Monday 20 February 2023

भारत से रिश्ते सुधारने में ही पाकिस्तान का कल्याण है



पाकिस्तान से आ रही खबरों पर आम भारतीय का खुश होना स्वाभाविक है। इसकी वजह उसका जन्म से आज तक का आचरण है। बीते 75 साल में इस पड़ोसी देश ने भारत के साथ  नफरत , धोखा और दुश्मनी का भाव ही प्रदर्शित किया। यदि इसके हुक्मरान सहअस्तित्व की भावना को लेकर चलते तो दोनों देश मिलकर एशिया में चीन की टक्कर की महाशक्ति बन सकते थे। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है बांग्ला देश जिसने महज 51 साल के भीतर ही अपनी आर्थिक स्थिति में आश्चर्यजनक सुधार करते हुए निर्यात के जरिए अपने विदेशी मुद्रा भंडार को लबालब कर लिया । 1971 में अस्तित्व में आते समय वह गरीब देशों में शुमार होता था किंतु इस्लामिक देश होते हुए भी उसने आधुनिकता को प्रश्रय दिया। हालांकि वहां भी भारत विरोधी सत्ता बनी और मुस्लिम कट्टरता भी कम नहीं है जिसका प्रमाण हिंदू मंदिरों पर आए दिन होने वाले हमले हैं लेकिन भारत के साथ सीमा एवं अन्य विवादों को बातचीत के जरिए सुलझाने की उसकी नीति ने युद्ध की स्थित नहीं आने दी। वहां के शासक और सेना दोनों इस बात को समझ चुके हैं कि अव्वल तो वे भारत की सैन्य शक्ति के सामने पिद्दी साबित होंगे और दूसरा ये कि हथियारों की होड़ में शामिल होने की बजाय आर्थिक विकास पर ध्यान दिया जावे। बांग्ला देश में भी शुरुआती दौर में पाकिस्तान की तरह से ही सेना द्वारा तख्ता पलटने की कार्रवाई हुई। और सैनिक तानाशाह सत्ता पर काबिज हुए। लेकिन अंततः देश ने लोकतांत्रिक पद्धति को ही प्राथमिकता दी जिसका सुपरिणाम राजनीतिक स्थिरता और भारत के साथ मधुर संबंधों के रूप में देखने मिला। इसके ठीक विपरीत पाकिस्तान ने शुरू से ही भारत को शत्रु मानकर हमलावर रुख अपनाया। 1948 में जम्मू कश्मीर के तत्कालीन महाराजा की अदूरदर्शिता के कारण  भले ही कश्मीर के कुछ हिस्से को हड़पने में वह सफल हो गया किंतु उसके बाद उसने जब भी युद्ध की स्थिति पैदा की उसे जबर्दस्त पराजय के साथ आर्थिक और कूटनीतिक क्षति हुई। और तब उसने आतंकवाद का सहारा लेते हुए भारत को अस्थिर करने का प्रयास किया किंतु इसमें भी वह असफल रहा । उल्टे उसकी आंतरिक हालत बिगड़ने लगी। पहले वहां के सत्ता प्रतिष्ठान पर सेना का दबाव रहता था किंतु बीते तीन दशकों से आतंकवादी संगठन भी सेना की तरह से ही वहां की सरकार पर दबाव बनाने लगे हैं। सैन्य तैयारियों और आतंकवाद को पालने पोसने के फेर में पाकिस्तान का खजाना खाली होता गया। कभी अमेरिका और ब्रिटेन तो कभी सऊदी अरब उसे खैरात रूपी सहारा देते रहे। बाद में चीन सामने आया जिसने उसे कर्ज से लाद दिया। आज की स्थिति में पाकिस्तान कंगाली की हद तक आ पहुंचा है। अमेरिका और सऊदी अरब ने हाथ खींच लिया है। चीन कह रहा है पिछला कर्ज अदा किए बिना नया नहीं देंगे । अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जिस तरह की शर्तें रख रहा है वे शर्मनाक हैं। पाकिस्तानी मुद्रा बुरी तरह लड़खड़ा चुकी है। पेट्रोल 250 रु.प्रति लीटर है। आटा , सब्जियां , फल , दवाइयां सभी की महंगाई आसमान छू रही है। घरेलू उत्पादन न के बराबर है। विदेशी मुद्रा का भंडार केवल तीन सप्ताह का आयात बिल चुकाने लायक बचा है। कर्ज का आंकड़ा सकल घरेलू उत्पादन के 80 फीसदी तक पहुंचने से  चिंता का माहौल है। आम जनता की जो भावनाएं सोशल मीडिया के जरिए पता चलती हैं उनके अनुसार नई पीढ़ी के जो लोग शिक्षित हैं उनमें ज्यादातर भारत के प्रति प्रशंसा का भाव रखते हुए उसकी प्रगति से प्रभावित हैं। यहां तक कि वे बांग्ला देश से  तुलना करने पर अपने देश को लेकर शर्म महसूस करते हैं। पाकिस्तान के बुद्धिजीवी खुलकर  ये कहने लगे हैं कि भारत विरोध के नाम जनता का भावनात्मक शोषण होता रहा। कश्मीर विवाद से पिंड छुड़ाने की बात भी अनेक लोग करते सुने जा सकते हैं। लेकिन इन जनभावनाओं से वहां के राजनेता और फौजी अधिकतर असहमत हैं । हाल ही में प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने भारत से बातचीत की इच्छा जताई किंतु उसके कुछ देर बाद ही कश्मीर का मसला उठाकर पीछे हट गए। भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार रुका हुआ है। लेकिन भारतीय वस्तुएं विशेष रूप से सौंदर्य प्रसाधन और दवाएं दुबई और अफगानिस्तान के रास्ते वहां आकर बिकती हैं जिससे दाम बढ़ जाते हैं। पाकिस्तानी व्यापारी भी भारत से सीधे व्यापार के पक्षधर हैं। मौजूदा स्थिति में यदि पाकिस्तान भारत से रिश्ते सुधारकर सीमा पर तनाव पैदा करना और आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद कर दे तो उसकी आंतरिक स्थिति बिगड़ने से बच सकती है। आटा और सब्जियां उसे कम कीमत पर हासिल होने से अर्थव्यवस्था को टेका लग सकता है। दोनों देशों के बीच पर्यटन की भी असीम संभावनाएं हैं। लेकिन ये सब तभी हो सकता है जब  पाकिस्तान के हुक्मरान भारत के प्रति शत्रुता का भाव त्यागकर द्विपक्षीय हितों की चिंता करें। पाकिस्तान जिस हालत में है यदि ज्यादा दिन ऐसा चला तब उसके और टुकड़े होना मुमकिन है क्योंकि अब पाक अधिकृत कश्मीर के साथ ही बलूचिस्तान और पश्चिमी सीमा पर अफगानिस्तान से सटे इलाके उससे अलग होने छटपटा रहे हैं। देर सवेर तो सिंध भी उसी रास्ते पर चल सकता है। ऐसे में शाहबाज  शरीफ को अभी भी अक्ल  आ जाए तो इस मुल्क की डूबती नाव किनारे लग सकती है । वरना तो उसका खुदा ही मालिक है।

रवीन्द्र वाजपेयी 

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