Wednesday 30 November 2022

गुजरात में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की लड़ाई से भाजपा को फायदा



 गुजरात विधानसभा चुनाव हेतु पहले चरण का मतदान कल 1 दिसम्बर को होने जा रहा है | आख़िरी दौर में सभी प्रमुख प्रतिद्वन्दियों ने पूरी ताकत झोंक दी है | भाजपा के स्टार प्रचारक खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं जबकि गृहमंत्री अमित शाह भी धुँआधार प्रचार में जुटे हुए हैं | राहुल  गांधी की भारत जोड़ो यात्रा म.प्र से निकलते हुए राजस्थान में प्रविष्ट होगी लेकिन उसका गुजरात न आना राजनीतिक दृष्टि से बेहद चौंकाने वाला  रहा | हालाँकि श्री गांधी बीच में आकर एक – दो सभाएं कर आये परन्तु पूरे प्रचार के दौरान उनकी गैर मौजूदगी से कांग्रेसजनों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ा और यही  कारण है कि आम आदमी पार्टी भाजपा विरोधी मतों का बड़ा हिस्सा खींचने की तरफ बढ़ रही है| म.प्र और राजस्थान की तरह गुजरात में भी भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता आया है परन्तु इस बार ऐसा लगता है कांग्रेस पराजयबोध से ग्रसित होने के कारण बुझे मन से मैदान में उतरी | आम आदमी पार्टी भी समझ चुकी है कि उसे स्पष्ट बहुमत मिलना तो दूर रहा लेकिन वह इस प्रयास में है कि किसी तरह कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन  करते हुए मुख्य विपक्षी दल बन जाए ताकि  भविष्य में भाजपा का विकल्प बन सके | इसी वजह से जितने भी  सर्वे आये वे सभी कांग्रेस  और आम आदमी पार्टी के बीच दूसरे और तीसरे स्थान के  लिए मुकाबला बताते हुए भाजपा की सरकार  बनने के संकेत दे रहे हैं | यद्यपि  अरविन्द केजरीवाल तो खुले आम अपनी सरकार बनाने के दावे कर रहे हैं किन्तु गुजरात में  उनकी बात पर विश्वास करने वाले कम ही होंगे | वहीं कांग्रेस के लिए चिंता का विषय ये भी  है कि 2017 के चुनाव तक साथ  रहे  प्रतिबद्ध मतदाता भी उससे बिदक रहे हैं | इसमें दो मत नहीं कि पांच साल पहले हुए चुनाव में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन करते हुए भाजपा को सांस फूलने वाली स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया था | अगर श्री  शाह ने  अंतिम दौर में सूरत की 16 सीटों को न संभाला होता तो बड़ी बात नहीं कांग्रेस बाजी पलट देती | लेकिन उसके बाद बीते पांच साल में और उस पर भी अहमद पटेल के न रहने के बाद से वह  दिशाहीन होकर रह गई है | और इसी शून्य को भरने की कोशिश में आम आदमी पार्टी है | वह अपने मकसद में कितनी कामयाब होती है ये तो 8 दिसम्बर की दोपहर तक स्पष्ट हो जाएगा लेकिन गुजरात पर नजर रखने वाले अधिकतर पत्रकारों और सर्वेक्षण एजेंसियों का मानना है कि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के लिए बड़ा गड्ढा खोद दिया है | यद्यपि ये आशंका भी है कि वह खुद भी उसी में गिर सकती किन्तु त्रिकोणीय मुकाबले के कारण भाजपा को स्वाभाविक बढ़त नजर आ रही है | बावजूद इसके मोदी और शाह की  जोड़ी किसी मुगालते में नहीं दिख रही और भाजपा ने अन्य प्रान्तों से भी अपने दिग्गज बुलाकर मजबूत मोर्चेबंदी कर रखी है | हालाँकि हार्दिक पटेल के आने से पटेल मतों की नाराजगी का खतरा उतना नहीं रहा परन्तु  महंगाई का मुद्दा भाजपा को रक्षात्मक बनाने के लिए पर्याप्त है | इसीलिये प्रधानमंत्री गुजरात के प्रतीक पुरुष बनकर मतदाता को रिझाने में लगे हैं और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे का ताजा बयान उनके लिए उपहार की तरह हो गया जिसमें उन्होंने श्री मोदी की तुलना रावण से कर डाली | इतने वरिष्ट नेता होते हुए भी कांग्रेस अध्यक्ष वही  गलती कर बैठे जो सोनिया गांधी ने अतीत में  उनको मौत का सौदागर कहकर की थी | मतदान के महज पहले आई इस टिप्पणी को भाजपा के प्रचारतंत्र ने सीधे गुजरात के अपमान से जोड़ दिया | ऐसे में श्री खडगे का ये बयान कांग्रेस के लिए दूबरे में दो आसाढ वाली स्थिति पैदा कर सकता है | रही बात आम आदमी पार्टी की तो उसके लिए ये चुनाव खुद को राष्ट्रीय पार्टी की हैसियत दिलवाने पर केन्द्रित है | यदि पार्टी गुजरात में कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए मजबूत विपक्ष  बनने में कामयाब हो जाती है तब आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्ष द्वारा बनये  जाने वाले किसी भी मोर्चे ,में उसकी उपस्थिति अनिवार्य होगी | लेकिन जैसी संभावना अनेक सर्वे बता रहे हैं वह कांग्रेस से भी पीछे रहते हुए 10 -15 सीटों तक सिमट गई तब जरूर श्री केजरीवाल का राष्ट्रीय नेता बनने का सपना चूर हो सकता है | कुल मिलाकर कोई बड़ा उलटफेर न हुआ तब गुजरात में भाजपा ने  जो हिंदुत्व की प्रयोगशाला स्थापित की थी वह काम करती रहेगी | इसके साथ ही कांग्रेस के लिए ये अवसर है अपनी खोई साख वापस हासिल करने का | अगर वह 2017 के प्रदर्शन के आसपास भी पहुंच सकी तब उसके पास ये कहने का अवसर होगा कि बिना राहुल गांधी के  भी उसने अपना आधार बनाये रखा |  भाजपा की आंतरिक राजनीति में भी गुजरात के चुनाव नतीजे बड़े परिवर्तन का कारण बनेंगे | यदि चुनाव विशेषज्ञों द्वारा जताई जा रही संभावनाओं के अनुसार ही परिणाम आये और भाजपा अपने इस दुर्ग पर कब्ज़ा बरकरार रख सकी तब प्रधानमंत्री निश्चित रूप से और मजबूत हो जायेंगे | वैसे भी हाल - फ़िलहाल सत्ता और संगठन में उन्हें चुनौती देने वाला नजर नहीं आ रहा |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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