असम में बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ से उत्पन्न समस्या के निराकरण के लिए एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) नामक व्यवस्था सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर की गई। बीते दिनों जब यह जारी हुआ तब विवाद मच गया। बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की शिकायतें भी आईं जिनकी सुनवाई के लिए भी समय दे दिया गया। यद्यपि ये स्पष्ट नहीं है कि जिन लाखों लोगों को घुसपैठिया माना गया उनका होगा क्या? क्योंकि बांग्लादेश उन्हें आसानी से वापिस ले लेगा ये नहीं लगता। असम में इसे लेकर दशकों से आन्दोलन होता रहा है। वहां की राजनीति भी इस मुद्दे से काफी प्रभावित रही है। वैसे ये समस्या बंगाल में भी है लेकिन पहले वहां की वामपन्थी और अब तृणमूल सरकार अपने राजनीतिक स्वार्थवश उसकी उपेक्षा करती रही। असम और बंगाल में भाजपा के ताकतवर बनने के पीछे भी ये मुद्दा काफी असरकारक रहा है। नागरिक रजिस्टर जारी होते ही कुछ और राज्यों ने भी इस व्यवस्था को लागू करने की इच्छा जताई। हालांकि इनमें अधिकतर भाजपा शासित ही हैं। ममता बैनर्जी तो पहले ही साफ इंकार कर चुकी हैं। इसके पहले कि बाकी राज्यों की प्रतिक्रिया सामने आती केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान आ गया कि पूरे देश का नागरिक रजिस्टर बनाया जाएगा। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम को इसके पक्ष में जनादेश बताया। उनका कहना है कि देश में एक भी अवैध नागरिक नहीं रहने दिया जाएगा। लेकिन ये काम उतना आसान नहीं जितना लगता है। आधार कार्ड को लेकर चल रहे विवाद के मद्देनजर नागरिक रजिस्टर जैसी व्यवस्था लागू करना बेहद कठिन कार्य है। राजनीतिक आम सहमति के बिना ऐसे फैसलों पर अमल नहीं हो पाता और फिर सर्वोच्च न्यायालय नामक बाधा भी सामने आ जाती है। लेकिन इस सबसे हटकर गृह मंत्री की इस बात से कोई भी असहमत नहीं हो सकता कि देश में कोई भी अवैध रूप से क्यों रहना चाहिए और ऐसे व्यक्ति को बाहर करना जरूरी है। जहां तक सवाल इस रजिस्टर को तैयार करने के औचित्य का है तो यह केवल बांग्ला देश से ही ज्यादा सम्बंधित है। ये बात भी पूरी तरह सच है कि इस पड़ोसी देश से 1971 के संकट के समय आये लोगों के बाद भी घुसपैठ जारी रही जिसकी वजह से असम, बंगाल और बिहार के कुछ जिलों में आबादी का संतुलन बिगड़ गया और अवैध घुसपैठिये चुनावों को प्रभावित करने की स्थिति में आ गए। धीरे - धीरे ये दूसरे राज्यों में भी फैलते चले गये। देश के सभी बड़े शहरों में मजदूरी और घरेलू कामकाज करने वाले नौकरों के रूप में बांग्लादेशियों की बड़ी संख्या है। उनमें करोड़ों तो भारत में ही पैदा हुए हैं। उनके कारण आंतरिक सुरक्षा के लिए भी खतरा उत्पन्न हुआ ये बात भी सामने आती रही है। भारत की जनसंख्या वृद्धि में भी इन घुसपैठियों का खासा योगदान रहा है। राजनीतिक नफे नुकसान की वजह से इस संवेदनशील मुद्दे को छूने में राजनीतिक पार्टियां डरती रहीं। लेकिन अब जबकि असम में नागरिक रजिस्टर बन गया है तब इस व्यवस्था को पूरे देश में लागू करने का इरादा सही दिशा में उठाया जाने वाला कदम होगा। भारत में सदियों से घुसपैठ का सिलसिला चला आ रहा है। सीमावर्ती राज्यों में तो ये समस्या हर देश में रहती है। अमेरिका जैसा देश तक मेक्सिको से आने वाले घुसपैठियों से परेशान है ये पिछले राष्ट्रपति चुनाव में प्रमुख मुद्दा बनकर सामने आया जिसने डोनाल्ड ट्रंप की जीत का रास्ता साफ किया। यूरोप के कुछ देश भी इसी समस्या से जूझ रहे हैं। पश्चिम एशिया में युद्ध के हालात बन जाने के बाद बड़ी संख्या में लोगों का पलायन हुआ जिन्हें मानवीयता के आधार पर फ्रंास, ब्रिटेन, जर्मनी जैसे देशों ने शरण दी लेकिन कुछ समय बाद यही शरणार्थी इन देशों की सुरक्षा के लिए खतरा बन गए। ऐसे में यदि श्री शाह ने नागरिक रजिस्टर को राष्ट्रीय व्यवस्था के रूप में लागू करने की बात कही तो उसका स्वागत होना चाहिए। भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में जहां आंतरिक सुरक्षा एक गम्भीर मुद्दा हो वहां हर नागरिक की पूरी जानकारी सरकार के पास होना जरूरी है। जनसंख्या के जो आंकड़े हैं उनके जरिये भी हर नागरिक की पतासाजी आसान नहीं हो पाती। अभी भी देश के करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनके पास सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त किसी भी प्रकार का पहिचान पत्र नहीं है। ये देखते हुए श्री शाह ने जो इरादा व्यक्त किया वह सैद्धान्त्तिक तौर पर तो पूरी तरह उचित और उपयोगी भी लगता है लेकिन उसका व्यवहारिक पक्ष अवश्य पेचीदा है। वोट बैंक की राजनीति हमारे देश में अनेक समस्याओं को जीवित बनाये रखती है। अवैध रूप से रह रहे किसी भी व्यक्ति को निकाल बाहर करना देश के दूरगामी हितों की खातिर जरूरी है। भारत द्वारा तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में चल रहे गृह युद्ध में हस्तक्षेप किया ही तब गया था जब वहां से बड़ी संख्या में शरणार्थी भागकर यहाँ आने लगे। लेकिन दिसम्बर 1971 में बांग्ला देश बनने के बाद उन्हें वापिस भेजने के मामले में जो लापरवाही हुई उसका दुष्परिणाम देश 48 साल बाद भी भोग रहा है। खैर, जब जागे तब सवेरा की तर्ज पर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर बनाने की कल्पना को मूर्त रूप देने की इच्छाशक्ति जागृत होना शुभ संकेत है। सैकड़ों साल से भारत बाहर से आने वालों के लिए धर्मशाला जैसा बना हुआ है। जो यहाँ आया यहाँ का वाशिंदा बनकर रह गया। हमारे देश के लाखों लोग भी जाकर विदेशों में स्थायी रूप से बस चुके हैं लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बनने वाली किसी भी बात की अनदेखी खतरनाक होती है और उस लिहाज से अतीत में हुई गलतियों से सीखकर सुधार करने का सही समय आ चुका है।
-रवीन्द्र वाजपेयी
No comments:
Post a Comment