Friday 3 February 2023

अडानी पर लगे आरोपों की निष्पक्ष जांच जरूरी



अंजाम क्या होगा ये तो फिलहाल कहना कठिन है किंतु हफ्ते भर पहले दुनिया के तीसरे और भारत के सबसे धनाढ्य व्यक्ति कहलाने वाले अडानी समूह के कर्ताधर्ता गौतम अडानी के बारे में अर्श से फर्श पर आने की कहावत पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। अमेरिका के एक छोटी से संस्थान हिंडनबर्ग द्वारा ज्योंही अडानी समूह में व्याप्त वित्तीय गड़बड़ियों पर एक विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट सार्वजनिक की गई त्योंही पूरी दुनिया में इस समूह की साख एक झटके में धराशायी हो गई। इसका कारण उसका वैश्विक व्यवसायिक विस्तार है। चूंकि अडानी समूह ने विदेशी बैंकों और वित्तीय संस्थानों से भी भारी मात्रा में कर्ज ले रखे थे इसलिए उन सबकी सांसें ऊपर नीचे होने लगीं। समूह की कंपनियों के शेयरों के दाम पेड़ से सूखे पत्तों की तरह गिरने लगे। भारत में इस घटनाक्रम से ज्यादा बवाल इसलिए मचा क्योंकि स्टेट बैंक सहित अनेक बैंकों के अलावा भारतीय जीवन बीमा निगम ने अडानी समूह  को जो कर्ज दिया उसे लेकर लंबे समय से ये आरोप लगता रहा कि वह उसकी संपत्ति से कहीं अधिक है । जिस रिपोर्ट पर ये तूफान उठा उसके अनुसार अडानी समूह ने अपने शेयरों का मूल्य वास्तविकता से कहीं ज्यादा दिखाकर कर्ज देने वालों को धोखे में रखा जिससे उनके लिए उसकी वसूली मुश्किल होगी। उक्त संस्थान इसके पूर्व भी अनेक अन्तर्राष्ट्रीय कंपनियों की इसी तरह पोल खोल चुका था। वह कुछ व्यक्तियों का छोटा सा समूह है जो कंपनियों के कारोबार का सूक्ष्म अध्ययन कर उनकी गड़बड़ियां उजागर करता है। यद्यपि उस पर आरोप है कि इससे उसे व्यवसायिक लाभ पहुंचता है । अडानी समूह ने भी उसी आरोप को दोहराया है। इस बारे में सबसे बड़ी बात ये हुई  कि उक्त रिपोर्ट अडानी समूह द्वारा निवेशकों से 20 हजार करोड़ उगाहने के लिए जारी इश्यू (एफ पी ओ) के एक दिन पहले सार्वजनिक की गई। सच्चाई जो भी हो लेकिन उक्त रिपोर्ट ने गौतम अडानी की ऊंची उड़ान को न सिर्फ रोका अपितु उसे आपातकालीन लैंडिंग हेतु बाध्य कर दिया। उसके शेयर लगातार नीचे आते जा रहे हैं । अपनी साख बचाने समूह ने एफपीओ में निवेश करने वालों के पैसे लौटाने का ऐलान भी कर दिया जबकि उसे आशातीत समर्थन मिला था। समूह ने रिपोर्ट जारी करने वाले संस्थान को 400 पृष्ठ का स्पष्टीकरण भेजने के साथ ये आरोप भी मढ़ा कि यह रिपोर्ट भारत के विरुद्ध षडयंत्र है ताकि उसकी विकास यात्रा में रुकावट आए। कानूनी कारवाई की धमकी भी दी गई । लेकिन इसका असर निवेशकों पर नहीं हुआ तथा अडानी नाम वाली लगभग सभी कपनियों के शेयर पूंजी बाजार में गोते लगाने लगे जिससे उसका बाजार में मूल्यांकन भी लगातार कम होता जा रहा है। इस बारे में उल्लेखनीय है कि अडानी और अंबानी ( मुकेश) समूह काफी समय से विपक्ष के निशाने पर हैं। राहुल गांधी तो हर भाषण में उनका उल्लेख करते हैं। ये आरोप लगाया