Saturday 26 November 2022

इतिहास के गौरवशाली पक्ष को उजागर करने का सही समय



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये कहना पूरी तरह सही है कि हमारे इतिहास में केवल गुलामी और पराजय के बारे में बताया जाता है जबकि उसमें हमारी विजय गाथाएँ  भी भरी हुई  हैं | मुगलिया सल्तनत के विरुद्ध युद्ध में अद्वितीय वीरता का प्रदर्शन करने वाले असम के महान  योद्धा लचित बरफुकन की 400 वीं जयंती पर श्री मोदी ने कहा कि आजादी के बाद गलत इतिहास पढ़ाया गया | चूंकि इसकी रचना पराधीनता के दौर में हुई इसलिये हमारे गौरव पुरुषों की उपेक्षा करते हुए तथ्यहीन  और भ्रामक जानकारी दी जाती रही | उन्होंने स्पष्ट किया कि उस गलती को सुधारकर उन गुमनाम वीरों और वीरांगनाओं को याद  किया जा रहा है जिन पर साजिशन विस्मृति की धूल डाल दी गयी थी | इस बारे में ये उक्ति काफ़ी प्रचलित है कि इतिहास विजेता द्वारा लिखा जाता है | भारत में चूंकि सैकड़ों वर्षों तक गैर हिन्दू धर्मावलम्बियों का शासन रहा इसलिए उन्होंने हमारी संस्कृति और गौरवशाली अतीत से हमको दूर करने का षडयंत्र रचा | अकबर को महान मानने वाली मानसिकता उसी साजिश का हिस्सा है | जिसके चलते देश की राजधानी में उस औरंगजेब के नाम का मार्ग तक बनाया गया जिसने सनातन धर्म के लोगों पर अत्याचार की पराकाष्टा कर डाली थी | इसी तरह अंग्रेजों का प्रशस्तिगान करने वाले संस्थान और संबोधनों को भी आज तक ढोया जा रहा है | दुर्भाग्य से इतिहास लेखन के साथ की जाने वाली शरारत स्वाधीनता के बाद भी जारी रही | कांग्रेस में एक से एक बुद्धिजीवी और देशभक्त थे |  लेकिन प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु चूंकि सोवियत संघ की साम्यवादी क्रांति से प्रभावित थे इसलिए उन्होंने साहित्य , कला , शिक्षा और इतिहास जैसे क्षेत्रों में वामपंथी रुझान वाले व्यक्तियीं को स्थापित किया जिसका दुष्परिणाम वैचारिक विकृति के तौर पर देखने मिला | यही वजह रही कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और स्वामी विवेकानंद जैसी विभूतियों तक के प्रति उपेक्षाभाव बरता गया | बीते कुछ समय से स्वातंत्र्य वीर सावरकर को लेकर सुनियोजित मिथ्या प्रचार अभियान  चलाया जा रहा है | इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि सावरकर जी देश की आजादी के लिए लड़ने के साथ ही हिंदुत्व के प्रखर प्रवक्ता थे | उनके बारे में अनर्गल बातें कहने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दो दिन पहले भारत जोड़ो यात्रा के दौरान म.प्र में टंट्या मामा नामक आदिवासी स्वाधीनता सेनानी को लेकर रास्वसंघ पर आरोप लगा दिया कि वह उन्हें फांसी दिए जाने के बारे में अंग्रेजों के साथ था | उनके इस बयान को समाचार माध्यमों में खूब सुर्खिया भी मिलीं | लेकिन तत्काल ये  स्पष्ट हो गया कि आजादी के उक्त सिपाही को तो रास्वसंघ के जन्म के कई दशक पहले अंग्रेजों द्वारा  सूली पर चढ़ाया गया था |  श्री गांधी कांग्रेस के शीर्ष नेता और लम्बे समय से सांसद हैं | ऐसे में उनसे इस तरह के गैर जिम्मेदाराना बयान की अपेक्षा कोई भी समझदार नहीं करेगा | लेकिन उनकी जानकारी  चूंकि विदेशी और वामपंथी