Thursday 24 November 2022

शिक्षित जनप्रतिनिधि : जम्मू नगर निगम की अच्छी पहल



लोकतंत्र को  प्रभावी बनाने के लिए समय – समय पर कदम उठाये जाते रहे हैं | चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को नामांकन के साथ ही चल – अचल संपत्ति के विवरण के साथ उस पर चल रहे अपराधिक प्रकरणों की जानकारी शपथ पत्र के रूप में देनी होती है | इसके कारण आम जनता को उसकी माली स्थिति के अलावा अपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी भी मिल जाती है | सर्वोच्च न्यायालय ने दो साल से अधिक की सजा होते ही किसी जनप्रतिनिधि की सदस्यता समाप्त करने का जो नियम बनाया उसके कारण ही लालू प्रसाद यादव जैसे लोग चुनाव लड़ने से वंचित हुए | लेकिन जनप्रतिनिधियों की शैक्षणिक योग्यता के बारे में कोई मापदंड नहीं है | वयस्क मताधिकार के अंतर्गत 18 साल की आयु प्राप्त करते ही व्यक्ति मतदाता बनने की पात्रता हासिल कर लेता है | चुनाव लड़ने के लिए भी न्यूनतम आयु के साथ ही  कुछ शर्तें हैं | लेकिन आज तक प्रत्याशी की शिक्षा को लेकर कोई नियम नहीं बना जिसके कारण अंगूठा छाप व्यक्ति तक चुनाव जीतकर आ जाते हैं | जबसे पंचायत और स्थानीय निकायो में महिलाओं के लिये आरक्षण का प्रावधान हुआ है तबसे अनेक सरपंच , जिला पंचायत अध्यक्ष और महापौर जैसे पदों पर ऐसी महिलाएं चुनकर आने लगी हैं जिन्हें हस्ताक्षर करना तक नहीं आता | सरकार में मंत्री बन जाने वाले अनेक नेता  अपनी शपथ तक नहीं पढ़ पाते | इस सबकी वजह से जनप्रतिनिधियों की शिक्षा को लेकर सवाल उठा करते है लेकिन किसी भी राजनीतिक दल के अलावा , न्यायपालिका अथवा चुनाव आयोग ने इस बारे में कोई पहल अब तक नहीं की | लेकिन गत दिवस खबर आई कि जम्मू नगर निगम ने प्रस्ताव पारित किया  है कि पार्षदों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता स्नातक कर दी जावे | तदाशय का प्रस्ताव निगम के सदन  ने पारित कर शासन के पास भेजते हुए अनुरोध किया है कि उसे उचित माध्यम से चुनाव आयोग की स्वीकृति हेतु  प्रेषित किया जावे | यद्यपि ये एक छोटी सी कोशिश है लेकिन इस बात का स्वागत होना चाहिए कि जिस विषय पर विधानसभा और संसद में चर्चा होनी चाहिए थी उसका जम्मू के स्थानीय निकाय ने संज्ञान लिया | हालाँकि इस सलाह  को आसानी से राजनीतिक दल शायद ही पचा पायें | यहाँ तक कि भाजपा खुद अपने  महापौर द्वारा लाये गये उक्त प्रस्ताव को कितनी  अहमियत देगी ये कहना भी मुश्किल है | बावजूद इसके  इस तरह के मुद्दों पर राष्ट्रीय विमर्श आवश्यक है | लोकतंत्र के तीन  स्तम्भ है विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका हैं |  इन तीनों में विधायिका को छोड़कर शेष दोनों में न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता का प्रावधान है | मसलन शासकीय  नौकरी करने वाले भृत्य की शैक्षणिक योग्यता भी उसके चयन के लिए जरूरी होती है |  जैसे – जैसे पद ऊंचा होता है उसका दायरा बढता जाता है | सेना , प्रशासन , न्यायपालिका सभी में छोटे से छोटे पद के लिए भी शिक्षा का एक स्तर निर्धारित है | लेकिन अकेली विधायिका ही है जिसके लिए चुनाव के जरिये जो  जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं उनके लिए किसी भी प्रकार की शैक्षणिक योग्यता की जरूरत नहीं है | इसका परिणाम ये हुआ कि जिन सांसदों और विधायकों पर  कानून और  नीतियाँ बनाने का दायित्व है उनकी बहुत बड़ी संख्या इनके बारे में कुछ जानती ही नहीं | सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि अनेक ऐसे मंत्री भी बना दिए जाते हैं जिनकी शैक्षणिक योग्यता शून्य है लेकिन जाति और क्षेत्रवाद के नाम पर उन्हें सरकार में शामिल किया जाता है | ये  मंत्री प्रशासनिक अधिकारी से किस तरह पेश आते होंगे और विचार्रार्थ आने वाले विषयों पर निर्णय लेने में कितने सक्षम साबित होते हैं ये चिन्तन का विषय है | उस दृष्टि से जम्मू नगर निगम द्वारा पारित प्रस्ताव एक अच्छी शुरुवात है | यद्यपि सरकारी तंत्र के जरिये  इसके चुनाव आयोग तक पहुँचने और उसके बाद उस पर किसी निर्णय के रास्ते में तरह – तरह के अवरोध आयेंगे और  राजनीतिक नेताओं का एक वर्ग इसके विरोध में वैसे ही आसमान सिर पर उठा लेगा जैसे महिला आरक्षण के मामले में देखने मिला | लेकिन अब जब बात निकल ही पड़ी है तो उसे अंजाम तक ले जाना भी जरूरी है | जिन विकसित देशों में संसदीय लोकतंत्र है वहां हर व्यक्ति न्यूनतम स्तर तक शिक्षित्त होता है | जबकि अपने देश में इस तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया | संविधान का चेहरा बने डा. भीमराव आम्बेडकर यदि उच्च शिक्षित न होते तब शायद वे अपने समुदाय की स्थिति में  क्रांतिकारी परिवर्तन करवाने में कामयाब न हो पाते | शासन तंत्र पर नौकरशाही के हावी होने का सबसे बड़ा कारण अधिकतर मंत्रियों की शैक्षणिक और पेशेवर योग्यता का अभाव ही है | यद्यपि कुछ अल्प शिक्षित नेता अच्छे प्रशासक साबित हुए है  किन्तु उन्हें अपवाद मानकर ये तय करने का समय आ गया है कि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के शिक्षित होने का कोई मापदंड तय हो | लोकतंत्र मूलतः लोक कल्याणकारी व्यवस्था है जिसमें  शिक्षा शासन की मूलभूत जिम्मेदारी है | 21 वीं सदी के भारत में अशिक्षा किसी कलंक से कम नहीं है | और जब जनता के भाग्य विधाता अशिक्षित होते हैं तब वही सब कुछ होता है जो हम आये दिन देखते हैं | ये देखते हुए जम्मू नगर निगम के प्रस्ताव को एक पहल मानकर इस विचार को आगे बढ़ाया जाना देशहित में होगा | उल्लेखनीय है किसी भी बड़े सफर की शुरुआत एक छोटे से कदम से ही होती है |

- रवीन्द्र वाजपेयी  


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