Saturday 14 September 2019

आस्था अच्छी लेकिन उसका अतिरेक बुरा

धार्मिक आयोजनों में अव्यवस्था और असावधानी हमारा चरित्र बन चुकी है। कभी किसी मेले में भगदड़ में लोग मारे जाते हैं तो कभी किसी मंदिर के दर्शनों हेतु उमड़ी भीड़ के बेकाबू होने से लोगों की जान चली जाती है। नदी और तालाबों में प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान भी प्रतिवर्ष जानलेवा हादसे होते हैं। लेकिन उनकी पुनरावृत्ति रोकने की तरफ अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जाना बेहद चिंताजनक विषय है। गत दिवस मप्र की राजधानी भोपाल में तड़के गणेश प्रतिमा का विसर्जन करते समय नाव पलटने से 11 व्यक्तियों की मौत हो गई। हुआ यूँ कि एक बड़े आकार की प्रतिमा का स्थानीय छोटे तालाब में विसर्जन करने के लिये दो नावों को बांधकर उसे तालाब में ले जाया गया। दो नाविकों के साथ 17 लोग भी उसमें सवार थे। प्रतिमा को तालाब में गिराते समय नावों का संतुलन बिगड़ गया। किनारे पर मौजूद गोताखोरों ने 6 लोगों को तो बचा  लिया लेकिन 11 अभागे अपनी जान से हाथ धो बैठे। प्रशासन ने दोनों नाविकों  पर लापरवाही का प्रकरण दर्ज करते हुए कुछ शासकीय कर्मियों को भी निलम्बित कर दिया है। घटना की  मजिस्ट्रियल जांच के आदेश भी दे दिए गए वहीं मृतकों के परिजनों को बतौर मुआवजा 11 लाख की राशि  देने की घोषणा भी राज्य सरकार ने कर डाली। इस साल भारी बरसात के कारण मप्र की सभी नदियों और तालाबों में भरपूर पानी है। ऐसे में गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान अतिरिक्त सावधानी की जरूरत  शासन और जनता दोनों से अपेक्षित थी। जलस्रोतों को प्रदूषण से बचाने के लिए अनेक शहरों में प्रशासन ने विसर्जन कुंड भी बनवाये हैं। हालांकि उसके बावजूद श्रद्धा के अतिरेक में कुछ लोग नदियों और तालाबों में ही प्रतिमा विसर्जन की जिद पकड़कर प्रशासन से हुज्जत करने से बाज नहीं आते। लेकिन प्रदेश की राजधानी में विसर्जन कुंड की व्यवस्था करने पर प्रशासन ने ध्यान क्यों नहीं दिया ये विचारणीय है। बहरहाल इस तरह के हादसों के लिए शासन-प्रशासन के साथ ही जनता भी बराबर की कसूरवार होती है। धार्मिक आयोजनों में अनुशासन की घोर उपेक्षा की जाती है। गणेश जी के अलावा दुर्गा प्रतिमा विसर्जन का समयबद्ध कार्यक्रम नहीं होने से इस तरह के हादसे होते हैं। भोपाल में जो कुछ हुआ वह भोर की बजाय शाम अथवा रात्रि के प्रारंभिक घन्टों में हुआ होता तब शायद जनहानि इतनी न होती और संभव था बिलकुल भी नहीं होती। पुलिस और प्रशासन के जो लोग ऐसे समय सेवारत रहते हैं वे भी आखिर थकते तो हैं ही। कर्मियों की कमी के चलते जिसकी तैनाती हो गई उसे लंबे समय तक रहना पड़ता है। सबसे चौंकाने वाली बात ये रही कि नावों में बैठने वालों के लिए जीवन रक्षक जैकेट की अनिवार्यता पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। और भी बातें जांच में सामने आयेंगी लेकिन उनसे सबक लेकर प्रशासन और जनता दोनों भविष्य में सावधान और सतर्क हो जायेंगे इसकी उम्मीद न के बराबर है। जो लोग मारे गए उनके घरों पर दो-चार दिन नेताओं के घडिय़ाली आंसू बहेंगे। राज्य सरकार ने इंसानी जान की कीमत 11 लाख तय कर दी तो विपक्ष में बैठी भाजपा ने 25 लाख की मांग कर खुद को जनता का हमदर्द बताने की पेशकश कर डाली। कुल मिलाकर वही घिसा-पिटा तरीका इस हादसे के बाद भी दोहराया जाएगा और दो चार दिन बाद संवेदनाएं भी गुलदस्ते के फूलों को मुरझाते ही फेंक दिए जाने वाली स्थिति में आ जायेंगी। ये कहना तो गलत होगा कि ऐसे आयोजनों में अव्यवस्था को रोकने  के लिए कुछ नहीं होता। उज्जैन में आयोजित पिछले सिंहस्थ और प्रयाग में संपन्न कुम्भ मेले में शासन-प्रशासन की चाक-चौबंद व्यवस्था की विश्वव्यापी प्रशंसा हुई थी। लेकिन ये भी उतना ही सही है कि बड़े आयोजनों के प्रबंध हेतु बरती जाने वाली सावधानियां अपेक्षाकृत छोटे आयोजनों में उपेक्षित कर दी जाती हैं। भोपाल का हादसा उसी का परिणाम है। लेकिन प्रशासन की लापरवाही से ऊपर उठकर समाज के लिए भी ये प्रश्न विचारणीय है कि क्या धार्मिक आयोजनों को लेकर कोई स्वनिर्मित अनुशासन होना चाहिए या नहीं? जबलपुर में शारदेय नवरात्रि  के दौरान सैकड़ों दुर्गा प्रतिमाएं स्थापित होती हैं। एक ज़माने में दशहरा के दिन सभी प्रतिमाएं रामलीला के पीछे चलते हुए हनुमानताल नामक विशाल तालाब में विसर्जित होती थीं। इस चल समारोह को देखने लाखों लोग शाम से देर रात तक सड़कों के किनारे जमा होते थे। शहर के विस्तार के बाद विभिन्न उपनगरीय क्षेत्रों के अपने विसर्जन जुलूस निकलने लगे। इस वजह से प्रशासन के लिए भी बड़ी समस्या बन जाती है। कुछ प्रतिमाएं दशहरा के कुछ दिन बाद तक नर्मदा नदी में विसर्जन हेतु ले जाई जाती हैं। जिसके कारण यातायात प्रभावित होता है। प्रशासन के सख्ती करने पर विवाद की स्थिति बन जाती है। राजनीतिक नेता ऐसे अवसरों पर चुप रहते हैं जिससे उनके वोट बैंक का नुकसान न हो। ये सब देखते हुए हर शहर में विराजमान धर्मगुरुओं का दायित्व है कि वे आगे आकर लोगों को धर्म के साथ जुड़े अनुशासन और मर्यादाओं का पालन करने हेतु प्रेरित करें। आस्था बहुत ही अच्छी चीज है जो व्यक्ति में संवेदनशीलता का संचार करती है। धर्म भी एक व्यवस्था है जिसके अंतर्गत समाज का व्यवस्थित संचालन होत्ता है। लेकिन इन दोनों का अतिरेक हमेशा पीड़ादायक साबित हुआ है। गणेश जी बुद्धि और विवेक के अधिष्ठाता कहे जाते हैं। उनकी पूजा अर्चना करने वाले यदि बुद्धि और विवेक का सहारा लेते रहें तो भोपाल जैसे हादसों के पुनरावृत्ति रोकी जा सकती है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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