Thursday 2 February 2023

बजट: लोक लुभावन की बजाय ठोस उपायों पर जोर



वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने लगातार पांचवां बजट पेश करते हुए उम्मीद के मुताबिक मध्यमवर्ग को खुश करने का जो प्रयास किया उसका निशाना सीधे सीधे चुनावों पर है। उल्लेखनीय है इसी वर्ष 9 राज्यों में विधानसभा और अगले वर्ष  लोकसभा का चुनाव होना है। मोदी सरकार आने के बाद से आयकर के ढांचे में मामूली फेरबदल तो किए गए किंतु छूट की सीमा यथावत रखने से नौकरीपेशा करदाता को कोई लाभ नहीं हुआ। इस वर्ष नई आयकर योजना में छूट की सीमा 5 से बढ़ाकर 7 लाख कर दी गई और पूरे बजट में वित्तमंत्री को सबसे ज्यादा तालियां इसी पर मिलीं। हालांकि अनेक आयकर दाताओं के साथ विपक्ष का आरोप है कि यह महज आंकड़ों की बाजीगरी है क्योंकि इस योजना में केवल 50 हजार की एकमुश्त बचत छूट ही मिलेगी जबकि पुराने तरीके को चुनने वाले करदाता को विभिन्न बचतों का लाभ मिलने से  10 लाख तक की आय पर भी कर मुक्त हुआ जा सकता है। हालांकि नई योजना में करदाता को बचत योजनाओं में निवेश के बिना ही 7 लाख तक कर के दायरे से मुक्ति मिल जाती है। इसके पीछे का उद्देश्य आयकरदाताओं की संख्या में वृद्धि करने के साथ ही ज्यादा लोगों को आयकर विवरणी भरने प्रेरित करना है जिससे आर्थिक स्थिति के मूल्यांकन में सुविधा हो। जीएसटी लागू होने से यद्यपि सरकार के पास मूल्य नियंत्रण का सीमित अधिकार रह गया है इसलिए वह मामूली फेरबदल कर सकी जिससे टीवी , मोबाइल , साइकिल और खिलौने जहां सस्ते हुए वहीं सोने , चांदी के दाम बढ़ेंगे।इलेक्ट्रॉनिक वाहनों की कीमतें कम करने हेतु लीथियम बैटरी का आयात तो सस्ता किया गया किंतु पेट्रोल , डीजल और रसोई गैस के दाम घटाने की चर्चा तक नहीं हुई । दूसरी ओर इस बजट में कौशल विकास पर जोर देने हेतु युवाओं को छात्रवृत्ति के साथ तकनीकी प्रशिक्षण देने का जो प्रावधान है वह ईमानदारी से अमल में आ जाए तो बड़ी उपलब्धि होगी। मुफ्त खाद्यान्न योजना की अवधि में वृद्धि अब मजबूरी बन गई है परंतु इंफ्रास्ट्रक्चर पर 10 लाख करोड़ रु. का प्रावधान बजट के विकासोन्मुखी चेहरे को उजागर करता है। इसके अंतर्गत हवाई अड्डे , हेलीपैड,  रेलवे स्टेशनों का उन्नयन , नर्सिंग कालेज जैसे निर्माण होने से देश आगे बढ़ेगा। वहीं प्रधानमंत्री आवास योजना का आवंटन 66 फीसदी बढ़ाए जाने से आवास समस्या हल की जा सकेगी। उक्त दोनों प्रावधान सरकारी खर्च को बढ़ाएंगे जिससे उद्योग व्यापार जगत को गति मिलेगी। बजट में जैविक कृषि और मोटे अनाज उत्पादन के साथ ही गोबर आधारित उर्वरक की दिशा में किए जाने वाले प्रयास शुभ संकेत हैं। हालांकि वित्तमंत्री ने आयकर के अलावा ऐसा कोई बिंदु शामिल नहीं किया जिससे आम जनता को तत्काल राहत मिलती दिखाई दे। इसीलिए विपक्ष को आलोचना के लिए काफी सामग्री मिल गई। उन्होंने महंगाई और बेरोजगारी  जैसी समस्याओं का प्रत्यक्ष समाधान भी प्रस्तुत नहीं किया किंतु इंफ्रास्ट्रक्चर और आवास योजना में यदि ज्यादा पैसा खर्च होता है तो उससे रोजगार सृजन होना तय है परंतु महंगाई पर बजट खामोश है। बावजूद इसके सूक्ष्म ,लघु तथा मध्यम उद्योगों के लिए बिना गारंटी कर्ज के लिए 2 लाख करोड़ का आवंटन स्वागत योग्य है क्योंकि सकल घरेलू उत्पादन में विशेष रूप से कोरोना के बाद से इस क्षेत्र का महत्व बढ़ा है।  