Saturday 1 January 2022

वैष्णो देवी हादसा : आस्था के अतिरेक का दुखद परिणाम



वर्ष 2022 की सुबह-सुबह इस खबर ने मन दुखी कर दिया कि नए वर्ष पर माता वैष्णो देवी के दर्शन करने गये श्रद्धालुओं के बीच धक्का-मुक्की होने से मची भगदड़ में 12 लोगों की मौत हो गई और 14 घायल हैं जिनमें 3 की हालत गंभीर है। 31 दिसम्बर की रात वैष्णो देवी के दर्शन करने बहुत बड़ी संख्या में भक्तगण जमा हो गये थे। देर रात तकरीबन तीन बजे कुछ लोगों के बीच हुई कहा-सुनी के बाद अफरातफरी मचने से उक्त हादसा हुआ। घायलों के इलाज का इंतजाम प्रशासन द्वारा किया गया है। मृतकों और घायलों के परिवारों को आर्थिक मुआवजा देने का ऐलान केंद्र और राज्य दोनों ने कर दिया है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार नये साल के अवसर पर वैष्णो देवी के दर्शन करने श्रद्धालुओं की बेतहाशा भीड़ जमा होने के बावजूद वहां समुचित व्यवस्था नहीं थी। कटरा से पवित्र गुफा तक के मार्ग पर चूँकि 24 घंटे लोगों का आवागमन लगा रहता है इसलिए विद्युत् आपूर्ति भी निर्बाध रखी जाती है। बावजूद इसके रात में मची भगदड़ में लोग अपना बचाव नहीं कर सके होंगे। हालाँकि इसके पहले भी अनेक धार्मिक स्थलों पर इसी तरह की घटनाएँ दिन के समय होने पर भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु मारे गये थे। इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि लगभग हर वर्ष देश के किसी न किसी धार्मिक केंद्र पर इस तरह की जानलेवा घटनाएँ होती हैं। सरकार मुआवजा बाँटकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है वहीं प्रशासन दो-चार कर्मियों पर जिम्मेदारी थोपकर मामले की लीपापोती देता है। हालाँकि अनेक धार्मिक स्थलों पर ऐसे हादसों के बाद व्यवस्था में थोड़ा सुधार किया गया है लेकिन दूसरी तरफ ये भी सही है कि श्रद्धालुओं की निरंतर बढ़ती भीड़ के कारण सारी व्यवस्थाएं अपर्याप्त साबित होती हैं। वैष्णो देवी धाम में भी बीती रात व्यवस्था की कमी महसूस की गई। लेकिन इसके अलावा विचारणीय प्रश्न ये भी है कि जो श्रद्धालुजन पैसा और समय खर्च कर धार्मिक केन्द्रों पर आते हैं उनमें व्यवस्था का पालन करने की सहज प्रवृत्ति का अभाव होने से अनुशासनहीनता का बोलबाला हो जाता है। आवागमन के साधनों के साथ धार्मिक स्थलों पर भोजन और आवास के इंतजाम बढ़ते जाने से भी यात्रियों की संख्या में समय के साथ बढ़ोतरी होने लगी है। पहले केवल तीर्थयात्री ही ऐसे स्थानों पर जाते थे जिन्हें ज्यादा सुविधाओं की दरकार नहीं होती थी परन्तु अब धार्मिक यात्राओं के साथ पर्यटन का भाव जुड़ जाने से भीड़ बढ़ती जा रही है। जम्मू-कश्मीर जाने वाले अधिकतर सैलानी जाते या लौटते समय वैष्णो देवी के दर्शन करना नहीं भूलते। देश के जिन धार्मिक स्थलों में दर्शनार्थियों की सबसे ज्यादा संख्या आती है उनमें वैष्णो देवी प्रमुख हैं। बीते कुछ दशकों में यहाँ उपलब्ध सुविधाओं एवं व्यवस्थाओं में काफी सुधार हुआ है लेकिन जिस अनुपात में दर्शनार्थी बढ़ते जा रहे हैं उसे देखते हुए वे कम पड़ जाती हैं। नवरात्रि एवं अन्य विशेष अवसरों पर देश भर के मंदिरों एवं अन्य धार्मिक स्थलों पर औसत से ज्यादा भीड़ होती है। आज सुबह से आ रही खबरें इस तथ्य की पुष्टि करती हैं। म.