Monday 24 January 2022

आयकर समाप्त करना सबसे क्रांतिकारी आर्थिक सुधार होगा



फरवरी के करीब आते ही भारत में बजट को लेकर कयास लगने शुरू हो जाते हैं। अर्थशास्त्र के ज्ञाता तो सुझाव देते ही हैं लेकिन उद्योग-व्यापार संगठन, कर्मचारी और जमा राशि के ब्याज पर निर्भर बुजुर्ग भी अपने-अपने नजरिये से बजट से अपेक्षाएं करते हैं। वित्त मंत्री द्वारा भी समाज के विभिन्न वर्गों से राय लेकर बजट को लोकप्रिय बनाने की कोशिश की जाती है। लेकिन शायद ही कभी किसी वित्तमंत्री ने हर तबके को संतुष्ट किया हो। उस दृष्टि से निर्मला सीतारमण भी अपवाद नहीं हैं। और फिर बीते दो साल से कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था वैसे भी डांवाडोल रही। सौभाग्य से इस वर्ष कोरोना की दूसरी भयावह लहर के बाद ओमिक्रोन नामक तीसरी लहर का का खौफ जल्द खत्म होने की सम्भावना के चलते अर्थव्यवस्था की पुरानी रफ्तार लौटती दिखाई दे रही है। बीते कुछ महीनों में मासिक जीएसटी संग्रह लगातार एक लाख करोड़ से अधिक होना अपने आप में काफी कुछ कहता है। ऐसे में आम जन के साथ ही उद्योग-व्यापार जगत भी वित्तमंत्री से अपेक्षा कर रहा है कि वे उसके घावों पर मरहम लगाने की कृपा करेंगीं। सबसे ज्यादा उम्मीद आयकर की दरों और छूट को लेकर लगाई जा रही हैं। इस बारे में अनेक तरह के सुझाव आते जा रहे हैं किन्तु सबसे सटीक और कारगर सुझाव दिया डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने। अर्थशास्त्र के अध्यापन के साथ राजनीति का उनका अनुभव काफी विशद है। यद्यपि अपने विवादास्पद बयानों और अति महत्वाकांक्षी स्वभाव के कारण लोग उनसे छिटकते भी हैं। विशेष रूप से सत्ता पक्ष सदैव उनसे बचने का प्रयास करता है। बीते अनेक सालों से वे भाजपा के साथ हैं लेकिन हिन्दुत्व के प्रखर पैरोकार होने के अलावा गांधी परिवार के विरुद्ध अनेक अदालती मामले चलाने के बावजूद उनकी मोदी सरकार से पटरी नहीं बैठी। हालाँकि उनको राज्यसभा में भेजने के साथ ही वीआईपी सुरक्षा भी दी गई किन्तु नीतिगत मामलों में सरकार की टांग खींचने का कोई मौका वे नहीं गंवाते। लेकिन आगामी बजट को लेकर डा. स्वामी ने आयकर समाप्त करने का जो सुझाव सरकार को दिया है उस पर विचार किया जावे तो ये महसूस होगा कि वे उस जनभावना को ही अभिव्यक्त कर रहे हैं जो लम्बे समय से बौद्धिक विमर्श का विषय तो है लेकिन न जाने क्यों देश भर के अर्थशास्त्री और आर्थिक क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवर जन इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय नहीं बनाते? इस बारे में उल्लेखनीय है कि अर्थ क्रांति नामक एक अध्ययन संस्थान ने इस बारे में जो शोध प्रबंध तैयार किया उसमें आय कर खत्म कर बैंक में जमा की जाने वाली नगद राशि पर ट्रांजेक्शन टैक्स लगाने का सुझाव दिया गया है। उसके अनुसार आय कर हमारे देश में कर चोरी और काले धन को प्रोत्साहित करने का जरिया बन गया है। भ्रष्टाचार भी इसी के कारण पनपता है। उक्त संगठन के अनुसार देश में सबसे बड़ा नोट 100 रु. का ही होना चाहिए। कहा जाता है अर्थ क्रांति के प्रमुख अनिल बोकिल से उक्त विषय पर चर्चा के उपरांत ही प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में नोटबंदी जैसा दुस्साहसी कदम उठाया किन्तु उस सुझाव को आधा ही लागू किया गया। नोट बंदी के कुछ लाभ हुए और उसकी वजह से देश में गैर नगदी लेन-देन बढ़ा। नई पीढ़ी की डिजिटल ट्रांजेक्शन के प्रति जबरदस्त रूचि भी काबिले गौर है। व्यावसायिक लेन-देन में भी ई-बैंकिंग का चलन