यद्यपि बुजुर्गो और महिलाओं के लिए आकर्षक जमा योजना घोषित की गई किंतु उसके अलावा छोटी बचत को प्रोत्साहित करने में वित्तमंत्री ने खास रुचि नहीं दिखाई। शायद इसका कारण बाजार में मांग बढ़ाकर विकास दर को मजबूती देना है । यदि वह वाकई 7 फीसदी रही तो इसे सरकार की सफलता माना जाएगा और देश की वैश्विक रेटिंग सुधरेगी। किसान आंदोलन हालांकि फिलहाल ठंडा है और कृषि उत्पादकों को दाम भी अच्छे मिल रहे हैं किंतु चुनाव आते तक आंदोलन फिर शुरू हो सकता है। उस दृष्टि से बजट में कुछ खास नजर नहीं आता । इसीलिए भाजपा समर्थक भारतीय किसान संघ तक वित्तमंत्री से नाराज है। ऐसा लगता है अर्थव्यवस्था के बारे में जो मजबूत संकेत विशेष रूप से जीएसटी की रिकॉर्ड वसूली से मिले उनसे सरकार सोच रही है कि वह विकास के मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन करते हुए जनता को प्रसन्न करने में कामयाब हो जायेगी। 2024 के लोकसभा चुनाव हेतु किए गए हालिया सर्वेक्षण के निष्कर्ष भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वापसी बता रहे हैं। लेकिन सरकार को पता है अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में कभी भी बड़ा बदलाव होने पर महंगाई और बढ़ने का खतरा हो सकता है। इसीलिए पेट्रोलियम पदार्थों के वैश्विक मूल्य कम होने के बावजूद उनकी कीमतों को घटाने का मामला आपातकालीन उपाय के तौर पर सुरक्षित रखा गया है। इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को सस्ता कर कच्चे तेल का आयात घटाना भी सरकार की दूरगामी योजना का हिस्सा है।परिवहन मंत्री नितिन गडकरी इस दिशा में काफी प्रयासरत हैं। 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन का लक्ष्य इसीलिए रखा गया है। पर्यावरण के साथ के साथ ही जल संरक्षण के बारे में भी अनेक प्रावधान वित्त मंत्री ने किए जो बौद्धिक विमर्श तक सीमित रहने के बाद भी बजट में गहराई को दर्शाते हैं। विदेश यात्रा करने वाले लाखों लोगों द्वारा आयकर विवरणी न भरने का जिक्र हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा किया गया था। बजट में इसे अनिवार्य कर दिया गया जिससे काले धन से दुनिया घूमने वालों पर शिकंजा कसेगा। वहीं वित्तमंत्री ने घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। कुल मिलाकर बजट मौजूदा हालातों में संतुलित ही कहा जायेगा। वित्तमंत्री ने सीधे जनता की जेब गर्म न की हो लेकिन उसे हल्का करने से भी वे बचीं। सबसे बडी बात ये रही कि लोकलुभावन न होते हुए भी इस बजट को जनविरोधी कहना अतिशयोक्ति होगी। शेयर बाजार का बजट भाषण के दौरान उछलना और फिर सामान्य हो जाना इस बात का सूचक है कि सरकार ने कृत्रिम वृद्धि की बजाय ठोस उपाय तलाशे हैं । वित्तमंत्री द्वारा खैरातों की बरसात से बचने का अंदाज ये साबित करता है कि सरकार में पर्याप्त आत्मविश्वास है । और इसी के दम पर देश कोरोना से लड़कर बाहर आ सका। ऐसे में जब अमेरिका , जापान , ब्रिटेन और चीन की विकास दर ठहराव का संकेत दे रही है तब भारत का 7 फीसदी या उसके करीब रहना उत्साहवर्धक है। और फिर श्रीमती सीतारमण पर प्रधानमंत्री का विश्वास भी ये जताने को काफी है कि हालात काबू में हैं । वरना वे पूरे पांच साल वित्तमंत्री न रह पातीं ।

रवीन्द्र वाजपेयी 

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