Saturday 28 September 2019

इमरान: न गहराई न गम्भीरता

संरासंघ की महासभा में गत दिवस भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने एक जिम्मेदार वैश्विक नेता के तौर पर समकालीन समस्याओं और उनके हल में भारत की भूमिका का प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण किया और  विश्व को आतंकवाद के विरूद्ध भारत की चिंता और आक्रोश दोनों से अवगत करवाते हुए कहा कि भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं शान्ति के प्रतीक बुद्ध दिए हैं | श्री मोदी ने प्रकृति , पर्यावरण , कार्बन उत्सर्जन , बढ़ते तापमान और विभाजित विश्व जैसे विषयों पर गम्भीर बातें कहते हुए जहां विश्व बिरादरी के समक्ष भारत की छाप छोड़ी वहीं उनके बाद दिए अपने लम्बे भाषण में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत को गरियाया तथा  काश्मीर में खूनखराबा होने के  साथ ही  एक बार फिर परमाणु युद्ध की धमकी देते हुए उसकी अग्रिम जिम्मेदारी संरासंघ पर डाल दी | इमरान के भाषण का केंद्र बिंदु इस्लामी एकता रही | कश्मीर मसले का बार - बार उल्लेख करते हुए उन्होंने भारत के विरोध में इस्लामी देशों को एकजुट होने की बात कहते हुए इस बात पर भी तंज कसा कि आतंकवाद के लिए केवल मुसलमानों को ही कसूरवार ठहराया जाता है | और भी अनेक बातें उनने ऐसी कहीं जिन्हें विश्व मंच की गरिमा के लिहाज से सही नहीं माना जा सकता | लेकिन वे इन दिनों जिस मानसिक स्थिति  से गुजर रहे हैं उसमें उनसे ऐसी ही अपेक्षा थी | इमरान का गुस्सा भारत पर तो सर्वविदित है लेकिन कश्मीर मसले पर विश्व की बड़ी शक्तियों ने जिस प्रकार पाकिस्तान का समर्थन करने से परहेज किया उससे तो वे भन्नाए थे ही लेकिन उनकी निराशा तब और बढ़ गई जब लगभग सभी प्रमुख मुस्लिम देशों ने पाकिस्तान को  भाव नहीं दिया | यही वजह रही कि वे मुस्लिम एकता की बात को दोहराते हुए भारत के विरुद्ध इस्लामी मोर्चा बनाने की कोशिश करते दिखे | कश्मीर में कर्फ्यू हटते ही खूनखराबा होने और भारत से कई गुना  छोटा होने की वजह से परम्परागत युद्ध में सुनिश्चित पराजय की स्थिति में परमाणु हथियारों का प्रयोग करने को उन्होंने पाकिस्तान  के अस्तित्व की रक्षा की जरूरत के रूप में पेश किया | कुल मिलाकर वे जो कुछ भी बोले वह बीते एक - डेढ़ महीने में कही  गई बातों का दोहराव मात्र था | ये कहना भी गलत नहीं होगा कि विगत एक सप्ताह के भीतर अमेरिका में ही इमरान को श्री मोदी के मुकाबले जिस तरह की उपेक्षा और उपहास झेलना पड़ा उससे वे बौखलाहट की चरम अवस्था पर जा पहुँचे हैं | पाकिस्तान के समाचार माध्यमों में उनकी जबर्दस्त फजीहत हो रही है | उसके मद्देनजर इस तरह का भाषण देकर वे अपनी कटी नाक को जोड़ना चाहते हैं | लेकिन वे भूल गए कि उनके देश के हुक्मरानों द्वारा अतीत में भी इसी तरह का बड़बोलापन इस विश्व मंच पर दिखाया जा चुका है लेकिन उनका अंत क्या हुआ ये भी वे जानते होंगे | ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो , जिया उल हक , नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ सभी ने संरासंघ महासभा में भारत को लेकर ज़हर बुझे तीर चलाकर   खुद को सूरमा साबित करने की कोशिश की थी | लेकिन उन सबका हश्र बुरा हुआ | इसकी वजह पाकिस्तानी चरित्र है | भुट्टो ने तो भारतीय कुत्ते जैसी शब्दावली का उपयोग करते हुए एक हजार साल तक लड़ते रहने जैसा दंभ भरा था किन्तु बाद में  वे खुद कुत्ते की मौत मरे और उन्हीं के रहते पकिस्तान के दो टुकड़े हो गए | इमरान  खान भले ही लम्बे समय से सियासत करते आ रहे हों लेकिन उनमें न तो गहराई है और न ही गंभीरता | बार - बार परमाणु युद्ध की धमकी देकर उन्होंने पूरी दुनिया में पाकिस्तान की छवि को मटियामेट कर  दिया | वहीं आतंकवादी संगठनों को प्रशिक्षण की बात को स्वीकार करते हुए  अमेरिका को फांसने की जो कोशिश की उसमें  उनका अपना दामन ही दागदार हो गया | आये दिन भारत से मुकाबला नहीं कर पाने की मजबूरी दिखाकर  जिस बचकाने ढंग से वे परमाणु हमले की धमकी देते हुए पूरी दुनिया को आतंकित कर रहे हैं उसके कारण पाकिस्तान की छवि एक गैर जिम्मेदार देश के रूप में और भी  पुख्ता होती जा रही है | गत दिवस संरासंघ में दिया उनका भाषण उनके सिर पर सवार पराजयबोध का ताजा प्रमाण है | पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं लेकिन ये उसे भी पता है कि उनका प्रयोग  करने का नतीजा  क्या निकलेगा |  1998 में भारत द्वारा परमाणु परीक्षण किये जाने के बाद से लगातार ये आश्वासन दिया जाता रहा है कि वह इन अस्त्रों का उपयोग पहले कभी नहीं करेगा | लेकिन इमरान को ये याद रखना चाहिए कि यदि दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध  की नौबत आई तब पाकिस्तान का अस्तित्व ही मिट जाएगा | उनकी शिक्षा ऑक्सफ़ोर्ड विवि जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में होने के बाद भी वे इतने अपरिपक्व साबित होंगे ये उम्मीद कम थी लेकिन इन दिनों उनका जो व्यवहार देखने मिल रहा है उससे तो लगता है वे विक्षिप्त होने लगे हैं और उनके मन में सत्ता जाने का डर बैठ चुका है | सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा का इस दौरान पूरी तरह से चुप रहना किसी आने वाले तूफ़ान का संकेत हो सकता है |

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment