Wednesday 2 November 2022

सुनी जो उनके आने की आहट गरीबखाना सजाया हमने



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गत दिवस गुजरात के मोरबी में गए और पुल टूटने के कारण हुई दुर्घटना में घायल लोगों से अस्पताल में मिलकर उन्हें ढांढस बंधाया | श्री मोदी चूंकि गुजरात के ही हैं और वहां जल्द विधान सभा चुनाव होने वाले हैं इसलिए उनका  वहां जाना स्वाभाविक ही था | घायलों की सहानुभूति अर्जित करने के लिए अन्य दलों के नेता भी ऐसा करते हैं और इसे गलत नहीं कहा  जा सकता | लेकिन महत्वपूर्ण ये नहीं कि प्रधानमंत्री ने जाकर घटनास्थल का मुआयना कर हादसे के कारणों की जानकारी ली और अस्पताल में जाकर घायलों से मिलकर उनका हौसला बढ़ाया , बल्कि ये कि उनके आने के पहले आनन फानन में अस्पताल में रंग रोगन करवाया गया , नये  वाटर कूलर रखे गये | और भी जो कमियां छिपाई  जा सकती थीं उन पर पर्दा डालने का भरपूर प्रयास अस्पताल प्रबंधन और जिला प्रशासन द्वारा किया गया | प्रधानमंत्री के आने पर साफ़ - सफाई , यातायात  नियंत्रण और सुरक्षा की दृष्टि से किये जाने इंतजाम अपनी जगह  उचित हैं | लेकिन जिस तरह की दुर्घटना मोरबी में हुई उसके बाद श्री मोदी के वहां आकर घायलों से मिलने के अवसर पर किया जाने  वाला दिखावा ये साबित  करने के लिए काफी है कि हमारे देश में सरकारी मशीनरी की सोच और कार्यपद्धति कश्मीर से  कन्याकुमारी तक एक जैसी है | प्रधानमंत्री गुजरात के 12 वर्षों तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं | ऐसे में उनको वहाँ  की जमीनी हकीकत न पता हो ये असंभव है | और फिर यदि वे किसी  जलसे में आ रहे होते तो उस स्थान की साज - सज्जा का औचित्य भी होता परन्तु जिस दुर्घटना में लगभग 150 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए उसके बाद शासन – प्रशासन का ध्यान इस बात पर होना चाहिये कि घायलों के इलाज की बेहतर व्यवस्था हो | प्रधानमंत्री के आगमन का लाभ लेकर अस्पताल की बेहतरी के  लिए मदद लेने का प्रयास भी उचित रहता | लेकिन बजाय उसके सरकारी अमला रंगाई – पुताई के काम में उलझ गया | ऐसा नहीं है कि श्री मोदी की  नजरों  से वह छिपा रहा हो लेकिन वे भी बतौर मुख्यमंत्री ये सब  देखते रहे हैं | अच्छा होता यदि वे खुद होकर राज्य शासन के जो मंत्री वहां  थे उन्हें फटकार लगाते इस तरह के दिखावटी इंतजाम पर नाराजी जताते | शायद मौके की नजाकत भांपते हुए वे चुप रहे जिसके पीछे चुनाव भी हो सकते हैं किन्तु समय आ गया है जब इस तरह के कर्मकांड रोकने  की दिशा में काम हो | समाचार माध्यम तो अक्सर ऐसे मामलों में सरकारी तंत्र की खिचाई करते ही हैं लेकिन राजनीतिक पदों पर विराजमान महानुभाव इस तरह के सामंतवादी क्रिया - कलापों के विरुद्ध आवाज क्यों नहीं उठाते ये बड़ा सवाल है | अंग्रेजों के ज़माने में ये सब होना स्वाभाविक था क्योंकि वे इस देश को अपना गुलाम समझते थे | मुम्बई में इंग्लैण्ड के सम्राट के आगमन पर गेट वे बनाया जाना इसका प्रमाण था | लेकिन आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी हमारी सोच में वही कुछ बना रहना शोचनीय है | मोरबी के अस्पताल में ऐसा होना कोई पहली घटना नहीं थी इसलिए किसी को उस पर आश्चर्य नहीं हुआ | पूरे देश में आये दिन इस तरह की नाटकबाजी चला करती है | प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के आने पर उनके ठहरने वाले विश्राम गृह में सब कुछ नया कर दिया  जाता है ।  जिन रास्तों से उनकी सवारी निकलने वाली होती है  उन्हें भी रातों – रात सुधार दिया जा जाता है | यदि दो – चार दिन का समय भी मिल जाता है तब तो पूरी सड़क नई बना दी जाती है | मौजूदा राष्ट्रपति बेहद गरीब हालात से आई हैं | प्रधानमंत्री भी साधारण परिस्थितियों से उठकर इस पद पर आये हैं | उन्हें इस देश और यहाँ के लोगों के दुःख – दर्द अच्छी  तरह से पता हैं | राजनीतिक क्षेत्र में कार्य करते समय वे उन दुर्दशाओं का प्रत्यक्ष दर्शन और अनुभव कर चुके होंगे | ऐसे में उनसे अव्यवस्था को छिपाना मायने नहीं रखता | होना तो ये चाहिए कि बड़े ओहदों पर बैठे महानुभाव खुद होकर इस तरह के दिखावों पर रोष व्यक्त करते हुए इस बात को पूछें कि इस सबकी क्या आवश्यकता थी ? उल्लेखनीय है अति विशिष्ट जनों के आगमन पर होने वाले खर्च में भारी भ्रष्टाचार होता है | ऑडिट करने वाले भी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के कार्यक्रमों पर हुए खर्च पर ऐतराज करने से डरते हैं | मोरबी के अस्पताल में श्री मोदी के आने के खबर के बाद हुए रंग – रोगन से अस्पताल की समूची व्यवस्था चरमराई होगी | वहां भर्ती मरीजों को भी बेशक परेशानी झेलनी पड़ी | लेकिन राज्य  सरकार ने जिला प्रशासन और उसने अस्पताल प्रबंधन को कसा होगा कि प्रधानमंत्री के वहां आने के पहले सब कुछ चकाचक हो जाना चाहिए और ऊपर से आये हुक्म के मुताबिक़ श्री मोदी के आगमन के पहले अस्पताल को चमका दिया जाए | प्रधानमंत्री की सुरक्षा का सवाल आड़े आता है अन्यथा यदि वे अस्पताल का औचक निरीक्षण करें तब उन्हें समझ आयेगा कि वास्तविकता क्या है ? ये चलन पूरे देश में एक समान है | मंत्री के दौरे पर आयोजन स्थल पर गड्ढे खोदकर गमले गाड़ दिए जाते हैं जो उनके जाते ही निकाल लिए जाते हैं | और भी  जो कुछ किया जाता है वह जगजाहिर है | सवाल ये है कि जिन उच्च पदस्थ लोगों को जनता की तकलीफें दिखाई जानी चाहिए उनसे उनको छिपाना अव्वल दर्जे की मूर्खता भी है और धोखेबाजी भी | आश्चर्य इस बात का है कि जिन लोगों के सामने ये दिखावा किया जाता है वे भी हकीकत से वाकिफ होने पर भी शांत बने रहते हैं | 


- रवीन्द्र वाजपेयी


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