Saturday 22 January 2022

अच्छा हो अपनी पार्टी से ही शराबबंदी अभियान की शुरुआत करें साध्वी



म.प्र की पूर्व मुख्यमंत्री उमाश्री भारती ने शराबबंदी जैसे सामाजिक मुद्दे के जरिये प्रदेश में सक्रियता बढ़ाने का  जो संकेत कुछ समय पहले दिया उसके बाद ही शिवराज सिंह चौहान की सरकार नई आबकारी नीति लेकर आ गई | जिसके अंतर्गत शराब सस्ती की जायेगी ताकि पड़ोसी राज्यों में कम दामों के कारण तस्करी से होने वाली राजस्व हानि रोकी जा सके | इस नीति का कांग्रेस जमकर विरोध कर रही है | वहीं केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते तो यहाँ तक कह गये कि शराब सरकार की कमाई का बड़ा हिस्सा है और पर्यटन भी इसी से बढ़ता है | भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने हालाँकि शराब नीति का समर्थन तो नहीं किया किन्तु ये कहकर सुर्खियाँ बटोरीं कि कम मात्रा में उसका सेवन औषधि का  काम करता है जबकि अधिक लेने पर वह जहर बन जाती है | लेकिन उमाश्री अपनी बात पर कायम हैं और गत दिवस उन्होंने घोषणा कर दी कि वे आगामी 14 फरवरी से बाकायदा शराबबंदी हेतु अभियान चलाएंगी | उन्होंने ये भी कहा कि वे इस बाबत वरिष्ठ स्वयंसेवकों , मुख्यमंत्री श्री चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा से भी चर्चा कर  चुकी है | सुश्री भारती ने  ये भी स्पष्ट कर दिया कि उनका अभियान सरकार के नहीं अपितु नशा और शराब के विरुद्ध है | वैसे भी  मुख्यमंत्री और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दोनों शराब  समर्थक नहीं माने जाते | इसी तरह जिन स्वयंसेवकों से मिलने की बात उन्होंने उजागर की वे भी जाहिर है नशे को खराब ही मानते होंगे तभी वे उनसे समर्थन मांगने गईं | लेकिन इस अभियान को जनता का साथ  मिले उसके पहले साध्वी को चाहिए वे भाजपा  कार्यकर्ताओं के बीच इस मुहिम को शुरू करें और उनसे शपथपत्र भरवाएं कि वे मद्यपान अथवा अन्य किसी  भी तरह के नशे से दूर रहेंगे | प्रमुख रूप से वे महिला नेत्रियों को इस अभियान से जुड़ने हेतु राजी करें |  इससे उनके अभियान को जन समर्थन मिलने में आसानी होगी तथा आगामी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ ही बाकी राजनीतिक दलों पर भी शराबबंदी को अपने घोषणापत्र में शामिल करने का दबाव बनेगा | शराब को आज भी हमारे देश में सामाजिक तौर पर जन स्वीकृति नहीं मिली | भले ही बड़े तबके में उसका चलन बढ़ने के साथ ही  अभिजात्य वर्ग में वह प्रतिष्ठा सूचक बन गयी है | सांसद प्रज्ञा ठाकुर का ये कहना  सही मान भी लें कि सीमित मात्रा में दवाई का काम करने वाली शराब लत बन जाने के बाद जहर बन जाती है किन्तु  सवाल ये है कि ऐसे कितने विवेकशील और अनुशासित लोग हैं जो इसे बतौर दवा उपयोग करते हैं | अनेक चिकित्सकीय शोध भी चिकित्सक द्वारा सुझाई  गई मात्रा में शराब के सेवन को स्वास्थ्य के लिए अच्छा बताते हैं लेकिन इस अनुशासन का ज्यादातर लोगों द्वारा पालन नहीं किया जाना आम बात है | आधुनिक दिखने की होड़ में जिस पेज थ्री संस्कृति ने समाज में प्रवेश किया है उससे प्रभावित वर्ग में महिलाएं और किशोरावस्था  के बच्चे भी मद्यपान करते दिखाई देते हैं | राजनीतिक दल भी इससे अछूते नहीं रहे | वरना महात्मा गांधी की राजनीतिक विरासत की सबसे बड़ी दावेदार कांग्रेस ने देश  आजाद होते ही मद्यनिषेध लागू कर बापू के आदर्शों को मान्यता दी होती | बाकी दलों में भी गांधी जी को मानने वाले बहुत नेता है लेकिन उनमें से कुछ अपवादों को छोड़ किसी ने भी शराबबंदी के लिए आन्दोलन करना जरूरी नहीं समझा | ऐसे में सुश्री भारती जो दुस्साहस करने जा रही हैं वह जनता के मन में तभी जगह बना सकेगा जब वे अपनी पार्टी के लोगों विशेष रूप से युवा कार्यकर्ताओं को शराब से दूर रहने के लिए प्रेरित कर सकें | भाजपा भी चूँकि अन्य राजनीतिक दलों की तरह ही होती जा रही है इसलिए उससे जुड़ने में शराब जैसी चीज बाधक नहीं बनती | अनेक जनप्रतिनिधि तो शाम के साथ ही जाम लेकर बैठने के लिए कुख्यात है | चूंकि पार्टी द्वारा इस पर कोई रोक नहीं लगाई गई इसलिए पीने वालों में कोई झिझक या अपराधबोध भी  नहीं है | ये देखते हुए प्रदेश में शराबबंदी का अभियान प्रारम्भ करने के साथ ही उमाश्री को सबसे पहले भाजपा में अपना समर्थक वर्ग तैयार करना चाहिए | ऐसा करने पर उनके अभियान को चुनावी राजनीति में  प्रवेश का तरीका कहने वालों को तो जवाब मिलेगा ही इस प्रयास की सार्थकता और प्रामाणिकता पर भी कोई संदेह नहीं रहेगा | कोरोना की तीसरी लहर के कारण इस अभियान में जनभागीदारी के साथ ही राजनीति से परे  लोगों की सक्रियता को  कठिन मानते हुए सुश्री भारती ने स्वीकार किया कि अन्य बाधाएं भी हैं | परन्तु बाहरी लोगों से अपेक्षा करने की बजाय यदि वे भाजपा और उससे जुड़े संगठनों में बैठे अपने समर्थकों को शराबबंदी के पक्ष में मुखर कर सकें तो इस प्रयास की सफलता को लेकर उम्मीद की जा सकती है | और फिर उमाश्री का अस्थिर स्वभाव देखते हुए वे इस मुहिम को बीच में ही छोड़कर कब दूसरे किसी मुद्दे को हाथ में ले बैठें ये कहना मुश्किल है | इसका प्रमाण चुनावी राजनीति को अलविदा कहने के बाद दोबारा चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त किये जाने से मिलता है | ये प्रश्न भी स्वाभाविक रूप से उठ खड़ा होता कि इसके पहले साध्वी को शराबबंदी की जरूरत महसूस क्यों नहीं हुई जबकि थोड़े समय तक वे खुद भी प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी थीं | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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