जाता है कि मोदी सरकार आने के बाद इन दोनों  समूहों को सरकार का संरक्षण मिलने से ये अनुचित तरीकों से आगे बढ़ते जा रहे हैं। विशेष रूप से गौतम अडानी पर ज्यादा हमले हुए। आलोचकों का ये दावा है कि अडानी समूह को विदेशों में भी बड़े काम दिलवाने में सरकारी प्रभाव का इस्तेमाल हुआ । इसके अलावा भारतीय बैंकों तथा भारतीय जीवन बीमा निगम ने भी उनकी हैसियत से ज्यादा का कर्ज बांटकर जनता का पैसा फंसवा दिया। इसीलिए जैसे ही संदर्भित रिपोर्ट आई उसके बाद बैंकों ने अडानी से पूछताछ शुरू की वहीं रिजर्व बैंक भी सक्रिय हो उठा।उधर विपक्ष संसद में आक्रामक है। प्रधान न्यायाधीश अथवा जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) से जांच करवाने की मांग भी उठ रही है। यद्यपि गौतम अडानी साख बचाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं किंतु उनकी विश्वसनीयता पर मंडरा रहे  बादल और घने होते जा रहे हैं। अमेरिका के शेयर बाजार से वे बाहर किए जा चुके हैं और भारत में भी उनके शेयरों की कीमत हर दिन गिर रही है। कुछ कंपनियों के शेयर तो आधे तक घट गए। हालांकि भारतीय बैंक अभी भी अपने कर्ज की अदायगी को लेकर निश्चिंत हैं। हो सकता है जैसा गौतम अडानी दावा कर रहे हैं कि अपनी भारी सुरक्षित नगदी से वे इस संकट से बाहर भी आज जायेंगे  किंतु विजय माल्या प्रकरण के बाद भी जिस तरह से उद्योगपतियों को कर्ज देने में हुए बैंक घोटाले सामने आते गए उससे ये तो साफ है  कि बैंकिंग  प्रणाली में भी  भ्रष्टाचार की फसल लहलहा रही है। अडानी समूह का गुजरात कनेक्शन स्वाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री से भी जोड़ा जाता है जिस कारण से वे विपक्ष की आंख में किरकिरी बन गए।हालांकि उदारीकरण के बाद शुरू हुए उधारीकरण  से इस तरह के घोटाले होते ही जा रहे हैं। हर्षद मेहता से इसकी शुरुवात हुई । इनमें बैंकों और जनता दोनों का पैसा डूबता है। सेबी नामक संस्था शेयर बाजार के क्रियाकलापों पर नजर रखती है । लेकिन उसके बाद भी गड़बड़ियां हो रही हैं । यद्यपि विकसित देशों में भी ये सब होता है किंतु भारत की अर्थव्यवस्था और आम निवेशक इतना सुदृढ़ नहीं है जो ऐसे झटके लगातार सहन कर सके। इस मामले में गौतम अडानी से ज्यादा  केंद्र सरकार की साख दांव पर लगी है। इसलिए उसे चाहिए कि वास्तविकता को सामने लाया जावे। अमेरिका से रिपोर्ट जारी होने के बाद से ही सरकार पर अडानी समूह का बचाव किए जाने के आरोप लग रहे हैं। 9 राज्यों के चुनाव निकट होने से विपक्ष को अच्छा मुद्दा हाथ लग गया। सरकार को उक्त रिपोर्ट की निष्पक्ष जांच करवाकर दोषियों को उचित दंड दिलवाने की व्यवस्था करनी चाहिए क्योंकि इस तरह के घोटालों से विदेशी निवेशक भी छिड़कते हैं । और यदि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट किसी व्यवसायिक कूट रचना का परिणाम है तो उसे भी साफ किया जावे।

रवीन्द्र वाजपेयी 


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