Tuesday 24 September 2019

इमरान की आखिरी उम्मीद भी टूटी

ऐसा लगता है इमरान खान के बुरे दिन चल रहे हैं। इसकी एक वजह वे खुद हैं। एक तरफ तो वे स्वीकार करते हैं कि उनके देश में हजारों आतंकवादी मौजूद हैं। अल कायदा के लोगों  को प्रशिक्षित किये जाने की बात भी उन्होंने कुबूली है वहीं दूसरी तरफ जब भारत ऐसे ही आरोप लगाता है तब बजाय सहयोगात्मक रुख अपनाने के वे ईंट का जवाब पत्थर से देने से भी आगे बढ़कर अपने परमाणु बम की धौंस दिखाने लग जाते हैं। बात-बात में वे विश्व बिरादरी को ये चेतावनी देते रहते हैं कि भारत के साथ युद्ध हुआ तो वह परम्परागत शैली से ऊपर उठकर परमाणु अस्त्रों के उपयोग तक जा सकता है जिसका असर पूरी दुनिया पर पड़े बिना नहीं रहेगा। लेकिन उनकी बात पर किसी भी बड़े देश ने ध्यान नहीं दिया। अपने भाषणों में वे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिस तरह जिक्र करते हैं उसके विरुद्ध उन्हें अनेक मुस्लिम देश तक चेता चुके हैं। पकिस्तान का सबसे भरोसेमंद साथी चीन भी यद्यपि मौजूदा विवाद में भारत के साथ नहीं है लेकिन वह खुलकर पकिस्तान के समर्थन में आने से भी हिचक रहा है। अब ले देकर एक अमेरिका बच रहता है जिस पर इमरान खान की उम्मीदें टिकी थीं लेकिन बीते कुछ समय से वह भी उसे ठेंगा दिखाने की नीति पर चल रहा है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री भागे-भागे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पास गए और कश्मीर मसले पर मध्यस्थता की गुजारिश की जिसे उन्होंने स्वीकार करते हुएकहा कि श्री मोदी भी उनसे इसके लिए कह चुके थे। जब भारत ने इसका खंडन किया तब श्री ट्रम्प बोलने लगे  कि दोनों देश राजी हों तब वे इसके लिये अपनी सेवाएं देने तैयार होंगे। भारत ने उसके बाद लगातार ये स्पष्ट किया कि कश्मीर दोनों देशों के बीच का विवाद है जिसमें किसी तीसरे की दखलंदाजी उसे मंजूर नहीं। इसके ठीक उलट पाकिस्तान कभी संरासंघ तो कभी अमेरिका को बीच में डालने की कोशिश करता रहता है। लगातार असफल रहने के बाद गत दिवस उसने एक बार फिर कोशिश की। परसों अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में हाउडी मोदी नामक अति भव्य आयोजन में श्री ट्रम्प न सिर्फ शरीक हुए अपितु श्री मोदी की तारीफ करते हुए इस्लामिक आतंकवाद से साथ लडऩे जैसी बात भी कही। उसके बाद कल इमरान खान की उनसे  मुलाकात होनी थी। पाकिस्तान को उम्मीद रही होगी कि अपने स्वभाव के अनुसार श्री ट्रम्प इस दौरान राग पाकिस्तानी गायेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और श्री ट्रम्प ने कह दिया कि कश्मीर दो देशों का मामला है जिसे सुलझाने में मध्यस्थता के लिए वे तभी राजी होंगे जब दोनों इसके लिए सहमत हों। उन्होंने  इस अवसर पर ह्यूस्टन के आयोजन का जिक्र करते हुए श्री मोदी के भाषण का उल्लेख भी किया। पाकिस्तानी पत्रकारों द्वारा  कश्मीर पर लगातार सवाल पूछे जाने पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने इमरान पर तंज कसते हुए पूछा कि ऐसे लोग वे कहाँ से ढूंढ़कर लाते हैं। हालांकि उनने पाकिस्तान के साथ अपने अच्छे रिश्तों  पर श्री मोदी की तारीफ करते हुए इमरान खान को एक तरह से बैरंग चलता किया। वैसे पाकिस्तान परसों रात के बाद ही ये समझ चुका  था कि राष्ट्रपति ट्रम्प पर भारत का जादू चल चुका है। भले ही अमेरिका  लंबे समय तक पाकिस्तान को संरक्षण देता रहा लेकिन जब वह उसे आस्तीन का सांप लगने लगा तब उसने सतर्कता बरतना शुरू किया। विशेष रूप श्री ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद से अमेरिका ने इस्लामी आतंकवाद  के खिलाफ जो सख्त रवैया अपनाया उसकी वजह से भी पाकिस्तान के साथ उसके रिश्तों में खटास आने लगी। परसों रात के बाद से तो पूरा पाकिस्तान डोनाल्ड ट्रम्प को गरियाने में जुट गया है। इमरान भी हाल ही में बोल चुके हैं कि पाकिस्तान ने अमेरिका के हितों की रक्षा के लिए तालिबानी लड़ाके तैयार किये थे।  कुल मिलाकर मौजूदा हालात में पाकिस्तान की  पीठ पर से अमेरिका का हाथ पूरी तरह भले ही  न उठा हो लेकिन अब उसमें पहले जैसी ताकत नहीं रही। इसकी एक वजह भारत की बढ़ती आर्थिक और सामरिक क्षमता भी है। दक्षिण  एशिया में चीन के विरुद्ध अमेरिकी मोर्चेबंदी में भारत ही उसके लिए सबसे अधिक सहायक हो सकता है ये बात अमेरिकी नीति निर्धारक समझ बैठे हैं। यही वजह है कि अनुच्छेद 370 खत्म करने जैसे बड़े फैसले पर वाशिंगटन भारत के विरुद्ध जाने की हिम्मत नहीं कर सका। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जिस चपलता के साथ रूस, फ्रांस सहित सऊदी अरब जैसे देशों  को भरोसे में लेने का दांव चला उसके बाद इमरान खान पूरी तरह किनारे लग गये। पाकिस्तान पश्चिमी ताकतों का पालित पुत्र रहा है। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि वह उनके फेंके टुकड़ों पर ही पलता रहा है। लेकिन 2014 के बाद स्थिति बदलती गयी और भारत को विश्व शक्तियों ने अपनी बिरादरी में शामिल कर  लिया। इसके पीछे व्यापारिक स्वार्थ भी हैं लेकिन ये भी सही है कि इस दौरान भारत की छवि को संवारने का काम अत्यंत कुशलता से हुआ और उस वजह से पाकिस्तान लगातार कमजोर पडऩे लगा। बीते दो दिनों में अमेरिका में उसे जो देखने और सुनने मिला उसके बाद इमरान खान को ये समझ लेना चाहिए कि वे भारत के विरुद्ध नफरत को त्यागकर बिना जिद किये दोस्ती का हाथ बढ़ाएं वरना उनका हश्र भी उनके पूर्ववर्ती शासकों जैसा होना तय है। उनकी नासमझी का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि वे अमेरिका यात्रा में अपने साथ फौजी जनरल बाजवा को लेकर गये हैं।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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