Tuesday 7 February 2023

नीतीश और उपेंद्र का झगड़ा समाजवादी परंपरा का निर्वहन



बिहार  में जद(यू) का विवाद जिस तरह सड़क पर आ गया है उससे लगता है अगले लोकसभा चुनाव के पहले वहां की सियासत में बड़ा तूफान आ सकता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा द्वारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विरुद्ध खुलकर जंग छेड़ने से जद(यू) के साथ ही तेजस्वी यादव की राजद भी भन्नाई हुई है। उपेंद्र जद(यू) की ओर से विधान परिषद के सदस्य हैं। पूर्व में वे  केन्द्र की एनडीए  सरकार में मंत्री भी रहे किंतु बाद में नाराज होकर नीतीश के साथ लौट आए। दरअसल नीतीश और उपेन्द्र ने ही स्व. जॉर्ज फर्नांडीज के नेतृत्व में समता पार्टी बनाई थी।  उसके बाद से गंगा में बहुत पानी बह चुका है। नीतीश ने भी न जाने कितने पाले बदले । जिन लालू के साथ उन्होंने सियासत शुरू की उनके साथ मिलने बिछड़ने और फिर मिलने की कहानियां सर्वविदित हैं। और फिर ये भी देखने में आया कि कभी नरेंद्र मोदी के घोर विरोधी रहे नीतीश उन्हीं की शरण में जा बैठे। इसी तरह की पलटी उनके पहले स्व.रामविलास पासवान मार चुके थे जिन्होंने गुजरात दंगों के बाद वाजपेयी सरकार और एनडीए छोड़ दिया किंतु 2014 आते तक वे भी श्री मोदी  के साथ खड़े हो गए । इसी तरह नीतीश भी लालू से चली अदावत के बाद आखिरकार राजद से गलबहियां कर बैठे और जिन  तेजस्वी और तेजप्रताप के कारण भाजपा के साथ आकर जुड़े थे , लौटकर फिर उन्हीं के साथ याराना बना लिया। इसका असली कारण बिहार में भाजपा का मजबूत होता जाना था । नीतीश को भय सताने लगा कि धीरे धीरे वे हाशिए पर चले जायेंगे। 2020 के विधानसभा चुनाव में सीटों की संख्या में भाजपा से पीछे रह जाने के बावजूद यद्यपि वे मुख्यमंत्री बने रहे किंतु उन्हें भावी खतरों का अनुमान होने लगा था। उस चुनाव में लोजपा नेता चिराग पासवान द्वारा जद (यू) के प्रत्याशियों के विरुद्ध उम्मीदवार उतारे जाने से नीतीश की पार्टी पिछड़ गई।चिराग की पीठ पर भाजपा का हाथ बताया जाता रहा। और आज भी वे खुद को मोदी का हनुमान कहते हैं। 2019 में केन्द्र सरकार में जद (यू) को एक मंत्री पद के ऑफर से नीतीश रुष्ट हो गए थे। और वहीं से खाई पैदा हो गई।भाजपा ने उनकी मर्जी के विरुद्ध आरसीपी सिंह नामक पूर्व नौकरशाह को मंत्री बनाकर जो दांव खेला उसके बाद उनका गुस्सा बढ़ता गया । आरसीपी कभी नीतीश के खासमखास हुआ करते थे इसीलिए उन्होंने उनको पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष तक बनाया।  लेकिन उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी का कारण कुछ समय पहले नीतीश कुमार द्वारा किया गया यह ऐलान है कि महागठबंधन अगला विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ेगा । दरअसल उनको अपेक्षा थी कि समता पार्टी बनाते समय  कुशवाहा समाज के साथ कोइरी और उन जैसी अन्य पिछड़ी जातियों का समर्थन दिलवाने के उपकार स्वरुप नीतीश उन्हें अगले मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करेंगे किंतु जैसे ही उन्होंने तेजस्वी के नाम को आगे बढ़ाया तब पहले तो उन्होंने हल्का विरोध किया किंतु जब  लगा कि उन्हें  तवज्जो नहीं मिल रही तो उन्होंने खुलकर बागी रवैया अपनाया । जवाब में जब नीतीश के समर्थक पार्टी  अध्यक्ष और कुछ  नेताओं ने यह कहना शुरू किया उपेंद्र पार्टी छोड़कर चले जाएं तो उन्होंने पलटवार करते हुए कहा कि वे अपना हिस्सा लिए बिना नहीं जाएंगे और इस बात को लगातार दोहराते रहे ।  धीरे-धीरे बात बढ़ती गई और उपेंद्र ने ये कहना शुरू किया कि वे पार्टी को नष्ट होते हुए नहीं देख सकते और  किसी के कहने से उसे छोड़कर नहीं जाएंगे । उधर नीतीश ने भी कह दिया कि उन्हें जहां जाना है जाएं उनको कोई फर्क नहीं पड़ता । तेजस्वी आरोप लगा रहे हैं कि श्री कुशवाहा भाजपा के इशारे पर यह सब कर रहे हैं । हालांकि  अभी तक उपेन्द्र ने अपने पत्ते  पूरी तरह नहीं खोले  लेकिन उनके तेवर रोजाना तीखे होते जा रहे हैं । ऐसे में यह जंग किस मोड़ पर जाकर रुकेगी  कहना फिलहाल मुश्किल है। राजनीति के जानकार  कह रहे हैं कि बिहार में उपेंद्र , भाजपा के लिए मंच तैयार करने में जुटे हैं और लोकसभा चुनाव आने के पहले  बड़ा  धमाका हो सकता है । यद्यपि ये भी संभावना है कि नीतीश उनकी ताकत का आकलन करते हुए उन्हें पार्टी से बाहर करते हुए आरसीपी सिंह वाले अंजाम तक पहुंचा दें। दूसरी तरफ ये खतरा भी है कि जद (यू) की आंतरिक फूट से  नीतीश सरकार के बहुमत खोने पर विधानसभा भंग करने की नौबत आ जाए। भाजपा को भी लग रहा है यदि नीतीश और तेजस्वी की सरकार चलती रही तब 2024 में पिछली सफलता दोहराना कठिन हो जायेगा। दरअसल जिस सोशल इंजीनियरिंग को  भाजपा ने अपनाकर उ.प्र कब्जा लिया उससे नीतीश भी भयग्रस्त तो हैं लेकिन जिस तरह की रहस्यमयी राजनीति वे करते हैं उसमें कब कौन सा  पैंतरा चल देंगे कहना कठिन है। हालांकि उनके और उपेन्द्र के बीच की जंग से एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया कि स्व. लोहिया जी के मानसपुत्र ज्यादा समय तक एक साथ नहीं रह पाते । इसीलिए  बिहार में जो काम भाजपा न कर सकी वह उपेंद्र और आरसीपी सिंह जैसे नेता अच्छी तरह से कर रहे हैं । जिसमें चिराग पासवान  भी जुड़ते देखे जा सकते हैं । वहीं इस पूरे परिदृश्य में कांग्रेस दर्शक दीर्घा तक सिमटकर रह गई है जिसे कोई भाव नहीं दे रहा।राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से जद (यू) और  राजद के दूर बने रहने से ये बात प्रमाणित भी हो गई।

रवीन्द्र वाजपेयी 


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