Monday 13 February 2023

ॐ और अल्लाह यदि एक हैं तो ॐ कहने से परहेज क्यों




दिल्ली के रामलीला मैदान में जमीयत उलेमा ऐ हिंद के अधिवेशन में बीते शनिवार को उसके प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि ये मुल्क जितना प्रधानमंत्री मोदी और रास्वसंघ प्रमुख मोहन भागवत का है उतना ही उनका भी। उसके बाद वे बोले कि संघ से उनकी दुश्मनी नहीं है अपितु मतभेद हैं जिसे दोनों करीब आकर दूर कर सकते हैं । मौलाना ने मुस्लिमों के साथ भेदभाव का सवाल खड़ा करते हुए मुस्लिम और ईसाई समाज में जो दलित हैं उनको भी आरक्षण देने की मांग की। लेकिन वे ये कहना नहीं भूले कि वैसे तो इस्लाम में जातिगत भेदभाव नहीं होता किंतु हिंदुओं की देखा सीखी ये बुराई उसमें भी घुस आई। और भी ज्वलंत मुद्दों पर वे बोले। गत दिवस अन्य धर्मों के धर्माचार्य भी आमंत्रित किए गए जिसे अच्छा कदम मानकर हिंदू और जैन संत जमीयत के मंच पर उपस्थित हुए किंतु बजाय समन्वय और सम्मान के मौलाना मदनी अपनी असलियत पर उतर आए और संतों से मुखातिब होकर बोले कि डा. भागवत कहते हैं भारत में रहने वाले हर किसी के पूर्वज हिन्दू थे किंतु तुम्हारे पूर्वज हिन्दू नहीं मनु थे जिन्हें मुस्लिम आदम और ईसाई एडम कहते हैं। इसके आगे उन्होंने कहा कि ये पता करने पर कि मनु किसकी पूजा करते  होंगे तो ज्ञात हुआ वे ॐ को पूजते थे जिसका कोई आकार नहीं है तथा वह सर्वव्यापी है और उसे ही मुसलमान अल्लाह कहते हैं। मदनी ने ये भी कहा कि तुम लोग हिंदू की नहीं मनु की संतान हो जो अल्लाह द्वारा धरती पर उतारे गये पहले इंसान थे। इस प्रकार उन्होंने ये साबित करना चाहा कि मुस्लिमों के पूर्वजों को हिंदू बताना गलत  है क्योंकि खुद हिंदू भी मनु या आदम के वंशज है। उनके ये उद्गार सुनकर  जैन मुनि नाराज होकर जाने लगे जिसके बाद हिंदू संत भी उठकर चले गए । लेकिन जाने के पहले मदनी की बात का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि मेलजोल के लिए बुलाने के बाद इस तरह की भड़काऊ बातें करना अपमाजनक है। बहरहाल इस वाकये से एक बार ये साबित हो गया कि जिस देवबंदी इस्लामिक केंद्र से जमीयत जुड़ी हुई है वह कितनी भी उदारवादी बातें करे लेकिन उसके मन में भरी नफरत और अलगाववादी सोच मिटने की बजाय नए नए रूप में सामने आती रहती है। डा. भागवत से तो मान लिया मौलाना मदनी और अन्य मुस्लिम नेताओं का सहमत होना नामुमकिन है लेकिन इस्लाम के साथ हिंदू आध्यात्म और दर्शन के अध्येता केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने भी हाल ही में कहा है कि उन्हें हिंदू कहा जाए क्योंकि इस देश का हर वासी हिंदू ही है। मौलाना को जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री द्वय क्रमशः डा.फारुख अब्दुल्ला और गुलाम नबी आजाद के उस बयान पर भी ध्यान देना चाहिए कि सैकड़ों साल पहले उनके पुरखे हिंदू ही थे । और तो और खुद मुसलमान ये कहते हैं कि भारत को हिन्दू शब्द तो विदेशी हमलावरों ने दिया जो स का उच्चारण ह करने के कारण सिंधु के इस पार के इलाके को हिंदुस्तान कह बैठे। हिंदुकुश की पहाड़ियों का नाम आज भी यथावत है। मुगलिया इतिहास भी इस देश को हिंदुस्तान ही कहता रहा जिसका शाब्दिक अर्थ हिंदुओं का स्थान अर्थात देश ही हुआ। इस प्रकार भारत पर हमला करने आए मुसलमान या मंगोलों में से जिसने भी ये नामकरण किया किंतु इसे हिंदुस्तान ही कहा जिसका उच्चारण दोष अलग करने पर वह हिन्दुस्थान ही होता है। ऐसे में यदि संघ कहता है कि यह हिंदू राष्ट्र है तो मौलाना और उनके अनुयायियों का रक्तचाप क्यों बढ़ने लगता है ? जब तक आजादी नहीं मिली और पाकिस्तान नहीं बना तब तक सारे मुस्लिम नेता यहां तक कि मो.