपने पिता के सान्निध्य के कारण चूंकि बचपन से ही न्यायपालिका से जुड़े माहौल में रहे इसलिए उन्हें उसमें निहित विडम्बनाओं का भी अच्छी तरह से एहसास होगा | अदालतों में लगे मुकदमों के अंबार की तुलना में  न्यायाधीशों की अपर्याप्त संख्या भी न्याय में विलम्ब का कारण है और यहीं से पक्षकार के आर्थिक शोषण और मानसिक प्रताड़ना की शुरुआत होती है | हालाँकि अनेक मामले ऐसे होते हैं जिनकी सुनवाई लंबी चलती है किन्तु जिन प्रकरणों में न्याय प्रक्रिया जल्द संपन्न की जा सकती है उनको भी जब लम्बा खींचा जाता है तब उसकी सार्थकता पर लगने वाले सवालिया निशान और गहरे हो जाते हैं | यदि जैसा उन्होंने आश्वस्त किया है श्री चंद्रचूड वाकई अपने कामों से लोगों का भरोसा जीतना चाहते हैं तो उन्हें त्वरित और सस्त्ते न्याय की व्यवस्था  करनी चाहिए | वकीलों की मोटी – मोटी फीस कम करवाना तो उनके बस में नहीं होगा किन्तु  दिग्गज वकीलों के चेहरे देखकर फैसले किये जाने जैसे आरोपों से न्यायपालिका को मुक्त करवा सकें तो ये क्रांतिकारी होगा | विशिष्ट हस्तियों के मामले में ये देखने में आया है कि नामचीन वकील के खड़े होते ही न्यायाधीश के व्यवहार में नरमी आ जाती है | एक विख्यात अभिनेता के बेटे के नशीली दवाओं के मामले में पकडे जाने पर जमानत अर्जी टलती रही लेकिन ज्योंही एक बड़े  वकील पैरवी करने आये बेटा जेल से बाहर आ गया | सलमान खान को सजा हुई तो दिल्ली से विख्यात वकील विशेष विमान से आये और उस दौरान ऊपरी अदालत जमानत देने उनका इंतजार करती बैठी रही | ऐसी अनेक बातें हैं जिन्हें यदि सुधारा जा सके तो न्यायपालिका के प्रति व्याप्त  असंतोष और अविश्वास कम किया जा सकता है | वैसे जो भी नया मुख्य  न्यायाधीश उच्च और सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त होता है वह शुरू में तो अच्छे सपने दिखाता है लेकिन कुछ समय बाद न्यायपालिका में व्याप्त अव्यवस्था के सामने उसकी  लाचारी दिखाई देने लगती है | श्री चंद्रचूड को उनके कार्यकाल में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रचलित कालेजियम प्रणाली को बदलकर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की पुनर्स्थापना के प्रयास पर केंद्र सरकार के साथ टकराव का सामना करना पड़ सकता है | उल्लेखनीय है संसद द्वारा बनाए गये  आयोग को सर्वोच्च न्यायालय ने  असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया था | हाल ही में कानून मंत्री ने संसद में बयान दिया था कि कालेजियम व्यवस्था की जगह आयोग की स्थापना किये जाने की मांग जोर पकड रही है | इससे संकेत मिला कि सरकार आयोग की स्थापना का विधेयक दोबारा संसद में लाने जा रही है | ऐसा होने पर श्री चंद्रचूड का रुख सरकार और न्यायपालिका के बीच का सम्बन्ध और संतुलन तय करेगा |  यदि वे सचमुच  भरोसा जीतना चाहते हैं तो उन्हें खुद होकर कालेजियम प्रथा समाप्त करने की पहल करनी चाहिये जिससे न्यायपालिका की गुणवत्ता और छवि दोनों में सुधार हो सके |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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