Wednesday 18 September 2019

कमलनाथ की कोशिश : दिग्विजय का पलीता

मप्र की कमलनाथ सरकार ने गत दिवस संत समागम आयोजित करते हुए प्रदेश भर से एकत्र हुए संतों के लिए तमाम घोषणाएं और आश्वासन दे डाले। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर ये भी कहा कि धर्म हमारे लिए राजनीति नहीं  आस्था का विषय है। उल्लेखनीय है विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के घोषणापत्र में  हिन्दुओं और संत समाज को खुश करने के लिए अनेक वायदे शामिल थे। सत्ता में आने के बाद से ही श्री नाथ ने उनमें से कुछ पर अमल भी शुरू कर दिया। यद्यपि वे कहें कुछ भी लेकिन इसके पीछे भी राजनीति ही है। फिर भी सरकार और उसका मुखिया यदि धर्म और आध्यात्म से जुड़े मुद्दों पर ध्यान दे तो उसकी तारीफ  होनी चाहिए। भले ही राजनीति में धर्म के उपयोग की आलोचना होती रही हो लेकिन सही बात यही है कि राजनीति को धर्म से प्रेरित होना ही चाहिए ताकि उसकी पवित्रता बनी रहे। उस दृष्टि से कमलनाथ ने कुछ भी गलत नहीं किया। हालांकि भाजपा को ये अच्छा नहीं लग रहा होगा क्योंकि इस तरह के आयोजन अभी तक उसके एकाधिकार में थे। शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने अचानक जब कुछ  बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा देकर सरकारी सुविधाएँ दीं तब कांग्रेस ने उस फैसले का काफी मजाक उड़ाया था। सत्ता का स्वाद चखते ही उनमें से कुछ  बाबाओं का दिमाग सातवें आसमान पर जा पहुंचा और वे सरकारी दामाद की तरह नखरे दिखाते हुए रोज नई मांग करने लग गये जिन्हें पूरा करना संभव नहीं था। इस वजह से नाराजगी बढ़ी और कुछ बाबा सरकारी ओहदा छोड़कर न सिर्फ  चले गये बल्कि उनमें से कई ने तो शिवराज सरकार के विरुद्ध मोर्चा ही खोल दिया। निश्चित रूप से भाजपा का वह दांव उलटा पड़ा। उपर से जगहंसाई हुई सो अलग। सरकार बनते ही कमलनाथ ने उन बाबाओं में से कुछ को उपकृत भी कर दिया जिन्हें राजनीति का कीड़ा ज्यादा ही काटने लगा था। इसके अलावा अनेक ऐसे कदम भी उठाये जिनसे हिन्दू समाज में कांग्रेस के बारे में व्याप्त ये धारणा दूर हो सके कि वह मुस्लिम तुष्टीकरण करती है। लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस को पूरी तरह निराश कर दिया। भोपाल सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के विरुद्ध भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा को उतार दिया। उधर सरकार से उपकृत अनेक संत दिग्विजय को जिताने खुलकर मैदान में आ गए लेकिन साध्वी को बड़ी जीत मिली। उससे ये स्पष्ट हो गया कि चंद साधुओं को महिमामंडित कर देने मात्र से पूरे हिंदू समाज को प्रभावित नहीं किया जा सकता। उस दृष्टि से देखें तो गत दिवस हुए संत समागम के बाद प्रदेश सरकार यदि ये सोचती है कि हिन्दू मतदाता कांग्रेस की तरफ  आकर्षित हो जाएगा तो वह खुशफहमी में है क्योंकि उसके अपने नेता ही कुछ न कुछ ऐसा बोल जाते हैं जिनसे हिन्दुओं में कांग्रेस के प्रति नाराजगी बनी रहती है। मसलन  दिग्विजय ने उक्त संत समागम में ही  विवादस्पद भाषण देते हुए कह  दिया कि आज भगवा वस्त्र पहने लोग चूरन बेच रहे हैं और बलात्कार कर रहे हैं। वे यहाँ तक बोल गए कि धर्म स्थलों पर भी दुराचार किया जा रहा है। उनका पहला निशाना बिना नाम लिए बाबा रामदेव की तरफ  था जो दवाओं का व्यापार कर रहे हैं और दूसरा था भाजपा के पूर्व केन्द्रीय मंत्री