लोकप्रिय हुआ है। इस कारण काले धन से चलने वाली समानांतर अर्थव्यवस्था को हल्की चोट तो लगी लेकिन 2000 रु. का नोट चलन में आने के बाद वह उसका माध्यम बन गया। अभी हाल ही में कन्नौज में इत्र व्यापारी के यहाँ छापे में तकरीबन 200 करोड़ की नगदी मिलने के बाद विपक्ष ने नोट बंदी की विफलता का मुद्दा एक बार फिर उठाया। डा. स्वामी भी समय-समय पर प्रधानमन्त्री के उस कदम की आलोचना करते हुए कहते रहे हैं कि उसका क्रियान्वयन ठीक तरह से नहीं होने से कारोबारी जगत को बड़ा नुकसान हुआ। ये देखते हुए आगामी बजट में करों को लेकर राहत की जो भी मांगें हो रही हैं उनमें सबसे महत्वपूर्ण आयकर समाप्त करने संबंधी सलाह है। डा. स्वामी के अनुसार आयकर से मिलने वाला राजस्व लगभग 8 से 9 लाख करोड़ ही है जो कि अर्थव्यवस्था के आकार के मुताबिक बहुत ही मामूली है। ऐसे में सरकार चाहे तो इसे समाप्त कर वैकल्पिक स्रोतों से अपना खजाना भर सकती है। उनके मुताबिक आयकर खत्म होने से लोगों में बचत की प्रवृत्ति बढ़ेगी तथा काले धन के रूप में अनुपयोगी पड़ा धन भी अर्थव्यवस्था में शामिल होकर उसे गतिशील बनाने में सहायक होगा। डा. स्वामी तो खैर आर्थिक मामलों के अच्छे जानकार हैं ही किन्तु इस विषय की छोटी सी जानकारी रखने वाला व्यक्ति भी ये स्वीकार करेगा कि आयकर भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण है। इस विभाग के प्रति आम जनता के मन में क्या धारणा है ये किसी से छिपा नहीं है। कर चोरों की तो बात ही अलग है परन्तु जो लोग ईमानदारी से आय कर का भुगतान करते हैं वे भी इस विभाग के साधारण कर्मचारी के आ जाने से भयग्रस्त हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार में बैठे महानुभाव इस वास्तविकता से अनजान हों लेकिन ऐसा लगता है आय कर विभाग में होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने में किसी सरकार की रूचि नहीं है या फिर साहस का अभाव है। डा. स्वामी से प्रधानमन्त्री की भले ही न पटती हो लेकिन उनका सुझाव जनता और अंतत: देश के हित में है। जीएसटी आ जाने के बाद वैसे भी विभिन्न करों की जरूरत खत्म हो जानी चाहिए। प्रधानमंत्री साहसिक फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं। बीते सात साल से भी ज्यादा के शासनकाल में आर्थिक, सामरिक, प्रशासनिक और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े अनेक सुधारवादी फैसले उनके द्वारा लिए गये। हालाँकि भूमि अधिग्रहण और कृषि सुधार कानून उनको वापिस लेने पड़े किन्तु शेष फैसले लागू करने में वे सफल रहे। ये देखते हुए आय कर खत्म करने जैसा निर्णय यदि आगामी बजट में लिया जा सके तो इससे अर्थव्यवस्था में जबरदस्त सुधार देखने मिलेगा। सबसे बड़ी बात ये होगी कि संस्थागत रूप ले चुके भ्रष्टाचार पर अकल्पनीय अंकुश लगने से पूरी दुनिया में भारत की छवि उद्योग-व्यवसाय के लिए सर्वाधिक अनुकूल देश के तौर पर स्थापित हो सकेगी। हालाँकि सरकार में बैठे राजनेता इस विषय की बारीकी को कितना समझ सकेंगे ये विचारणीय है क्योंकि उनमें से अधिकतर तो वे हैं जो नौकरशाही की नजर से देखने के आदी हैं। प्रधानमंत्री रेडियो पर मन की बात कार्यक्रम के लिए आम जनता से सुझाव आमन्त्रित करते हैं। इस माह के अंत में की जाने वाली मन की बात के लिए वे आय कर की उपयोगिता पर लोगों की राय आमंत्रित करें तो उन्हें वही सब सुनने मिलेगा तो अनिल बोकिल और अब डा. स्वामी ने कहा है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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