प्र के उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में आज सुबह 2 घंटे में 50 हजार श्रद्धालुओं ने दर्शन किये। प्राचीनकाल में बने मंदिरों में गर्भगृह बहुत छोटे होने से भी भक्तों की भीड़ परेशानी का कारण बन जाती है। वैष्णो देवी धाम में गत रात्रि जो हादसा हुआ उसका कारण भी मानवीय लापरवाही और अनुशासनहीनता ही है। श्रद्धालुओं का आपस में झगडऩा और उसके बाद भगदड़ होने से बेक़सूर लोगों का मारा जाना बहुत ही अफसोसनाक है। ऐसी घटना के जिम्मेदार लोगों की पहिचान भी शायद ही हो पायेगी। लेकिन बात केवल मुआवजे के वितरण और सरकारी अमले के दो-चार लोगों के निलम्बन तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। उल्लेखनीय है 1954 में प्रयागराज (तात्कालिक अलाहाबाद) के कुम्भ में मची भगदड़ में 1000 लोग मारे गये थे। उसके बाद इस मेले की व्यवस्थाओं में लगातार सुधार किया जाता रहा। बढ़ती जनसँख्या के कारण प्रयाग के कुम्भ मेले में विशेष स्नान के अवसर पर करोड़ों लोग पवित्र संगम में स्नान करते हैं। पूरे एक माह तक प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु वहां आते हैं। लेकिन दशकों पहले हुई दुर्घटना से सबक लेकर व्यवस्थाओं में किये सुधारों से प्रयाग का कुम्भ विश्वस्तर पर प्रबंधन विशषज्ञों के लिए अध्ययन का विषय बन गया। ये बात भी गौर तलब है कि इस मेले में आने वाले यात्री भी व्यवस्थाओं में सहयोग देते हैं। लेकिन सभी धार्मिक स्थलों पर ऐसा नहीं होता। यही कारण है कि समय-समय पर देश के किसी न किसी हिस्से में इस तरह की दुखद घटनाएँ हो जाती हैं। लोगों के बढ़ते आर्थिक स्तर ने भी धार्मिक पर्यटन में वृद्धि की है। उत्तराखंड में स्थित चार धाम जाने वाले तीर्थ यात्रियों की संख्या में साल-दर साल वृद्धि होने से समूचे गढ़वाल अंचल का पर्यावरण संतुलन गड़बड़ा गया है। जिसकी वजह से वहां प्राकृतिक आपदाएं जल्दी-जल्दी आने लगी है। अब तो वहां हाइवे भी बन रहे हैं जिसके बाद आवक-जावक और बढ़ जायेगी। दरअसल गलतियों से सीखकर उन्हें सुधारने की बजाय उनको दोहराने की प्रवृत्ति ऐसे हादसों का कारण बनती है। धार्मिक आस्थाओं के पालन में संयम और अनुशासन का बड़ा महत्व होता है जिसका अभाव अनेक विकृतियों को जन्म दे रहा है।  वैष्णो देवी में हुई दुर्घटना का कारण दर्शनार्थियों के बीच हुआ झगड़ा था। इसके लिए निश्चित तौर पर प्रशासनिक अमले के साथ ही मंदिर प्रबंधन की लापरवाही का भी संज्ञान लिया जाना चाहिए। लेकिन तीर्थ स्थान की यात्रा  करने वालों को भी भीड़ की मानसिकता त्यागकर व्यवस्था के अनुरूप आचरण करने का संस्कार विकसित करना होगा। छोटी सी बात का बतंगड़ बनाकर अव्यवस्था फैला देना धार्मिक आस्था का मखौल है। बेहतर हो राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक केन्द्रों संबंधी नियम बनाये जाएँ किन्तु इन्हें लागू करने में साधु-संत, पण्डे और पुरोहित समुदाय की सहमति और सहयोग भी मिलना चाहिए। उनको ये बात समझनी होगी कि आबादी का विशाल आकार तथा आवागमन की सुविधाओं और साधनों के विकास के कारण अब धार्मिक स्थलों की व्यवस्था बदलते हालात के अनुसार की जानी चाहिए जिससे इस तरह की दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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