Saturday 21 September 2019

खुश हो गए कारोबारी : कब आयेगी जनता की बारी

जैसा कि अनुमानित था मोदी सरकार ने एक बार फिर सबको चौंकाया। मंदी की चौतरफा चर्चाओं के बीच गत दिवस जीएसटी काउन्सिल की गोवा में आयोजित बैठक पर पूरे कारोबारी जगत की निगाहें लगी थीं। हर किसी को उम्मीद थी कि काउन्सिल शाम तक अर्थव्यवस्था सम्बन्धी कोई न कोई खुशखबरी अवश्य देगी लेकिन बैठक शुरू होने के पहले ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने जोरदार घोषणा करते हुए बताया कि केंद्र सरकार ने कार्पोरेट टैक्स की दरें घटाकर 22 फीसदी कर दी हैं। इसके प्रभावस्वरूप अधिभार वगैरह मिलकर यह टैक्स 25.17 फीसदी हो गया जो बजट में की गई वृद्धि के बाद 33 फीसदी से भी ज्यादा होने से न सिर्फ  घरेलू उद्योगपतियों को नागवार गुजरा अपितु विदेशी निवेशकों को भी रास नहीं आया जिसकी वजह से भारत में आया विदेशी धन वापिस जाने लगा और रुपया अमेरिकी डालर की तुलना में कमजोर होता गया। समूचे घटनाक्रम ने भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर बीते कुछ वर्षों में बनाये गए बहुरंगी चित्र को बदरंग कर दिया। भारी-भरकम बहुमत के साथ लौटी मोदी सरकार ने शुरुवात में ही अनेक ऐतिहासिक राजनीतिक फैसले लेकर जो प्रशंसा बटोरी थी वह आर्थिक मोर्चे पर व्याप्त अनिश्चितता की वजह से सवालों के घेरे में आ गई। चारों तरफ  से जैसी खबरें आ रही थीं उनसे ये आशंका प्रबल हो गई कि भारतीय अर्थव्यवस्था पतन के कगार पर जा पहुँची है और केंद्र सरकार स्थिति को संभालने में पूरी तरह से नाकाम साबित हो रही  है। ये भी कहा जाने लगा कि सरकार में बैठे लोग आर्थिक पेचीदगियों को समझ पाने में असमर्थ हैं। बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़े भी चिंता का सबब बनते जा रहे थे। लोकसभा चुनाव तक मोदी सरकार पर उद्योगपतियों की हितचिन्तक होने का आरोप लगा करता था लेकिन बीते कुछ महीनों में पूरा कारोबारी जगत असंतुष्ट हो गया। जिस तरह से व्यापार और उद्योगों में सुस्ती आई उससे आम आदमी भी चिंता में पड़ गया। ये कहना गलत नहीं होगा कि सरकार इस दौरान दूसरे मोर्चों पर ज्यादा उलझी रहने से आर्थिक परिस्थितियों पर समुचित ध्यान नहीं दे सकी। यद्यपि बीच में रिजर्व बैंक ने ब्याज दरें घटाकर अर्थव्यवस्था को टेका लगाने की कोशिश की किन्तु उसका भी वांछित असर नहीं हुआ। हाल ही में जब वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर के घटकर 5 फीसदी पर आने की जानकारी सार्वजानिक हुई त्योंही ये बात घर-घर में फैल गई कि देश की आर्थिक हालत गम्भीर अवस्था में जा पहुँची है। भले ही दावे कितने भी किये जा रहे हों लेकिन मोदी सरकार का कोई भी प्रवक्ता लोगों को आश्वस्त करने में कामयाब नहीं हो रहा था। जो उपाय किये गये वे भी कारगर नजर नहीं आये। आखिर में सरकार को ये लग गया कि उसके पास राहतों का पिटारा खोलने के सिवाय दूसरा चारा नहीं है। कारोबारी सुस्ती की वजह से जीएसटी की वसूली में भी चिंताजनक गिरावट आ गई। यहाँ तक कहा जाने लगा कि सरकार के पास विकास के लिए धन नहीं होने से वह रिजर्व बैंक सहित अन्य सरकारी उपक्रमों के पास सुरक्षित रखे गए कोष में से पैसा निकालकर काम चलाने में जुटी है। डूबने के कगार पर आ चुके कर्जों ने बैंकों की दशा भी बिगाड़कर रख दी। कुल मिलाकर जब सरकार को लगा कि साधारण दवाई असर नहीं कर रहीं तब उसने पहले तो कार्पोरेट टैक्स घटाकर उद्योग जगत को गदगद कर दिया जिसकी वजह से शेयर बाजार में रिकार्ड तेजी आ गई। ऐसा लगता है उससे जीएसटी काउन्सिल भी उत्साहित हो गयी और उसने भी शाम होते-होते तक तमाम रियायतों का एलान कर दिया। उन सबका सकारात्मक असर हुआ और कारोबारी जगत के अलावा आम जनता को भी ये लगा कि सरकार को उसकी तकलीफों का एहसास हुआ है। इन सब फैसलों का तात्कालिक असर कितना होगा इसके लिए थोड़ा इन्तजार करना पड़ेगा लेकिन दूरगामी प्रभाव को लेकर जो उम्मीदें व्यक्त की जा रही हैं यदि वे वास्तविकता में बदलीं तब जरुर अच्छे दिन आने की बात सच्चाई में बदल सकती है। हालाँकि ये भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा शुरू होने से पहले कार्पोरेट टैक्स के साथ ही जीएसटी में राहत महज संयोग नहीं बल्कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मुलाकात के पहले वहां के निवेशकों को रिझाने का सोचा समझा दांव है। चीन के साथ अमेरिका की कारोबारी तनातनी जिसे ट्रेड वार कहा जा रहा है, के चलते भारत के लिए अच्छे अवसर हो सकते हैं। जैसे संकेत हैं ट्रम्प के साथ नरेंद्र मोदी की भेंट के दौरान आर्थिक क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण समझौते संभावित हैं। देश में कारोबारी माहौल अनुकूल बनाये बिना विदेशी निवेश की उम्मीद करना चूँकि बेकार होता इसलिए प्रधानमंत्री के रवाना होने के पहले ही सौगातों की बरसात कर दी गयी। यद्यपि इससे आर्थिक मोर्चे पर व्याप्त चिंताएं कुछ कम जरुर होंगीं लेकिन उनका असली असर तब माना जाएगा जब आम जनता या उपभोक्ता तक उसका लाभ पहुंचे। कारोबारियों की नाराजगी दूर करने के बाद अब सरकार से मध्यमवर्ग भी अपेक्षा करने लगा है कि कार्पोरेट टैक्स की तरह से ही उसे भी आयकर में वैसी ही छूट मिले जिससे उसके जेब में पैसा बचे और बाजार की मुर्दानगी दूर हो सके। सरकार के सलाहकारों को ये भी समझ लेना चाहिए  कि टैक्स की दरें कम रखने से सरकार को अपेक्षाकृत ज्यादा कमाई हो जाती है क्योंकि ज्यादा दरें टैक्स चोरी को प्रोत्साहन देती हैं। उस दृष्टि से उद्योग व्यापार जगत की नारजगी तो काफी हद तक दूर हो गयी  लेकिन अभी उस आम जनता को खुश करना बाकी है जिसकी दम पर नरेंद्र मोदी सत्ता में बने हुए हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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