चिन्मयानन्द पर जो यौन शोषण के आरोप में फंसे हुए हैं। लेकिन श्री सिंह ने चूँकि किसी का नाम नहीं लिया था इसलिए उनकी बात को सभी भगवा वस्त्रधारियों से जोड़कर भाजपा ने प्रचारित कर दिया। इस बारे में ये कहना गलत नहीं होगा कि जिस तरह भाजपा मुस्लिम धर्माचार्यों को बुलाकर उन्हें फुसलाने की कोशिश करती है तो उसका कोई लाभ उसे नहीं मिलता ठीक उसी तरह कांग्रेस को भी हिन्दुओं को खुश करने के लिए किये जाने वाले ऐसे आयोजनों से फायदा नहीं मिलता। इसका मुख्य कारण ये है कि ऐसी कोशिशों में ईमानदारी का अभाव रहता है। भाजपा या उसके समर्थक हिन्दू संगठनों के नेताओं द्वारा समय-समय पर दिए जाने बयानों से मुस्लिम समाज में सदैव आशंका बनी रहती है। ठीक वैसे ही कांग्रेस में दिग्विजय सिंह और मणिशंकर अय्यर जैसे नेता भी गाहे बगाहे कुछ न कुछ ऐसा कह देते हैं जिससे हिन्दू समाज के बीच कांग्रेस के बारे में प्रचलित अविश्वास और पक्का हो जाता है। उस आधार पर देखें तो उक्त समागम हिन्दुओं के तुष्टीकरण का माध्यम नहीं बन सकेगा। रही बात संतों को जमीनों के पट्टे वगैरह देकर रिझाने की तो अधिकतर ने पहले से ही उसका इंतजाम कर रखा है। धर्म के नाम पर होने वाले अतिक्रमण किसी से छिपे नहीं हैं। जबलपुर में नर्मदा के किनारों पर बने बड़े-बड़े आश्रमों में बैठे संत-महंत नर्मदा की भक्ति पर प्रवचन तो देते हैं किन्तु उनके आश्रमों से निकलने वाली गंदगी नर्मदा को प्रदूषित कर रही है। कल के समागम में कुछ ऐसे  संत भी भी सत्ता  के मठाधीशों के  आगे-आगे मंडराते देखे गए जिनकी छवि अच्छी नहीं है और जो सत्ता से जुड़ी सुविधाएँ हासिल करने के मामले में किसी पेशेवर नेता से कम नहीं हैं। साधु-संत हमारी सामजिक व्यवस्था के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। उनकी भूमिका मार्गदर्शक की होती है। पहले चलन ये था  कि सत्ताधीश खुद चलकर उनके पास आशीर्वाद लेने आया करते थे लेकिन कलियुग में उल्टा होने लगा है। भाजपा द्वारा भगवाधारियों को सियासत और सत्ता का हिस्सा बनाये जाने पर उसका मजाक उड़ाने वाली कांग्रेस भी आखिर सन्तं शरणम् गच्छामि की राह पर चल पड़ी। यहाँ तक कि समाजवादी पार्टी तक ने भाजपा से नाराज होकर निकले साक्षी महाराज को लोकसभा भिजवाने में कोई संकोच नहीं किया। हालांकि बाद में वे भाजपा में लौट आये और अभी उन्नाव से सांसद हैं। राम मंदिर आन्दोलन के माध्यम से साधु-संतों में भाजपा के प्रति आकर्षण पैदा हुआ। उमाश्री भारती के अलावा अनेक सन्यासी सीधे राजनीति में उतरकर सत्ता के सिंहासन तक पहुँच गये। उनमें से सभी को सत्ता का लालची नहीं कहा जा सकता लेकिन अधिकतर कोई प्रभाव छोडऩे में असफल रहे। उमाश्री इसका उदाहरण हैं जिन्हें मोदी सरकार में गंगा सफाई का काम सौंपा गया जिसमें वे बुरी तरह विफल रहीं। हालाँकि योगी आदित्यनाथ जैसे भी हैं जो उप्र जैसे जटिल राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर असर छोडऩे में कामयाब रहे हैं। उस लिहाज  से मप्र के संत समागम में ऐसा कोई दिग्गज नहीं नजर आया जो प्रदेश के आध्यात्मिक जगत में अपना असर रखता हो। इसका कितना लाभ कांग्रेस को मिलेगा ये आकलन हो पाता उसके पहले ही दिग्विजय सिंह ने भगवा वस्त्र पहिनकर बलात्कार करने जैसा बयान देकर सब गुड़-गोबर कर दिया।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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