Wednesday 22 February 2023

बाइडन और पुतिन की जवाबी मिसाइलें यूक्रेन संकट के जारी रहने का संकेत



यूक्रेन पर रूस के हमले को एक साल बीतने आ गया। इस जंग के मुख्य प्रतिद्वंदी कहने को तो रूस और यूक्रेन हैं लेकिन शीघ्र ही समझ में आ गया था कि यूक्रेन ने रूस जैसी महाशक्ति से टकराने की हिम्मत अमेरिका और उसके नेतृत्व वाले नाटो नामक संगठन के समर्थन से की थी। हालांकि यूक्रेन विधिवत नाटो से जुड़  पाता उसके पहले ही रूस ने अपनी धमकी को वास्तविकता में तब्दील कर दिया और पूरी तरह हमला बोलते हुए यूक्रेन में अपनी सेना और टैंक घुसा दिए। उस समय ऐसा लगा था कि युद्ध कुछ दिन में खत्म हो जाएगा लेकिन जल्द ही रूस  ये समझ गया कि  यूक्रेन की सेना ही नहीं बल्कि जनता भी मुकाबले के लिए तैयार है और यहीं से उसने अपनी रणनीति बदलते हुए हवाई हमलों का सहारा लिया। अब तक रूस ने  अनगिनत मिसाइलें दागकर यूक्रेन में बिजलीघरों, अस्पतालों , रिहायशी मकानों सहित इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ीं जन सुविधाओं को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।  वह दो सीमावर्ती प्रदेशों पर भी कब्जा करने में  सफल हो गया जिनमें उसके पाले हुए अलगाववादी पहले से ही आंदोलन चला रहे थे। वहां सेना भेजकर फर्जी जनमत संग्रह करवाते हुए उसने उन्हें अपने में मिला लिया लेकिन अब तक राजधानी कीव पहुंचने में वह नाकाम रहा है और यही उसके राष्ट्रपति पुतिन की खीझ का कारण है। इस युद्ध में अमेरिका या नाटो प्रत्यक्ष भले न कूदा हो किंतु उसने और उसके साथी पश्चिमी यूरोपीय देशों ने यूक्रेन को युद्ध सामग्री के अलावा आर्थिक तौर पर भी भरपूर सहायता दी जिससे वह अब तक टिका हुआ है। हालांकि रूसी हमलों से पूरा देश खंडहर नजर आने लगा है लेकिन वहां के राष्ट्रपति जेलेंस्की के साहस को मूर्खता बताने वाले अब उनके हौसले की दाद दे रहे हैं। सबसे बड़ी बात यूक्रेन की जनता का उन्हें मिलने वाला समर्थन है। लेकिन जंग की वर्षगांठ के तीन दिन पहले अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन का पोलैंड होते हुए अचानक यूक्रेन की राजधानी कीव पहुंचकर जेलेंस्की से गले मिलना युद्ध के लम्बा खिंचने का संकेत दे गया। बाइडन ने  साफ शब्दों में  यूक्रेन को नाटो देशों की सहायता मिलने का ऐलान करते हुए उसकी जनता की तारीफ कर डाली। युद्ध शुरू होने के कुछ समय बाद ये अटकलें लगने लगीं थी कि शायद यूक्रेन रूस के साथ समझौता कर लेगा जिसके अंतर्गत राष्ट्रपति पुतिन अपनी पसंद के व्यक्ति को वहां की सत्ता सौंप देंगे। ये अफवाह  भी उड़ी कि जेलेंस्की गुपचुप रूप से पोलैंड होते हुए अमेरिका की शरण में चले जाएंगे। लेकिन वे बातें हवा हवाई होकर रह गईं। बाइडन के कीव आने के दूसरे दिन ही पुतिन ने रूस की संसद को संबोधित करते हुए अमेरिका पर आरोप लगाया कि उसने एक स्थानीय समस्या को वैश्विक स्वरूप दे दिया । उन्होंने बातचीत करने में रुचि तो दिखाई किंतु लगे हाथ ये धमकी भी दे डाली कि वे किसी शर्त या दबाव में वार्ता के लिए तैयार नहीं हैं । पुतिन ने ये भी कहा कि अमेरिका उनके देश की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करना चाहता है जो उन्हें मंजूर नहीं होगा । उनके इस भाषण को बाइडन की कीव यात्रा का जवाब माना जा रहा है। दूसरी तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी पोलैंड लौटकर पुतिन की आलोचना का कड़े शब्दों में जिस तरह जवाब दिया उसके बाद ये संभावना और मजबूत हो गई कि एक साल होने के बाद भी  युद्ध  समाप्त होने की बजाय और भीषण हो सकता है। ये भी सोचा जा सकता है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की का हौसला कमजोर पड़ने का एहसास होते ही बाइडन उनका साहस बढ़ाने कीव जा पहुंचे। असलियत जो भी हो लेकिन युद्ध जारी रहने से दुनिया की परेशानियां बढ़ती जा रही हैं। पश्चिमी यूरोप के देश कच्चे तेल के अलावा गैस की किल्लत से हलाकान हैं ।  यूक्रेन सूरजमुखी का सबसे बड़ा उत्पादक होने से उससे बनने वाले खाद्य तेल का संकट भी बढ़ रहा है। रूस और यूक्रेन दोनो गेंहू के बड़े निर्यातक हैं। रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों और यूक्रेन के युद्ध में उलझने से विश्व भर में गेंहू की कमी हो गई है। इन कारणों से जबर्दस्त उथल पुथल मची है जिसने अर्थव्यवस्था को भी अनिश्चितता में फंसा दिया है जो कोरोना से किसी तरह उबरने की स्थिति में आई ही थी। बीते कुछ दिनों में अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन और उनके रूसी समकक्ष पुतिन के बीच जिस तरह से बयानबाजी हुई उसके बाद शांति स्थापना की कोशिशों को और धक्का पहुंचा है। सबसे अधिक निराश किया  संरासंघ ने जो मध्यस्थता करने की बजाय दूर से बैठा तमाशा देख रहा है । अब  बाइडन और पुतिन जिस अंदाज में जुबानी मिसाइलें छोड़ रहे हैं और यूक्रेन की मदद करने वाले देशों को रूस जिस तरह चेतावनी दे रहा है उससे लगता है एक साल पूरा होने के बावजूद जंग जारी रहेगी और ऐसा होने से वैश्विक शक्ति संतुलन और शांति के लिए बड़ा खतरा बना रहेगा।

रवीन्द्र वाजपेयी 

No comments:

Post a Comment