Monday 10 January 2022

बरसात में भीगता अनाज राष्ट्रीय क्षति : भण्डारण क्रान्ति की सख्त जरूरत



एक साल से ज्यादा चले किसानों के धरने में कृषि कानून वापिस लिए जाने के साथ ही इस बात पर भी  जोर रहा कि कृषि उत्पादों के लिए निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी स्वरूप प्रदान किया जाए | हालाँकि धरना तो खत्म हो गया लेकिन इस मांग पर किसान संगठन अभी भी अड़े हुए हैं और केंद्र सरकार शीघ्र ही इस बारे में  एक समिति गठित करने वाली है | ये समस्या इसलिए खड़ी  हुई क्योंकि सत्तर के दशक में  आयात खत्म कर देश को खाद्यान्न आत्मनिर्भर बनाने हेतु तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने जिस हरित क्रांति की शुरुआत की उसने पूरी कृषि व्यवस्था को बदल डाला | सिंचाई सुविधाओं के विकास के साथ ही तकनीक आधारित उन्नत खेती की वजह से अनाज का उत्पादन तेजी से बढ़ने लगा | व्यावसायिक दृष्टिकोण वाले किसानों ने सब्जियों  , फलों  और फूलों की खेती करना शुरु किया | परिणाम ये हुआ कि भारत गेहूं और चावल का निर्यात करने की सुखद स्थिति में आ गया | इस वर्ष देश के पास  इतना अनाज सरकारी गोदामों में है जिससे आगामी दो  साल तक काम चलाया जा सकता है | कहा जाता है यदि केंद्र सरकार कोरोना काल में 80 करोड़ लोगों  को मुफ्त अनाज न बांटती तब उसको रखने की जगह नहीं बचती | 2020 और 2021 में लगाये गए लॉक डाउन के दौरान जब उद्योग – व्यापार बुरी तरह चौपट होकर रह गये थे,  उस समय भी किसानों ने अपनी उद्यमशीलता से रिकॉर्ड उत्पादन करते हुए देश को खाद्यान्न सुरक्षा के प्रति निश्चिन्त रखा | लेकिन इस उपलब्धि पर हर साल भण्डारण क्षमता की कमी पानी फेर देती है | बीते कुछ दिनों से देश के अनेक राज्यों में बरसात हो रही है | इस मौसम में बिना ओले वाली वर्षा रबी फसल के लिए अमृत समान मानी जाती है | लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि अगली फसल के लिए लाभदायक इस मौसम की वर्षा पिछले मौसम की उपज को बर्बाद करने का कारण भी बनती  है | म.प्र को ही लें तो यहाँ सरकार द्वारा खरीदी जा रही लाखों टन धान उचित भण्डारण नहीं होने के कारण खुले आकाश के नीचे रखी – रखी भीग गई | इसी के साथ ही जिन किसानों की धान कृषि उपज मंडियों में सरकारी खरीद हेतु तुलाई का इंतजार कर रही थी , वह भी बरसात का शिकार हो गई | ज्यादा दूर न जाएं तो केवल जबलपुर जिले में ही एक लाख क्विंटल धान के भीगने की खबर है | यदि समूचे प्रदेश में हुए नुकसान का आँकड़ा एकत्र किया जाए तो अंदाज लगाया जा सकता है कि किसान की मेहनत और सरकार के पैसे किस तरह बर्बाद हो रहे हैं |  | इस बारे में ये भी जानकारी आई है कि मंडियों में रखे जाने वाले अनाज को ढांकने के लिए पर्याप्त मात्रा में तिरपाल तक उपलब्ध नहीं हैं | ये वाकया हर साल और हर फसल के दौरान दोहराया जाता है | रबी फसल की ख्ररीदी होते – होते जब मानसून आ टपकता है ,  तब मंडियों में रखा गेंहू तथा चना  वगैरह  भीगते हैं और खरीफ फसल के समय शीतकालीन वर्षा से अनाज बर्बाद होता है | देश में  अनाज के साथ ही सब्जियों और फलों का उत्पादन जिस मात्रा में बढ़ रहा है उस लिहाज से भण्डारण और प्रसंस्करण ( प्रोसेसिंग ) क्षमता में वृद्धि न होने