Tuesday 14 February 2023

छोटे निवेशकों के हितों की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम जरूरी



हिंडनबर्ग नामक अमेरिकी संस्थान की रिपोर्ट में  भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी की कंपनियों द्वारा अपने शेयरों के मूल्य उनकी वास्तविक  कीमत से ज्यादा रखने एवं लेखा पुस्तकों में की गयी कथित हेराफेरी के खुलासे के बाद शेयर बाजार की  उठापटक से निवेशकों को हुए नुकसान का मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गया है | न्यायालय ने केंद्र सरकार को निवेशकों के हितों के संरक्षण  हेतु पुख्ता व्यवस्था करने का निर्देश दिया जिसके बाद सरकार उक्त मामले की जाँच हेतु समिति बनाने राजी हो गयी | सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में काम करने वाली इस समिति में प्रस्तावित  विशेषज्ञों के नाम न्यायालय को बंद लिफाफे में देने के लिए सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आश्वस्त किया | हालांकि अडानी मामले की जांच सेबी भी कर रही है वहीं उसकी कंपनियों में निवेश करने वाले भारतीय  स्टेट  बैंक और जीवन बीमा निगम भी अपने स्तर पर पड़ताल में जुटे हैं | लेकिन सर्वोच्च न्यायालय की चिंता इस बारे में है कि भविष्य में शेयर बाजार में निवेश करने वालों का धन सुरक्षित रहे | यद्यपि शेयर बाजार है तो सट्टेबाजी ही जिसमें पैसा लगाने वाला जब कमाता है तब उसे घाटे के लिए भी तैयार रहना चाहिए | इस बारे में ये कहना गलत नहीं है कि शेयर बाजार के छोटे निवेशक बिना पूरी जानकारी के ज्यादा मुनाफे के आकर्षण में अपना पैसा लगा  देते हैं |  संबंधित कम्पनी और शेयर बाजार की चाल के बारे में पूरी जानकारी न होने से वे  गिरावट के संकेतों को समझ नहीं पाते और घाटा उठाते हैं | यद्यपि अडानी मामले में तो बड़े निवेशकों को भी अंदाज नहीं था कि उनके शेयर धड़ाम से नीचे आयेंगे लेकिन ये देखने में आया है कि जब भी शेयर बाजार में बड़ा धमाका होता है छोटे निवेशक ही घाटा उठाते हैं | अतीत में जब भी ऐसी स्थिति निर्मित हुई तब - तब सरकार और न्यायालय दोनों ने इस बात की जरूरत जताई कि निवेशकों का धन सुरक्षित रहे | सेबी की स्थापना भी इसीलिये की गई थी | दरअसल शेयर बाजार किसी ज़माने में सीमित लोगों का ही विषय था लेकिन उदारीकरण के बाद ज्योंही  बाजारवाद ने भारत में दस्तक दी त्योंही बैंकों द्वारा जमा राशि पर दिया जाने वाला ब्याज कम होने लगा | राष्ट्रीय बचत पत्रों के अलावा सरकार द्वारा संचालित अन्य बचत योजनाओं में धन लगाने पर भी ब्याज की दरों में कमी होती चली गई | इसके पीछे बिश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का दबाव भी बताया गया | डा. मनमोहन सिंह ,  पी. चिदम्बरम और मोंटेक सिंह अहलूवालिया जैसे लोगों ने भारतीय अर्थव्यवस्था के चरित्र को पूरी  उपभोक्तावाद में बदल दिया | इधर जमा पर ब्याज दरें  कम हुईं उधर कर्ज भी सस्ता किया गया जिससे उदारवाद ने उधारवाद की शक्ल अख्तियार कर ली | इसके साथ ही शेयर बाजार में ज्यादा मुनाफे की खबरें आने लगीं जिससे छोटा निवेशक आकर्षित हुआ | उसे इस हतु प्रेरित और प्रोत्साहित करने वाले कथित सलाहकार