Tuesday 22 November 2022

ममता का बदलता रुख नई खिचड़ी पकने का संकेत



 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध लगातार बोलने वाली प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी काफी समय से खामोश हैं | जुलाई में अपने खासमखास मंत्री पार्थ चटर्जी पर छापे के बाद उनकी  आक्रामकता लगातार ढलान पर आती गई  | राज्य के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ के साथ तो उनके सम्बन्ध बेहद तनावपूर्ण रहे | लेकिन जब भाजपा ने उनको उपराष्ट्रपति पद हेतु प्रत्याशी बनाया तब आशंका के विपरीत तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव में हिस्सा ही नहीं लिया जिसे समर्थन ही माना गया | हालाँकि आज तक ये स्पष्ट नहीं हुआ कि उस कदम में राजनीतिक  निहितार्थ क्या था और श्री मोदी के विरुद्ध उनकी तीखी बयानबाजी में कमी किस वजह से हुई ? बंगाल की राजनीति पर नजर रखने वाले मानते हैं कि प्रधानमंत्री को सीधे ललकारने वाली सुश्री बैनर्जी अनेक मंत्रियों , विधायकों और तृणमूल नेताओं के अलावा अपने भाई - भाभी आदि पर ईडी और आयकर के कसते शिकंजे से घबराई हुई हैं | यही कारण है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष का संयुक्त मोर्चा बनाने की उनकी कोशिश ठंडी पड़ गई | राहुल गांधी को  विपक्ष का चेहरा बनाये जाने का भी वे अनेक बार विरोध कर चुकी हैं | प. बंगाल विधानसभा के पिछले चुनाव में जीत के बाद उनका आत्मविश्वास आसमान छूने लगा था | जिसके बाद वे राष्ट्रीय राजनीति में उतरने की मंशा से विपक्ष के अनेक दिग्गजों से मिलीं | लेकिन गोवा विधानसभा में उम्मीदवार उतारकर उन्होंने कांग्रेस  और आम आदमी पार्टी दोनों का जो नुकसान किया उसकी वजह से विपक्ष उनसे छड़कने लगा | हालाँकि ये बात भी सही है कि पिछले चुनाव में श्री मोदी और अमित शाह के जबरदस्त प्रचार के बावजूद ममता की जीत के बाद ये अवधारणा देश भर में सुदृढ़ हुई कि वे ही आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला करने में सक्षम  हैं |  विधानसभा चुनाव में हालाँकि भाजपा ने 3 से 73 तक की  छलांग लगाई किन्तु  नंदीग्राम में पुराने सहयोगी शुबेंदु अधिकारी से हारने  के बावजूद सत्ता में लौटते ही ममता ने जिस तरह भाजपा में सेंध लगाकर उसके विधायक - सांसद तोड़े  और वामपंथी शैली में   कार्यकर्ताओं को भयाक्रांत किया उसके कारण चुनाव के पहले भाजपा में आये तमाम नेता उलटे पांव लौटने लगे | उपचुनावों  में भी तृणमूल ने बड़ी जीत हासिल कर  दिखा दिया कि भाजपा का उभार , उधार के नेताओं की वजह से हुआ था जिनके वापिस जाते ही उसकी वृद्धि पर विराम लग गया | मोदी मंत्रीमंडल से हटाये जाते ही बाबुल सुप्रियो  तृणमूल  में शामिल हो गए और उनके द्वारा रिक्त आसनसोल लोकसभा सीट से भाजपा के पुराने केन्द्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा ने तृणमूल  उम्मीदवार के तौर पर बड़ी जीत हासिल कर ली  | बीते डेढ़ साल से ममता और तृणमूल का इकतरफा दबदबा प. बंगाल में नजर आने से  भाजपा  कार्यकर्ता और नेता पूरी तरह दबाव में थे | इस सबसे उत्साहित सुश्री  बैनर्जी प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देखने लगीं | लेकिन जैसे – जैसे