Thursday 26 September 2019

पाकिस्तान हर मोर्चे पर घिरा

इमरान खान के ताजे बयान में उनकी हताशा साफ़ झलक उठी | उन्होंने न केवल अमेरिका अपितु मुस्लिम देशों तक के उदासीन रवैये पर दुःख व्यक्त करते हुए कश्मीर में भारत द्वारा उठाए कदम को सन्दर्भ बनाकर सवाल पूछा  कि यदि घाटी में रह रहे मुसलमानों के बराबर ही यूरोपीय , यहूदी या 8 - 10 अमरीकी भी  कहीं घिरे होते तब भी क्या दुनियां इतनी ही शांत रहती ? दरअसल ऐसी ही शर्मिन्दगी नवाज शरीफ को भी  उठानी पड़ी थे जब कारगिल युद्ध के समय उन्हें अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने  फटकारते हुए फौरन लड़ाई रोकने कहा था | बीते दिनों इमरान न्यूयॉर्क में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मिलने गए तब तक उन्हें उम्मीद रही कि शायद वे भारत के साथ कश्मीर विवाद में मध्यस्थता की भूमिका निभाने हेतु नरेन्द्र मोदी पर दबाव डालेंगे लेकिन हुआ उलटा | ट्रम्प ने इमरान के सामने ही श्री मोदी की तारीफ करते हुए कह दिया कि वे इसे सुलझा लेंगे | उसके बाद जब श्री मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलने गये तब उनका व्यवहार पूरी तरह अलग होने से भी इमरान की जबर्दस्त किरकिरी हुई | भले ही  वे अपनी हार को घुमा - फिराकर पेश कर  तो रहे हैं लेकिन पाकिस्तान  के लगभग सभी टीवी चैनलों  पर चल  रही चर्चाओं में जिस तरह उनकी  कूटनीतिक विफलता को कोसा जा रहा है उससे ये स्पष्ट हो गया कि घरेलू मोर्चे पर  भी इमरान की हालत बेहद खराब है | इसकी एक वजह ये भी रही कि वे न्यूयॉर्क यात्रा पर केवल एक ही एजेंडा लेकर गये थे और वह था कश्मीर | इसकी विपरीत श्री मोदी ने भारतीय मूल के लोगों के बीच बहुत ही भव्य आयोजन में श्री ट्रम्प के साथ शिरकत करते हुए अपनी यात्रा को दूसरा ही रूप दे दिया | उसके पहले वे ऊर्जा संबंधी  समझौतों पर भी कुछ कम्पनियों के प्रतिनिधियों से मिल चुके थे | यात्रा का पूरा फायदा उठाने के लिए वे दुनिया की बड़ी कमपनियों से मिलकर उन्हें भारत में निवेश हेतु आमंत्रित  करना भी नहीं भूले | अभी तक न्यूयॉर्क से जो खबरें आईं उनकी अनुसार भारतीय कूटनीति ने अपना काम बखूबी अंजाम दिया | वहीं पाकिस्तान हर तरह से उपेक्षित और निराश नजर आया | ये कहने में  कुछ भी गलत नहीं है कि इमरान खान जैसी फजीहत किसी और पाकिस्तानी नेता की नहीं हुई | एक समय था जब अमेरिका और उसके समर्थक ब्रिटेन द्वारा पकिस्तान के  सौ खून माफ़ किये जाते थे | उसे अरबों डालर की आर्थिक सहायता और सामरिक सामान की  आपूर्ति भी की जाती थी | अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी के मद्देनजर अमेरिका को भी इस्लामाबाद  की जरूरत होती थी , जो है तो आज भी लेकिन अब अमेरिका ही नहीं दुनिया की बाकी बड़ी ताकतें भी भारत को नाराज नहीं करना चाहतीं | पाकिस्तान की निराशा का एक बड़ा कारण पश्चिम एशिया के मुस्लिम देशों की बेरुखी भी है | कहा जा रहा है कि सऊदी अरब के शाह ने इमरान पर तरस खाते हुए उन्हें न्यूयॉर्क जाने हेतु अपना  निजी जेट तो दे दिया लेकिन लगे हाथ नरेंद्र मोदी का नाम बाइज्जत लेने की समझाइश भी दे डाली | इस दौरान चीन की चुप्पी से भी पाकिस्तान