Thursday 17 November 2022

कांग्रेस के गले की फ़ाँस बन रहा राजस्थान



राजस्थान कांग्रेस शासित सबसे प्रमुख राज्य है | मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पार्टी के वरिष्ट नेता है जिन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा रहा था किन्तु वे मुख्यमंत्री पद छोड़ने राजी नहीं हुए | और जब पार्टी के केन्द्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और महामंत्री अजय माकन नए नेता का चयन करने जयपुर गए तब गहलोत समर्थक विधायकों ने उनकी उपेक्षा करते हुए अलग से बैठक कर डाली जिसकी वजह से श्री गहलोत के स्थान पर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की आलाकमान की योजना  धरी की धरी रह गयी | उल्लेखनीय है मुख्यमंत्री को गांधी परिवार का करीबी माना जाता रहा है | इसीलिये जब श्री पायलट  उनके विरुद्ध बगावत का झंडा उठाये हुए कुछ विधायकों के साथ हरियाणा जा बैठे थे उस समय भी आलाकमान ने श्री गहलोत का साथ दिया था | लेकिन बीते कुछ समय से वह सचिन को उपकृत करने की मासिकता दिखा रही थी जिसके लिए श्री गहलोत को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का दांव चला गया | लेकिन जादूगर रहे मुख्यमंत्री ने हाथ की सफाई को पकड़ लिया और अपने समर्थक विधायकों के जरिये  आलाकमान से आये पर्यवेक्षकों को खाली हाथ लौटने जैसी परिस्थिति उत्पन्न करवा दी | उपेक्षा और अपमान का सामना करने के बाद दिल्ली लौटकर श्री खरगे और श्री माकन ने उनकी अवहेलना करने वाले विधायकों के विरुद्ध अनुशासन का डंडा चलाने की अनुशंसा सोनिया गांधी से की किन्तु श्री गहलोत ने आकर उनसे क्षमा याचना करते हुए अध्यक्ष के चुनाव से कन्नी काट ली | जिसके बाद श्री खरगे को मैदान में उतारा गया | उस दौरान राहुल गांधी की  भारत जोड़ो यात्रा शुरू हो जाने की वजह से पार्टी मुख्यालय सुनसान पड़ा हुआ था | श्रीमती गांधी खुद होकर फैसला करने में असमर्थ थीं क्योंकि श्री  गहलोत को ज़रा सा छेड़ने पर राजस्थान की सरकार हाथ से निकल जाने का खतरा था | और फिर मौका मिलते ही श्री गहलोत ने यात्रा में शामिल होकर राहुल की मिजाजपुर्सी कर डाली | उसके बाद उनका  आत्मविश्वास और बढ़ गया तथा वे आगामी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर तेजी से सक्रिय हो उठे | श्री खरगे के अध्यक्ष बन जाने के बाद भी महीना भर बीतने आया लेकिन राजस्थान में केन्द्रीय पर्यवेक्षकों को ठेंगा दिखाने वाले कांग्रेस विधायकों के विरुद्ध कार्रवाई और श्री गहलोत को हटाये जाने के सांकेतिक विरोध स्वरूप विधानसभा अध्यक्ष को अपना त्यागपत्र देने वाले विधायकों का मसला लंबित रखा गया | शायद आलाकमान भी ये मान बैठा था कि राजस्थान में यथास्थिति बनाये रखना ही सुरक्षित है | लेकिन गत दिवस अचानक खबर आई कि श्री माकन ने राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखकर कहा कि चूंकि उनकी दी गई रिपोर्ट पर गहलोत समर्थक उपद्रवी  विधायकों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की गयी  लिहाजा उनका राष्ट्रीय महामंत्री बना रहना निरर्थक है |  उनके त्यागपत्र का कारण ये बताया जा रहा है कि गहलोत समर्थक जिन विधायकों पर गाज गिराने की सिफारिश उन्होंने की उनको भारत जोड़ो यात्रा संबंधी महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा गया है | ज़ाहिर है ऐसा मुख्यमंत्री की सलाह और स्वीकृति से ही हुआ होगा | देखना यह है कि श्री खरगे और गांधी परिवार इस मामले में क्या कदम उठाता है क्योंकि श्री माकन दिल्ली के हैं और वहां होने जा रहे स्थानीय निकाय के चुनाव में उनकी बेरुखी कांग्रेस के लिए दूबरे में दो आसाढ़ वाली कहावत चरितार्थ कर देगी | उनके खफा होने  का एक कारण ये भी है कि अपमान तो उनका और श्री खरगे का एक साथ हुआ लेकिन वे तो अध्यक्ष बनकर संतुष्ट हो चले लेकिन उनकी अपनी किरकिरी हो गयी जो भेजे गए थे मुख्यमंत्री को हटवाने किन्तु चंद विधायकों की बदसलूकी पर उन्हें दण्डित तक नहीं करवा सके | निश्चित तौर पर ये किसी भी नेता के लिए अपमानजनक स्थिति है | लेकिन श्री माकन ने जो कदम उठाया वह अप्रत्यक्ष रूप से गांधी परिवार के लिए चेतावनी है क्योंकि ये बात सभी जानते हैं कि बतौर अध्यक्ष श्री खरगे इस बारे में निर्णय लेने का खतरा शायद ही उठाएंगे | हालाँकि श्री माकन की हस्ती इतनी बड़ी भी नहीं है कि वे गांधी परिवार से टकरा सकें लेकिन उनका त्यागपत्र और उसके कारणों से इतना तो स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस के उच्च नेतृत्व पर अनिर्णय की जो प्रवृत्ति हावी हो गई है उसके कारण अनेक समस्याएँ जन्म ले रही हैं | राजस्थान का मसला जिस तरह उलझा उसके लिए जितनी श्री गहलोत और श्री पायलट के बीच की रस्साकशी जिम्मेदार है उतना  ही कांग्रेस आलाकमान का लटकाऊ रवैया जिसकी वजह से वह चाहते हुए भी मुख्यमंत्री पद पर अपनी पसन्द का व्यक्ति नहीं बिठा पा रहा | सबसे बड़ी बात ये है कि न तो पार्टी ने श्री पायलट द्वारा अतीत में दिखाए बगावती तेवरों पर  कार्रवाई की और न ही वह गहलोत समर्थक   विधायकों की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगाने का साहस कर पा रही है | इसी का लाभ उठाकर श्री माकन ने अपना गुस्सा व्यक्त करने का साहस दिखाया |  इस समूचे प्रकरण में पार्टी  का उच्च नेतृत्व जिस प्रकार किंकर्तव्यविमूढ़ होकर बैठा हुआ है उससे अनुशासनहीनता करने वालों के हौसले बुलंद हो रहे हैं | कहाँ तो श्री गांधी के हवाले से ये सुनाई दिया था कि  चाहे सरकार चली जाए लेकिन अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं  की जायेगी और कहाँ अनुशासन की धज्जियां उड़ाने वालों को उनकी यात्रा के इंतजाम में लगाया जा रहा है | श्री माकन का त्यागपत्र वैसे तो शायद ही स्वीकार होगा लेकिन इसके जरिये उन्होंने श्री खरगे के सामने एक चुनौती तो पेश कर ही दी है | जिससे वे कैसे निबटते हैं इसी से उनकी कार्यशैली की बानगी मिल जायेगी |

- रवीन्द्र वाजपेयी


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