भी तेजी से उभरे | इसका असर ये हुआ कि मध्यम वर्ग के वे लोग जो बैंकों और पोस्ट ऑफिस में अपनी बचत रखते थे वे भी शेयर बाजार के फेर में फंस गए | ऐसा नहीं है कि सभी को घाटा हुआ हो | म्यूचल फंड और शेयरों के जरिये छोटे निवेशकों ने भी अच्छी खासी कमाई की किन्तु इसमें उन लोगों की संख्या ज्यादा रही जिन्होंने शेयर बाजार के उतार चढ़ाव पर पैनी निगाह रखी और उसमें गहरी रूचि ली | दूसरी तरफ  बहुत बड़ा निवेशक ऐसा भी  रहा जो किसी और को देखकर बिना सोचे समझे इस व्यवसाय में कूदा और जब भी बड़ा घोटाला हुआ उसे इसका नुकसान झेलना पड़ा | अडानी मामला  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो होने की वजह से विदेशी निवेशकों के बिदक जाने का खतरा पैदा हो गया जिससे  सरकार भी चिंता में पड़ गई | हालाँकि उसने संयुक्त संसदीय समिति ( जेपीसी ) बनाने की विपक्ष की मांग को सिरे से नकार दिया किन्तु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यक्त चिंता से सहमत होते हुए  विशेषज्ञों की समिति बनाने पर रजामंदी देकर अच्छा किया क्योंकि न्यायालय की निगरानी होने से  समिति के कामकाज में राजनीति नहीं आयेगी | जबकि जेपीसी की रिपोर्ट हमेशा विवादों में फंसी रहती है | उसमें सत्ता पक्ष का  बहुमत होने से उसकी निष्पक्षता पर हमेशा सवाल उठा करते हैं | दूसरी तरफ विपक्ष की रुचि सरकार को घेरने में रहने से जाँच में गम्भीरता नहीं रहती | अतीत में जितनी भी जेपीसी बनीं उनकी रिपोर्ट केवल एक दस्तावेज बनकर रह गयी | उस दृष्टि से सरकार और सर्वोच्च न्यायालय सही दिशा में जा रहे हैं क्योंकि राजनीतिक सवाल - जवाब में निवेशकों के हित उपेक्षित हो जाते हैं | सरकार ने इस दिशा में कानूनी प्रावधान  बनाने पर भी सहमति दिखाई है जो स्वागतयोग्य है | लेकिन शेयर बाजार के खतरों से छोटे निवेशकों को समय रहते आगाह करने वाली प्रणाली विकसित किये बिना इस तरह के हालात भविष्य में भी बनते रहेंगे | अडानी समूह पर  हिंडनबर्ग ने जो आरोप लगाये उनकी जांच भी बारीकी से होना चाहिए जिससे निवेशकों को सच्चाई का पता चल सके | अन्यथा हमेशा की तरह सियासी तमाशे में बहुत सी ऐसी बातें दबकर रह जायेंगीं जो छोटे निवेशकों के हितों से जुडी हुई हैं | संस्थागत निवेशकों के बारे में भी नियमन और पारदर्शी होना चाहिए जिससे उंगली उठाने की गुंजाईश न रहे | स्टेट बैंक और भारतीय जीवन निगम ने अडानी समूह में जो निवेश किया गया उसे लेकर तरह  – तरह की बातें हो रही हैं | जीवन बीमा निगम के तो डूबने की  आशंका तक व्यक्त की गयी | हालाँकि दोनों संस्थानों ने निवेश प्रक्रिया के नियमानुसार होने के साथ ही अपनी पूंजी सुरक्षित होने और  उस पर लाभ अर्जित किये जाने की बात कही है | लेकिन उनको और खुलकर अपना स्पष्टीकरण देना चाहिए जिससे उनमें धन लगाने वाला बचतकर्ता भयमुक्त हो सके | उम्मीद की जा सकती है कि सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद इस मामले की सच्चाई सामने आ जायेगी और निवेशकों के धन की सुरक्षा हेतु कोई न कोई त्रुटि रहित व्यवस्था भविष्य के लिए की जा सकेगी |

रवीन्द्र वाजपेयी 

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