अली जिन्ना तक इस देश को हिंदुस्तान ही कहा करते थे। यदि संविधान में भारत न लिखकर हिन्दुस्तान लिखा जाता तब हमारी नागरिकता हिंदुस्तानी कहलाती और तब क्या मदनी साहब उसे अस्वीकार करते? उन जैसी अलगाववादी मानसिकता के कारण ही भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांग जोर पकड़ रही है। यहां तक कि भारत नाम भी हिंदू परंपरा से ही आया है तब क्या उसका भी विरोध होगा। अंग्रेजी का इंडिया भी सिंधु के अंग्रेजी नाम   इंडस पर आधारित है। संविधान में इस देश का नाम इंडिया जो कि भारत है के स्थान पर हिंदुस्थान जो कि भारत है लिखा जाता तो मौलाना एवं उन जैसी सोच रखने वाले इस तरह की जुर्रत न करते होते। बेहतर है भारत को इंडिया की बजाय हिंदुस्तान कहना ही शुरू किया जाए जिससे यहां रहने वाले के नाम के साथ हिंदू शब्द अनिवार्य रूप से जुड़े। मनु को आदम बताते हुए हमारे संतों से ये कहना कि तुम लोग हिंदुओं की नहीं बल्कि मनु अर्थात आदम की औलाद हो ,  विभाजनकारी सोच को बढ़ावा देने का षडयंत्र है जिसकी गहराई को समझा जाना चाहिए। जरा सोचिए जब मौलाना मदनी जैसे लोग हिंदू और जैन संतों के सामने यदि इस तरह का जहर उगलने बाज नहीं आए तब देवबंद की दीवारों के पीछे इस्लामिक शिक्षा के नाम पर क्या पढ़ाया जाता होगा इसका अंदाज लगाया जा सकता है। समय आ गया है जब इस तरह की  बातों का प्रतिकार होना चाहिये ताकि नई पीढ़ी धर्मनिरपेक्षता की मृग मरीचिका में फंसकर अपनी पवित्र विरासत को न खो बैठे।भारत एक प्राचीन देश है जिसका आध्यात्म ,संस्कृति,  साहित्य और इतिहास विश्व विदित है। जबकि मौलाना साहब जिस धारा से जुड़े हैं उसका प्रादुर्भाव ही लगभग डेढ़ हजार वर्ष  पहले हुआ । वे अपने विश्वास का पालन करें इससे किसी को आपत्ति नहीं है किंतु यदि उनकी नजर में ॐ और अल्लाह एक है तो फिर उन्हें ॐ बोलने में संकोच नहीं करना चाहिए क्योंकि बकौल मौलाना मदनी इसका कोई आकार न होने से ये बुत परस्ती से परे है। लेकिन हिंदुओं को आदम की औलाद मानने वाले मौलाना को योग और सूर्य नमस्कार में स
सांप्रदायिकता दिखती है, शिक्षा के भगवाकरण से मदनी साहब को चिंता है, तीन तलाक पर प्रतिबंध से वे विचलित हैं और समान नागरिक संहिता से उन्हें डर लग रहा है क्योंकि तब ढेर सारी अलगाववादी बातें प्रतिबंधित हो जायेंगी। दरअसल देश के मुसलमानों के सबसे बड़े दुश्मन ये मौलाना रूपी लोग ही हैं जो अपनी कौम को सदियों पुरानी सोच से बाहर निकलने नहीं देना चाहते। दुर्भाग्य तो यह है कि ओवैसी जैसे विदेश में शिक्षित नेता भी मौलानाओं जैसी दकियानूसी सोच से बाहर आने राजी नहीं है। जब तक मुस्लिम समाज के भीतर से सुधार के स्वर नहीं उठते तब तक मदनी और ओवैसी उन्हें बरगलाते रहेंगे और मुसलमान मुख्य धारा से अलग थलग बना रहेगा जो उसके पिछड़ने की भी वजह है।

रवीन्द्र वाजपेयी 

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