Monday 2 September 2019

दिग्विजय का हश्र भी उनके गुरु जैसा हो सकता है

मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को सोशल मीडिया पर अनेक लोग भाजपा का स्टार प्रचारक  बताने से नहीं चूकते। इसका कारण समय-समय पर उनके द्वारा दिए जाने वाले विवादास्पद बयान हैं। गत दिवस वे बोल  गए कि भाजपा और बजरंग दल आईएसआई से पैसा लेते हैं और आईएसआई के लिए जासूसी करने वालों में मुसलमानों से ज्यादा गैर मुसलमान हैं। यद्यपि बाद में उन्होंने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि मप्र पुलिस द्वारा बजरंग दल और भाजपा की आईटी सेल के कुछ लोगों को जासूसी करते पकड़ा गया था, उनका आशय उससे था। लेकिन तब तक तो जो कुछ होना था वह हो चुका था। दिग्विजय सिंह पर चौतरफा हमले होने लगे।  बहुत लोगों का ये मानना रहा कि उनके इस बयान से कांग्रेस को हमेशा की तरह नुकसान हो गया। ये पहला अवसर नहीं है जब श्री सिंह ने हिन्दू संगठनों के बारे में इस तरह की टिप्पणी करते हुए स्वयं और अपनी पार्टी दोनों को विवाद में फंसाया हो। यही वजह रही है कि उनकी  बातों से कांग्रेस भी पल्ला झाड़ती रही है। वैसे भी राज्यसभा सदस्य होने के अलावा उनके पास पार्टी का कोई महत्वपूर्ण दायित्व नहीं है। लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारने की वजह से भी उनकी वजनदारी कम हुई है। दिग्विजय सिंह की सबसे बड़ी पीड़ा मप्र की राजनीति में किनारे की तरफ  सरकना है। भले ही कमलनाथ उनके समर्थन से ज्योतिरादित्य सिंधिया को धकेलकर मुख्यमंत्री बन गए हों लेकिन सरकार के संचालन में श्री सिंह की दखल शुरुवात में भले रही हो लेकिन धीरे-धीरे उसमें कमी आती जा रही है जिससे पूर्व मुख्यमंत्री काफी नाराज हैं। दो दिन पहले ही उनका एक पत्र सार्वजानिक हो गया जिसमें उन्होंने मंत्रियों से समय देने की बात कहते हुए तबादलों के अलावा अन्य विषयों पर उनके द्वारा लिखी गई चि_ियों पर हुई कार्रवाई की जानकारी देने की मांग की थी। कुछ मंत्रियों ने तो उनसे मुलाकात कर उन्हें संतुष्ट कर दिया लेकिन उमंग सिंगार नामक मंत्री ने दिग्विजय सिंह पर पर्दे के पीछे  रहकर सरकार चलाने का आरोप लगाते हुए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि वे कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं। श्री सिंगार ने कटाक्ष किया कि जब पृष्ठभूमि में रहते हुए श्री  सिंह ही  सरकार चला रहे हैं , तब उन्हें मंत्रियों को पत्र लिखने की क्या जरूरत पड़ गई। श्री सिंगार ने ये आरोप भी लगाया कि दिग्विजय खुद को सत्ता के शक्ति केंद्र के तौर पर स्थापित करने प्रयासरत हैं। ये पहला मौका नहीं है जब उमंग सिंगार ने पूर्व मुख्यमंत्री को लपेटा हो। पूर्व में भी वे ऐसा कर चुके हैं। गौरतलब है कि वे राज्य की दिग्गज आदिवासी कांग्रेस नेता स्व. जमुना देवी के भतीजे हैं और दिग्विजय विरोधी खेमे के माने जाते हैं। उन्होंने ये कहने में भी कोई संकोच नहीं किया कि श्री सिंह अन्य मंत्रियों के विभागों से संबंधित मसले तो उठाते  हैं लेकिन अपने बेटे जयवर्धन सिंह के विभागों पर चुप्पी साध लेते हैं। उल्लेखनीय है मप्र में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद पर कब्जे को लेकर पार्टी के भीतर जबर्दस्त शीतयुद्ध जारी है। कमलनाथ अपना इस्तीफा आलाकमान को दे चुके हैं और  खुलकर कुछ भी नहीं बोल रहे लेकिन दिग्विजय और सिंधिया खेमा खुलकर आमने-सामने है। भोपाल से दिल्ली तक बिसात बिछ रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हाल ही में जो ट्वीट किये उनसे लगा कि वे भी मन ही मन दुखी हैं। राहुल गांधी से निकटता के बावजूद भी उन्हें अब तक मनमाफिक पद नहीं मिल पाया। मुख्यमंत्री की कुर्सी हाथ से आते-आते रह गयी और बची खुची भद्द पिट गयी गुना लोकसभा सीट पर  मिली लम्बी हार से। ऐसे समय जब लोकसभा में कांग्रेस के पास प्रभावशाली वक्ताओं का अभाव हो गया है तब श्री सिंधिया यदि  वहां होते तो निश्चित रूप से लोकसभा में अधीर रंजन चौधरी की जगह पार्टी के नेता बन जाते। ऐसे में अब उनके पास केवल मप्र में प्रदेश अध्यक्ष बनने की गुंजाईश बची है। लेकिन दिग्विजय सिंह उनकी राह में रोड़े ही नहीं बड़ी-बड़ी चट्टानें अड़ाने पर आमादा हैं। परसों उन्होंने 25 वर्ष के नौजवान को प्रदेश कांग्रेस की बागडोर सौंपने की बात कहकर नई सुरसुरी छोड़ दी जिसका उद्देश्य श्री  सिंधिया को दौड़ से बाहर करना ही था। गत दिवस भाजपा और बजरंग दल को लेकर दिए गये बयान के जरिये उन्होंने कांग्रेस आलाकमान को ये संदेश देने का प्रयास किया है कि भाजपा से वैचारिक स्तर पर लडऩे की क्षमता केवल उनकी ही है। इस समूची कवायद के पीछे उनका असली मकसद क्या है इसे लेकर भी अलाग-अलग चर्चाएँ हैं। ये मानने वाले भी कम नहीं हैं कि वे स्वयं प्रदेश अध्यक्ष बनना चाह रहे हैं लेकिन अंदरखाने की खबर ये है कि कमलनाथ एक बार श्री सिंधिया को तो सहन कर लेंगे लेकिन वे भी नहीं चाहते कि दिग्विजय किसी भी तरह से ताकतवर हों। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि दिग्विजय सिंह की तमाम बयानबाजी प्रासंगिक बने रहने के लिए ही की जाती है। उनकी राजनीति अब कांग्रेस में भी उतनी पसंद नहीं की जाती जिसे देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा कि यदि वे इसी तरह से व्यवहार करते रहे तब उनका हश्र भी उनके राजनीतिक गुरु स्व.अर्जुन सिंह जैसा होकर रह जाएगा जिन्हें जीवन के आखिरी दौर में पार्टी द्वारा पूरी तरह उपेक्षित और अपमानित करने में रत्ती भर भी संकोच नहीं किया गया। अनेक विश्लेषकों का मानना है कि कमलनाथ सरकार यदि गिरती है तो उसके लिए भी श्री सिंह ही जिम्मेदार होंगे।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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