से प्रतिवर्ष जितना नुकसान होता है वह अक्षम्य अपराध की श्रेणी में रखे जाने लायक है | भारतीय खाद्य निगम अपनी गोदामों के अलावा निजी क्षेत्र की गोदामों को भी अनुबंध पर किराये से लेता है | गोदाम बनाने के लिए बैंकों से ऋण के अलावा सरकार से अनुदान भी मिलता है | हालाँकि स्थिति पहले से कुछ सुधरी है किन्तु कृषि उत्पादन जिस अनुपात में बढ़ रहा है उसकी तुलना में भंडारण व्यवस्था न होने से अनाज की बर्बादी का निर्बाध क्रम जारी है | सब्जियों और फलों के भंडारण के लिए कोल्ड स्टोरेज और प्रसंस्करण इकाइयों के अभाव में भी प्रगतिशील किसानों को उनके श्रम का उचित मूल्य नहीं मिल पाता ,  वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय  अर्थव्यस्था को भी नुकसान होता है | हरित क्रान्ति के सूत्रपात के समय ही यदि इस दिशा में समानांतर और सार्थक प्रयास किये जाते तो ये समस्या उत्पन्न नहीं होती | लेकिन हमारे देश में योजना बनाने वालों में समग्र सोच का अभाव होने से समय और धन का समुचित उपयोग नहीं हो पाता | इसका एक उदाहरण बड़े बांधों के बन जाने के बरसों बाद तक उनसे जोड़ी जाने वाली नहरों का निर्माण न होना है | ऐसे  में  उनसे बिजली भले बनती हो लेकिन किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाने का मूल उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता | देश आज जिस मुकाम पर खड़ा है वहां उसे वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए स्वयं को तैयार करना है तो  किसी भी चीज के उत्पादन के  साथ ही उसके निर्यात की व्यवस्था भी करनी होगी | यदि उचित भंडारण और प्रसंस्करण की पर्याप्त व्यवस्था की जाए तो बड़ी बात नहीं भारत कृषि उत्पादों के निर्यात  में भी बड़ी ताकत बन सकता है | सरकार द्वारा  खरीदे जाने वाले खाद्यान्न की बर्बादी के साथ भ्रष्टाचार भी काफी नजदीकी से जुड़ा है | गोदामों में रखे अनाज को चूहे  जितना खाते हैं उससे ज्यादा तो सरकार का भ्रष्ट अमला हजम कर जाता है | इसी तरह की  और भी बातें हैं लेकिन कुछ दिन उछलने के बाद सारे मामले ठन्डे पड़ जाते हैं , अगली बरसात के लिए | सरकार को ये सब न दिखता हो ऐसा नहीं है किन्तु सरकारी मंडियों और समितियों में बैठी  राजनीतिक जमात भी इस लूटमार में बराबरी से चूंकि शामिल रहती है इसलिए हल्ला चाहे कितना मचे , परन्तु  स्थिति वही ढाक के तीन पात की बनी रहती है | जबलपुर जिले में एक लाख क्विंटल धान के भीग जाने से नुकसान किसानों का हुआ या सरकार का ये उतना महत्वपूर्ण नहीं बल्कि चिंता का विषय है कि ये सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले  रहा |   सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए जो प्रयास कर  रही है वे अपनी जगह हैं लेकिन यदि भंडारण और प्रसंस्करण की समुचित व्यवस्था की जा सके तो किसान और सरकार दोनों हर साल होने वाले बड़े नुकसान से बच सकते हैं | पता नहीं किसान आन्दोलन के कर्ताधर्ताओं की समझ में ये मुद्दा क्यों नहीं  आया जबकि इस दिशा में उसी तरह के समयबद्ध प्रयास जरूरी हैं जैसे परिवहन मंत्री नितिन गडकरी राजमार्गों के निर्माण में कर  रहे हैं |  

-रवीन्द्र वाजपेयी

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