Friday 18 November 2022

उद्धव ठाकरे : न इधर के रहे न उधर के रहे



शिवसेना उद्धव गुट के प्रवक्ता संजय राउत ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा दिए गए वीर सावरकर विरोधी बयान से नाराज होकर महा विकास आघाड़ी नामक गठबंधन तोड़ने की चेतावनी दे डाली | उद्धव  ठाकरे द्वारा उक्त बयान से असहमति व्यक्त करने के बाद उनके प्रवक्ता  द्वारा गठबंधन से अलग होने की बात इस बात का संकेत है कि उनको अब कांग्रेस के साथ जुड़ने का नुकसान समझ में आने लगा | सही बात ये है कि स्व. बाल ठाकरे द्वारा स्थापित शिवसेना जिस रास्ते पर चलती आई उसमें कांग्रेस और राकांपा के साथ हाथ मिलाने की  गुंजाईश ही नहीं थी | यद्यपि बीते कुछ सालों  में बेमेल गठबंधन का सबसे बड़ा उदाहरण जम्मू कश्मीर में भाजपा और पीडीपी की मिली जुली सरकार रही | लेकिन बाद में ये स्पष्ट हो गया कि भाजपा ने वह पांसा बहुत ही सोच समझकर चला था | इसीलिए जब महबूबा मुफ्ती की सरकार गिराने के बाद धारा 370 को मोदी सरकार द्वारा  विलोपित किया गया तो वह पाप भी पुण्य में बदल गया | उसके ठीक विपरीत उद्धव ने श्री राउत और रांकापा नेता शरद पवार के चक्रव्यूह में फंसकर अपनी फजीहत करवा ली | भाजपा के साथ दशकों पुराना उनका गठबंधन दरअसल हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को पर आधारित था | लेकिन अपने स्वर्गीय पिता की दूरगामी सोच  के विरुद्ध जाते हुए उद्धव ने सत्ता का मोह पाल लिया |  भले ही वे  मुख्यमंत्री बन बैठे और उनके बेटे आदित्य को भी  सत्ता का सुख मिल गया परन्तु शिवसेना की पूरी पुण्याई समंदर में डूब गयी | मुम्बई में आतंकवाद के सरगना दाउद  इब्राहीम के संरक्षक होने का आरोप शिवसेना जिन श्री पवार पर लगाया करती थी उन्हीं की शरण में उद्धव का जाकर बैठ जाना पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को हजम नहीं हो रहा था | स्मरणीय है कि गांधी परिवार शिवसेना के साथ गलबहियां करने के प्रति अनिच्छुक था किन्तु श्री पवार ने सोनिया गांधी से मिलकर उनको राजी कर लिया | लेकिन  खींचातानी खत्म नहीं हुई और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष  आगामी चुनाव अलग लड़ने की घोषणा दोहराते रहे | पूर्व में भी  श्री गांधी ने वीर सावरकर के बारे में तमाम ऐसी बातें कहीं जिनसे शिवसेना आगबबूला तो हुई  लेकिन सत्ता गंवाने  का साहस श्री ठाकरे न दिखा सके और बड़ी – बड़ी बातें करने वाले श्री राउत भी मिमियाकर रह गए | सही बात ये है कि कांग्रेस उस सरकार में आधे – अधूरे मन से शामिल थी क्योंकि सत्ता की असली मलाई शिवसेना और राकांपा खा रही थी  | बावजूद उसके शिवसेना में अंतर्विरोध उभरने लगे क्योंकि ठाकरे परिवार और श्री राउत जैसे कुछ दरबारियों को ही पूरा लाभ मिल रहा था | अंततः वह गठबंधन बिखराव का शिकार हो गया और अवसर की तलाश में बैठी भाजपा ने एकनाथ शिंदे की ताजपोशी करवाकर साबित कर दिया कि राजनीति केवल संभावनाओं  ही नहीं अपितु आश्चर्यचकित करने वाली बातों की भी समानार्थी है | महा विकास  आघाड़ी सरकार के गिरने से राकांपा  और कांग्रेस का तो कुछ गया नहीं लेकिन उद्धव ठाकरे का समूचा राजनीतिक वैभव  खत्म हो गया | यदि श्री पवार और कांग्रेस उनकी सरकार गिराते तब उनके पास पिता की विरासत तो रहती | लेकिन श्री शिंदे ज्यादा चतुर निकले जिन्होंने हिंदुत्व से भटकने का आरोप लगाकर उद्धव से सत्ता तो छीनी ही ,  पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह भी विवादग्रस्त बना दिया | कुल मिलाकर श्री ठाकरे उस खेल में  न इधर के रहे न उधर के रहे वाली हास्यास्पद स्थिति में आ खड़े हुए | यही कारण है कि उनकी नाराजगी से बेफिक्र होकर श्री गांधी लगातार वीर सावरकर के विरुद्ध कुछ न कुछ कहते रहे | इन्तेहा तो तब हो गई जब महाराष्ट्र आकर उन्होंने वही हिमाकत की जिसके बाद श्री राउत को गठबंधन छोड़ने की  धमकी देनी पड़ी | इस प्रकार कांग्रेस ने उद्धव को बुरी तरह फंसा लिया है | यदि वे गठबंधन तोड़ते हैं तब राहुल मुसलमानों को खुश करने में कामयाब हो जायेंगे जो कांग्रेस और  शिवसेना की जुगलबंदी से खफा होकर असदुद्दीन ओवैसी में संभावनाएं देखने लगे थे और यदि उद्धव आघाड़ी से पृथक नहीं होते तो हिन्दुओं के बीच उनका बचा – खुचा जनाधार भी दरक जाएगा |  एक संभावना ये भी जन्म ले सकती है कि वे दोबारा भाजपा के साथ आयें और एकनाथ शिंदे को आगे रखते हुए शिवसेना के एकीकरण की स्थितियां उत्पन्न होने दें | दरअसल उनकी समझ में आ गया है कि श्री शिंदे और भाजपा का गठजोड़ हिन्दू मतों को आकर्षित करने में सक्षम है जबकि कांग्रेस और रांकपा के साथ रहकर भी वे मुस्लिम मतों को आकर्षित नहीं कर सकेंगे | जमानत पर जेल से बाहर आते ही श्री राउत ने जिस तरह से शिंदे सरकार द्वारा किये गए अच्छे कार्यों को सराहा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से मिलने की इच्छा व्यक्त की वह किसी  रणनीति का हिस्सा हो सकता है | बहरहाल वीर सावरकर के  बहाने उद्धव अपने राजनीतिक पाप धोने का प्रयास कर  रहे हैं | इसमें वे कितने  सफल होंगे ये कहना कठिन है क्योंकि भाजपा दोबारा  दबाव की राजनीति को सहन करने के पहले दस बार सोचेगी | वैसे भी उद्धव और आदित्य दोनों अपनी आक्रामकता और विश्वसनीयता गँवा चुके हैं इसलिए  वे जिसके साथ रहेंगे उसके लिए बोझ साबित होंगे | शायद श्री गांधी ने भी यही सोचकर महाराष्ट्र में ही सावरकर जी पर  निशाना साधा ताकि ठाकरे परिवार खुद गठबंधन से दूर हो जाए | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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