हैरत में है | ट्रम्प द्वारा छेड़े गए व्यापार युद्ध के कारण उसका आर्थिक ढांचा हिल गया है | ट्रम्प के दबाव की वजह से अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियां चीन से डेरा उठाने की तैयारी में हैं | भारत ने कार्पोरेट टैक्स घटाकर उनके  यहाँ आने का रास्ता खोल दिया है | ट्रम्प का भारत के प्रति अतिरिक्त सौजन्य हो जाने के पीछे एक कारण ये भी है | इस पूरे खेल को समझ पाने में असमर्थ इमरान खान राग कश्मीर गाते रह गए लेकिन अमेरिका ही नहीं पूरा विश्व मान बैठा है कि ये दोनों देशों के बीच का विवाद है जिसमें तीसरे के हस्तक्षेप की न जरूरत है और न ही  गुंजाईश | कूटनीति के क्षेत्र में शह और मात का खेल चला करता है | जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद की स्थितियां पाकिस्तान के लिए शह जैसी थीं जिससे बचने का रास्ता  नहीं सूझने के कारण उस पर मात का भय सवार होने  लगा है | फिर भी इमरान के ताजा बयान में जो निराशा दिखाई दी उससे भारत को खुश होकर नहीं बैठना चाहिये क्योंकि खीझ के  चलते पाकिस्तान की सेना इमरान को नजरंदाज करते हुए सैन्य कार्रवाई कर  सकती है | यद्यपि पूरा पाकिस्तान जानता है कि युद्ध उसके लिए नुकसानदेह होगा लेकिन ये भी उतना ही सही है कि कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों की मुस्तैदी से केवल इमरान नहीं बल्कि उनके फौजी जनरल बाजवा भी भन्नाए हुए हैं | इसकी वजह घाटी में पाकिस्तानी सेना के टुकड़ों पर पलने वाले आतंकवादियों की गतिविधियों पर पूरी तरह से रोक लग  जाना है | सीमा पार से नए प्रशिक्षित आतंकवादी भी नहीं आ पा रहे | हुर्रियत के झंडे तले कार्यरत अलगाववादी संगठनों के नेतागण भी नजरबन्द हैं | उनको पाकिस्तान से भेजा जाने वाला धन भी रुक गया है | संचार सुविधाएँ रोके जाने से पाकिस्तानी सेना घाटी में बैठे अपने गुर्गों से सम्पर्क भी नहीं कर  पा रही | इन हालातों में यदि इमरान की सत्ता उलटकर जनरल बाजवा खुद  शासन हथिया लें तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा | भारत को कूटनीतिक मोर्चे पर मिली सफलता के बाद भी पाकिस्तान की हरकतों पर पैनी नजर रखनी चाहिए क्योंकि आज के माहौल में उसकी हालत मरता क्या न करता वाली होकर रह गयी है |  खस्ता वित्तीय  स्थिति के चलते पाकिस्तान पर दिवालिया होने का खतरा भी मंडरा रहा है | सबसे बड़ी फ़िक्र  इमरान को ये सता रही है कि भारत अब जम्मू कश्मीर की बजाय उससे पाक अधिकृत कश्मीर पर बात करने को कहता है | पाकिस्तान में हर कोई इस बात से आशंकित है कि मोदी सरकार उसके कब्जे वाले कश्मीर में किसी भी दिन सैन्य कार्रवाई कर सकती है | बलूचिस्त्तान तो पहले से ही जल रहा था अब सिंध भी धोंस दे रहा है | ट्रम्प के साथ मुलाकात के बाद भारतीय प्रवक्ता ने एक बार फिर साफ़ कर दिया कि पकिस्तान से वार्ता करने से उसे परहेज नहीं लेकिन इसके पहले उसे आतंकवाद को प्रश्रय देना बंद करना पडेगा | इमरान की मुसीबत ये है कि वे बीते दिनों जिस तरह का बड़बोलापन दिखा चुके हैं उसके बाद उनको समझ में नहीं  आ रहा कि करें  तो करें क्या ?

-रवीन्द्र वाजपेयी

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