उनकी पार्टी के अनेक नेता भ्रष्टाचार में उलझते गए वैसे – वैसे उनकी अकड़ में कम हुई  | पार्थ चटर्जी और उनकी महिला मित्र के यहाँ  छापे में मिली अकूत नगदी के साथ ही जो जानकारियाँ सामने आईं उनके कारण ममता के तेवर ढीले पड़ने लगे | श्री चटर्जी उनके सबसे खास मंत्री थे इसलिए उनकी गर्दन में पड़े फंदे की कसावट मुख्यमंत्री को भी महसूस हुई और वहीं से बंगाल की शेरनी कहलाने वाली नेत्री  का बडबोलापन कम होने लगा | हालांकि बीच – बीच में वे केंद्र सरकार के खिलाफ बयानबाजी करते हुए ईडी , आयकर और सीबीआई के दुरूपयोग का आरोप लगाती रहीं परन्तु  उनकी जुबान से निकलने वाली आग में ठंडक आने लगी | ये भी सुनने में आया है कि उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनने के पहले श्री धनखड़ के साथ उनकी अन्तरंग मुलाकात दार्जिलिंग में हुई जिसके सूत्रधार रहे असम के मुख्यमंत्री  हिमंता बिस्व सरमा | उसके बाद मुख्यमंत्री और राजभवन के बीच की खींचतान काफी कम हो गई | जाते – जाते महामहिम भी अनेक मामलों में ममता को राहत दे गये जिसका बदला तृणमूल ने उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का साथ न देकर दिया | ताजा समाचार ये है कि ममता दिसम्बर के पहले सप्ताह में प्रधानमंत्री  से मिलने वाली हैं | यद्यपि उस दौरान सभी राज्यों के मुख्यमंत्री आगामी वर्ष होने वाले जी 20 देशों के सम्मलेन की तैयारियों के सिलसिले में केंद्र सरकार के आमन्त्रण पर दिल्ली आयेंगे | लेकिन सुश्री बैनर्जी ने श्री मोदी के साथ निजी मुलाक़ात हेतु  पत्र भेजा है | सामान्यतः इस तरह की मुलाक़ात में मुख्यमंत्री अपने राज्य की लम्बित विकास योजनाओं के लिए आर्थिक संसाधन मांगते हैं | प्राकृतिक आपदा के बाद  राहत कार्यों के लिए भी ऐसी बैठक होती रही हैं | लेकिन प्रधानमंत्री के साथ पिछली मुलाकात में ममता जब बिना कोई कागज लिए खाली हाथ गईं तब उनकी तस्वीर पर तरह – तरह के तंज कसे गए |  संभवतः उस मुलाक़ात में श्री मोदी और उनके बीच चली आ रही सियासी जंग को शिथिल करने पर सहमति बन गई थी जो उसके बाद प्रमाणित भी हुई | उपराष्ट्रपति के चुनाव से दूर रहने के कारण ममता और कांग्रेस सहित बाकी विपक्षी दलों के बीच अविश्वास और बढ़ा है | वैसे सुश्री बैनर्जी उ.प्र चुनाव में वाराणसी के बंगलाभाषी मतदाताओं को सपा के पक्ष में मोड़ने गईं थीं लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ | उल्लेखनीय है विधानसभा चुनाव के बाद कोलकाता आये श्री मोदी के स्वागत करने तक से ममता ने परहेज किया और तो और उनके साथ हुई एक बैठक से  वे जरूरी काम का बहाना बनाकर चली गईं थी. | लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में अपने सहयोगियों और परिजनों के चौतरफा घिर जाने के बाद से उनका व्यवहार प्रधानमंत्री के प्रति जिस तरह से ममतामयी हो रहा है उसे  नई राजनीतिक खिचड़ी के पकने का संकेत कहा जाए तो गलत न होगा | वैसे भी ममता और अनिश्चितता एक दूसरे के समानार्थी हैं | रही बात भाजपा की तो मोदी और शाह की जोड़ी कब चौंका  दे कहना कठिन है | गुजरात में हार्दिक पटेल इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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