Wednesday 8 February 2023

सदन को बाधित कर विपक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सरकार की मदद कर रहा



बजट सत्र संसद का सबसे महत्वपूर्ण और लंबा सत्र होता है । इस सत्र में देश की भावी आर्थिक दशा और दिशा का निर्धारण होता है। हालांकि देखा गया है की बजट के बारे में बहस का स्तर निरंतर गिरता चला जा रहा है और इसीलिए इस महत्वपूर्ण विषय पर जितना गंभीर विमर्श होना चाहिए उतना नहीं हो पाता। इसके लिए केवल विपक्ष ही नहीं अपितु सत्ता पक्ष भी बराबर का दोषी है । ये कहना गलत नहीं है कि अब सांसद पहले की तरह तैयारी कर नहीं आते। यद्यपि नई संसद के गठन के पूर्व नवनिर्वाचित सदस्यों को वरिष्ठ सांसदों द्वारा संसदीय प्रक्रिया से प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम भी रखा जाता है । संसद में हुई पुरानी बहसों का रिकॉर्ड संसद के पुस्तकालय में सुरक्षित है । जिनसे सांसदों को मार्गदर्शन लेना चाहिए परंतु   आज के सांसद पुस्तकालय में बहुत कम दिखाई देते हैं। वैसे न केवल बजट बल्कि अन्य सत्रों में भी जरा जरा सी बातों पर विपक्ष हंगामा करते हुए सदन को चलने नहीं देता जिसके कारण से बहुत से महत्वपूर्ण प्रस्ताव बिना समुचित बहस के पारित हो जाते हैं। ऐसा होने से सत्ता पक्ष विधायी कार्य करने की औपचारिकता तो पूरी कर देता है किंतु यह परिपाटी संसदीय प्रजातंत्र की सार्थकता और उपयोगिता दोनों पर प्रश्न चिन्ह लगाती है। संसद के मौजूदा बजट सत्र में विपक्ष द्वारा गौतम अडानी की कंपनियों के बारे में अमेरिका की हिंडनबर्ग नामक संस्था की रिपोर्ट को लेकर हंगामा मचा रखा है। उसकी मांग है कि इस मामले की जांच के लिए  संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया जाए। दूसरी तरफ सत्ता पक्ष का कहना है कि इस , विवाद से सरकार और संसद दोनों का कोई संबंध नहीं है और शेयर मार्केट को नियंत्रित निर्देशित करने वाली संस्था सेबी इस मामले की जांच कर ही रही है।इसलिए इस पर चर्चा गैर जरूरी होगी ।  वहीं विपक्ष का आरोप है कि सरकार के इशारे पर भारतीय स्टेट बैंक और जीवन बीमा निगम जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों ने गौतम अडानी की कंपनियों को अनाप शनाप कर्ज देकर  आम जनता द्वारा जमा किया हुआ धन खतरे में डाल दिया है । जवाब में सरकार कह रही है कि जो कुछ हुआ  वह नियमानुसार है और इस वजह से जेपीसी के गठन का कोई औचित्य और आवश्यकता नहीं है । लेकिन अपनी मांग को लेकर  विपक्ष सदन नहीं चलने दे रहा जिससे जनता के धन की बर्बादी हो रही है। यद्यपि अतीत में जब मौजूदा सत्ताधीश विपक्ष में रहे तब वे भी सदन को बाधित करने के लिए इसी तरह का आचरण किया करते थे। गत दिवस राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस होने के  सरकारी अनुरोध पर विपक्ष ने सहमति दी जिसके बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे आरोप लगाया कि उनके संरक्षण के कारण ही गौतम अडानी देखते देखते देखते समृद्धि और सफलता के चरम शिखर पर जा पहुंचे। श्री गांधी के भाषण का अधिकांश समय अडानी और मोदी के संबंधों  पर केंद्रित था। लेकिन   भाषण के अंत में राष्ट्रपति के अभिभाषण के समर्थन या विरोध का कोई उल्लेख उन्होंने नहीं किया । इससे साबित होता है कि विपक्ष के वरिष्ठ नेता तक को इस बात का ज्ञान नहीं था कि वह किस विषय पर बोलने खड़े हुए थे। आज प्रधानमंत्री राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपना वक्तव्य देने जा रहे हैं। निश्चित रूप से वे श्री गांधी के आरोपों का सिलसिलेवार जवाब देंगे और जैसा कि बीते 8 वर्षों में देखने  जब-जब भी श्री मोदी ने सदन में किसी भी विषय पर  भाषण दिया तब तब उन्होंने विपक्ष को पूरी तरह धराशायी कर दिया । निश्चित रूप से गौतम अडानी की कंपनियों को लेकर हिंडनबर्ग द्वारा किया गया खुलासा कई गंभीर बातों की ओर इशारा करता है क्योंकि इससे भारत में पूंजी बाजार के नियमन में पारदर्शिता का सवाल उठ खड़ा हुआ है। लेकिन इस विषय पर  यदि आगे भी सदन को चलने नहीं दिया गया और गतिरोध बना रहा तो इससे नुकसान विपक्ष का ही होगा।  उदाहरण के लिए कल  राहुल गांधी ने सरकार के विरुद्ध आरोपों की जो झड़ी लगाई उससे विपक्ष की जागरूकता और सक्रियता दोनों का परिचय मिला। भारत जोड़ो यात्रा के बाद यह श्री गांधी का संसद में पहला भाषण था जिसमें उनका जोश पूरी तरह नजर आया।  लेकिन विपक्ष ने आगे भी  संसद में गतिरोध जारी रखा तो फिर  सरकार  अपने प्रस्तावों को तो हंगामे के बीच भी पारित करवा लेगी परंतु विपक्ष सरकार को घेरने के अपने अवसर को गंवा देगा। वैसे राज्यसभा में भी कांग्रेस ने अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस की शुरुवात कर दी है। और लोकसभा में प्रधानमंत्री के भाषण के बाद यह पारित भी हो जायेगा । इसके बाद अगर विपक्ष जेपीसी की मांग पर अड़ा रहकर सदन को चलने नहीं देता तो फिर ये मानकर चलना होगा कि उसके पास मुद्दों का अभाव है और इसीलिए देश में ये अवधारणा मजबूत होती जा रही है कि कांग्रेस विपक्ष की भूमिका का निर्वहन सही तरीके से नहीं कर पा रही। बेहतर होगा सभी विपक्षी दल बजट सत्र का सदुपयोग करें। सरकार को घेरने का उन्हें पूरा अधिकार है और यह उनका लोकतांत्रिक कर्तव्य भी है। लेकिन संसदीय प्रक्रिया को बाधित करने से  सिवाय तात्कालिक प्रचार के और कुछ हासिल नहीं होता। देश के सामने अडानी से भी महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन पर संसद में विस्तृत चर्चा होनी चाहिए किंतु इसके लिए सदन का चलना और उसमें विपक्ष का रहना जरूरी है। बेहतर होगा विपक्ष अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए चतुराई के साथ पेश आए। अल्पमत में होने के बाबजूद भी वह चाहे तो सरकार की गलतियों का पर्दाफाश कर सकता है लेकिन ये तभी संभव है जब सदन सुचारू रूप से चले।अन्यथा सदन के संचालन को बाधित कर वह अप्रत्यक्ष रूप से सरकार को मदद ही पहुंचा रहा है।

रवीन्द्र वाजपेयी 

No comments:

Post a Comment