Saturday 12 November 2022

निर्दयता पर न्याय की दया



भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को उनकी सजा समाप्त करते हुए रिहा करने के आदेश देश की सबसे बड़ी अदालत द्वारा दिए गए हैं। अदालत का मानना है कि 30 वर्ष की सजा के बाद राजीव गांधी के हत्यारों का आचरण जेल मैनुअल के हिसाब से उत्तम कहा जा सकता है। इसके बाद न्यायालय ने उन्हें रिहा करने के आदेश जारी किए हैं। इससे पहले भी भारत के महामहिम राष्ट्रपति के पास इन लोगों की दया याचिका विचारार्थ थी। राजीव गांधी की हत्या में शामिल नलिनी के आग्रह पर श्रीमती सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति से दया याचिका में फांसी की सजा को माफ किए जाने की अपील भी की थी। सोनिया जी ने यह भी कहा था कि वह नलिनी को राजीव गांधी की हत्या के लिए माफ करती हैं! इन सभी घटनाक्रमों को देखते हुए भारत की सबसे बड़ी अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारों में से 6 को रिहा करने के आदेश दिए हैं। इस मामले में कुछ बरी भी हो चुके हैं। इसके बाद यह विषय एक बार फिर राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। यहां सवाल यह उठाया जा रहा है कि क्या राजीव गांधी, श्रीमती सोनिया गांधी के पति के अलावा भी कुछ थे? क्या भारत के प्रधानमंत्री की हत्या हो जाने के बाद उसे पारिवारिक विषय बनाते हुए क्षमा कर देना उचित है? यह विषय आखिरकार न्याय व्यवस्था को भविष्य के लिए किस प्रकार से प्रभावित करेगा देखना जरूरी है। यह सवाल भी अपने आप में सामयिक है कि कोई हत्या का अभियुक्त वह भी सहज हत्या का अभियुक्त न होते हुए प्रधानमंत्री की हत्या का अभियुक्त हो , अपने आचरण के कारण सजा से मुक्त होने के की पात्रता रखता है? इन सवालों के उत्तर न केवल भारतीय राजनीतिक गलियारों में अपितु न्याय व्यवस्था की गलियों में भी मांगे जा रहे हैं। भारत की न्याय व्यवस्था के संदर्भ में आज भी किसी प्रकार की आशंका का प्रश्न उत्पन्न नहीं होता। इसके बाद भी अनेकों अवसरों में यह लगता है कि न्यायपालिका कुछ रचनात्मक प्रयोग करने का प्रयास कर रही है। पिछले कुछ समय से सरकार के निर्णयों की समीक्षा संबंधी विषयों को भी इसी संदर्भ के साथ जोड़कर देखा जा सकता है। ठीक उसी प्रकार से भारत के प्रधानमंत्री के हत्यारों को उनके आचरण के कारण समय से पहले रिहा करने का यह प्रसंग भी न्यायपालिका के नए प्रयोगों के रूप में देखा जा रहा है। सामान्यतया आम व्यक्ति को न्याय पाने के लिए ही बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं, वहीं दूसरी तरफ एक हाईप्रोफाइल मामले में अपराधियों के प्रति न्याय की दया का प्रदर्शन भी देखने को मिलता है। आने वाले समय में न्याय व्यवस्था में इस प्रकार के प्रयोगों का कितना लाभ होता है और कितने अपराधी अपने आचरण को समय से पहले सुधार पाते हैं यह गंभीरता पूर्वक देखने का विषय होगा। यदि न्याय व्यवस्था कोई गुणात्मक प्रयोग करना चाहती है तब हाई प्रोफाइल मामलों में और खासकर जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री जैसी हत्या शामिल हो वहां इन प्रयोगों में और अधिक सतर्कता की जरूरत है। अन्यथा हत्या के बाद आचरण सुधार के ड्रामे आम बात होने जैसी स्थिति हो सकती है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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