Thursday 12 September 2019

मोटर व्हीकल एक्ट : ये तो होना ही था

कुछ दिनों पहले इसी स्तम्भ में नये मोटर व्हीकल एक्ट में व्यावहारिक सुधार का सुझाव दिए जाने पर अनेक पाठकों ने असहमति व्यक्त करते हुए केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को उनकी साहसिक पहल के लिए धन्यवाद भी दिया। लेकिन जैसी हमारी आशंका थी वही हुआ और ज्योंही उक्त कानून अमल में आया और कुछ वाहन चालकों के चालान की राशि का राष्ट्रव्यापी प्रचार हुआ त्योंही चारों तरफ  से विरोध की आवाजें सुनाई  देने लगीं। शुरू - शुरू में तो श्री गडकरी  ने अपने स्वभाव के अनुसार कड़ा रुख दिखाया लेकिन परसों जब प्रधानमंत्री के भाजपा शासित गृह राज्य गुजरात ने ही जुर्माने की राशि में खासी कमी की और उसके फौरन बाद कुछ और राज्यों की भाजपा सरकारों ने भी उसका अनुसरण करने का फैसला किया तब जाकर गडकरी जी को कहना पड़ा कि राज्य चाहें तो जुर्माना  कम कर सकते हैं लेकिन उन्हें नतीजों की जिम्मेदारी भी लेनी पड़ेगी। इसका आशय दुर्घटनाएं रोकना है। उन्होंने ये सफाई भी दी कि नए क़ानून का मकसद जुर्माने से पैसा कमाना नहीं अपितु दुर्घटनाओं से होने वाली जनहानि रोकना है। पूर्व की तरह हम अभी भी  कहना चाहेंगे कि श्री गडकरी की मंशा पर किसी को शक नहीं है लेकिन कानून में किये गये प्रावधानों में से अनेक ऐसे हैं जो भारतीय परिप्रेक्ष्य में अव्यवहारिक होने के साथ ही ज्यादती लगते हैं। यातायात सुलभ और सुरक्षित हो इसके लिए जरूरी है वाहन चालक सम्बन्धित नियमों का पालन ईमानदारी से करें। दुर्घटना में प्रति वर्ष डेढ़ लाख लोगों का मारा जाना निसंदेह दुखदायी है। इसका बड़ा कारण वाहन चालकों की लापरवाही होती है। बिना लायसेंस और समुचित प्रशिक्षण लिए बिना वाहन चलाना वाकई दंडनीय अपराध होना चाहिए। क्योंकि इसकी वजह से सड़क पर चलने वाले अन्य लोगों की जान भी खतरे में पड़ जाती है। बगैर बीमा , पंजीयन  और परमिट के भी लाखों  वाहन सड़कों पर धमाचौकड़ी करते रहते हैं। कुछ बिगड़े दिमाग वाले लोगों को नम्बर प्लेट पर अपना पद लिखने का शौक होता है वहीं कुछ नम्बर प्लेट को भी आर्ट गैलरी बना देते हैं। कुल मिलाकर ये कहना ग़लत नहीं  है कि श्री गडकरी की सोच और दिशा पूरी तरह सही होने के बाद भी उसमें वैसी ही चूक हो गई जैसी चंद्रयान - 2 से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर उतरने वाले लैंडर विक्रम के साथ हुआ जो अंतिम कुछ किलोमीटर की दूरी में अपनी गति को कम नहीं कर सकने की वजह से नियन्त्रण खो बैठा और लक्ष्य से भटककर दूर जा गिरा। नितिन गडकरी की दूरदर्शिता और पेशेवर दक्षता असंदिग्ध है लेकिन ऐसा लगता है वे विभिन्न राज्यों के परिवहन मंत्रियों की समिति द्वारा दिए गये सुझावों का सही तरीके से अध्ययन नहीं कर सके। भारी - भरकम अर्थदंड के जरिये आम जनता से कानून का पालन और दायित्वों का निर्वहन करने की अपेक्षा के बीच पूरे देश से जब सड़कों की खस्ता हालत पर सरकार की जवाबदेही पर सवाल दागे गए तब न केवल केंद्र अपितु नया कानून लागू करने वाले राज्यों की सरकारें भी अपराधबोध से ग्रसित हो गईं। गोवा सरकार ने तो बाकायदा ऐलान भी कर दिया कि वह पहले सडकों में सुधार करेगी और तब कानून लागू करने आगे बढ़ेगी। बहरहाल भाजपा शासित राज्यों की सरकारों द्वारा जुर्माने की राशि में भारी  कमी के फैसले ने श्री गडकरी को अपने पाँव पीछे खींचने के लिए मजबूर कर दिया वरना वे उन मंत्रियों में से हैं जो अपने निर्णय को लागू  करवा  कर  ही रहते हैं। इस कानून को लागू  करने के पूर्व अच्छा होता पूरे देश में यातायात और परिवहन को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जाता। जिस तरह वर्दी वाले अचानक जुर्माना वसूलने मुस्तैद हो उठे , उसी तरह यदि वे मैदान में आकर अपने कर्तव्यों का समुचित निर्वहन करते तो समस्या इतनी गम्भीर नहीं हुई होती। ये तो मानना पड़ेगा कि मोटी रकम के  जुर्माने ने  लोगों को यातायात के नियमों के पालन हेतु काफी हद तक प्रेरित कर दिया। आरटीओ दफ्तर में ड्रायविंग लायसेंस बनवाने वालों  की भीड़ बढ़ गयी। लोग अपने वाहनों के कागजात व्यवस्थित करने लग गये। लेकिन ऐसा करने वालों में अधिकाँश के मन पर भारी जुर्माने का भय ही था जबकि ऐसा स्वप्रेरणा और दायित्वबोध के साथ होता तब ज्यादा बेहतर रहता। जुर्माने की मोटी राशि घूसखोरी का रास्ता और चौड़ा करने में सहायक होगी ये भी हर कोई मान रहा है। इन्हीं विसंगतियों की वजह  से एक अच्छा और जनहितकारी निर्णय विवादग्रस्त होकर बीच रास्ते में ही दम तोडऩे की स्थिति में आ गया। लेकिन इससे निराश होने की बजाय व्यवहारिक उपाय करने की जरूरत है। इस नए कानून का एक सकारात्मक  परिणाम ये हुआ कि यातायात के नियमों का पालन करने को लेकर राष्ट्रव्यापी माहौल बना और बड़ी संख्या में लोग ये कहते सुने गए कि जुर्माना होना चाहिए लेकिन उसकी  राशि और अन्य प्रावधान जमीन से जुड़े रहें । नितिन गडकरी खुद जमीन से जुड़े नेता हैं और बेहद व्यवहारिक सोच के धनी हैं। उन्होंने जुर्माने की रकम घटाने का संकेत देकर समय रहते स्थिति को  सँभालने की जो बुद्धिमत्ता दिखाई वह जन अपेक्षाओं के अनुरूप ही है। वैसे इस सम्बन्ध में उन राज्यों की प्रशंसा करनी होगी जिन्होंने बजाय आँख मूंदकर केंद्र के फैसले को लागू करने के उसकी समीक्षा करने का साहस दिखाया।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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