इतिहासकारों से प्रेरित है इसलिए इस तरह की  आधारहीन , असत्य और अप्रामाणिक बातें वे अक्सर कहा करते हैं | यद्यपि इतिहास के बारे में मानसिक विकृति के शिकार लोगों की संख्या अनगिनत है | बीते सात दशक और उसके पहले से ही इतिहास लेखन पर उस तबके का आधिपत्य रहा जिसे भारतीय संस्कृति , हिन्दुत्व , राष्ट्रवाद और तो और भारत के एक प्राचीन देश होने तक पर यकीन नहीं रहा | जिस देश में भगवान राम राष्ट्रीय आस्था के सबसे बड़े प्रतीक हों उसी में उनके अस्तित्व को नकारने की सोच को स्वीकृति और समर्थन मिलना इस बात का परिचायक है कि ऐसे लोगों का इतिहास बोध कितना घटिया है | उस दृष्टि से प्रधानमंत्री ने आजादी की लड़ाई के दौरान देश के कोने – कोने में विदेशी सत्ता के अत्याचारों के विरुद्ध हुए उग्र प्रतिरोध की कहानियों को दबाने की भूल को सुधारकर उन विभूतियों को महिमामंडित करने की जो बात  कही , वह समय की मांग है क्योंकि अकबर को महान बताने वाली सोच ने महाराणा प्रताप के शौर्य और स्वाभिमान को उपेक्षित कर दिया | बाबर और  औरंगजेब के नाम पर दिल्ली में मार्ग का होना ही इतिहास के खलनायकों को गौरवान्वित करना था | ये सब देखते हुए भावी पीढ़ी को इतिहास का  उजला पक्ष  बताने की जरूरत है | लार्ड माउंटबेटन की कुटिल नीति के चलते देश का विभाजन किन कारणों से हुआ इस बारे में सही जानकारी आनी चाहिए | तत्कालीन नेताओं ने एक प्राचीन देश के दो टुकड़े उस धर्म के नाम पर क्यों स्वीकार किये जो आक्रमणकारी और लुटेरा था | सवाल और भी हैं जिन पर जान - बूझकर इसलिए पर्दा डालकर रखा गया जिससे भविष्य का भारत अपनी गौरव गाथाओं से अपरिचित रहते हुए दासता की अपमानजनक कहानियों  के साथ आत्मग्लानि में डूबा रहे | इतिहास में सुधार की जो प्रक्रिया कुछ समय से चल रही है उसकी वजह से उस वर्ग के पेट में मरोड़ हो रहा है जो देश को गुलाम बनाने वाले आक्रान्ताओं को राष्ट्रनायकों से ऊपर रखने की मानसिकता से प्रभावित और पोषित है | याद रहे इतिहास की नींव पर भविष्य का ढांचा खड़ा होता है | ऐसे में यदि इतिहास ही आधारहीन तथ्यों पर आधारित होगा तब आने वाली पीढ़ी अपने स्वर्णिम अतीत और उससे जुडी गौरव गाथाओं से किस प्रकार परिचित हो सकेगी , ये बड़ा सवाल है | सदियों की गुलामी के बाद आजाद हुए देश की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में प्रामाणिक इतिहास लेखन होना चाहिए था | लेकिन उसे पूरी तरह उपेक्षित किया गया क्योंकि आजादी के बाद  उसे चलाने वालों की मानसिकता पर विदेशी छाप बरकरार थी | उस गलती को सुधारना निहायत जरूरी है जिससे न  सिर्फ देशवासी अपितु दुनिया भर में फैले भारतवंशी लोगों के मन में ये बात स्थापित की जा सके कि भारत का इतिहास केवल मुगलों और अंग्रेजों की दासता तक ही सीमित नहीं अपितु उससे बहुत पहले का है जिसमें ज्ञान , विज्ञान , कला - संस्कृति , वीरता , दर्शन , धर्म , आध्यात्म , उद्योग - व्यापार  आदि की अनगिनत ऐसी गाथाएँ भरी पड़ीं हैं जिनकी वजह से ये देश विश्व गुरु और सोने की चिड़िया जैसे विशेषणों से जाना जाता था | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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