Wednesday 19 January 2022

शराब सस्ती करने वाले शायद भूल गये कि म.प्र में पेट्रोल-डीजल भी महंगा है



शायद ही कोई राजनीतिक दल अपने चुनाव घोषणापत्र में शराब सस्ती करने का वायदा करता होगा। म.प्र की सत्ता में आने के पहले भाजपा ने बिजली, पानी और सड़क को लेकर तो खूब वायदे किये थे लेकिन शराब सस्ती करने जैसा कोई आश्वासन शायद ही दिया हो। लेकिन गत दिवस म.प्र सरकार ने आगामी वित्तीय वर्ष के लिए जो आबकारी नीति तय की उसमें अंग्रेजी और देशी दोनों शराब सस्ती करने के प्रावधान के साथ ही घर में बार खोलने के साथ ही शराब रखे जाने की मात्रा भी बढ़ा दी है। शराब बनाने और बेचने के बारे में कुछ और निर्णय भी किये गये हैं। शराब सस्ती करने का मुख्य कारण पड़ोसी राज्यों से होने वाली तस्करी को रोकना बताया गया है। इसी के साथ ही प्रदेश सरकार ने घरेलू हिंसा में दिव्यांग हो गई महिलाओं को 2 से 4 लाख तक का मुआवजा देने के साथ ही अदालती खर्च देने का निर्णय भी किया। शराब सरकार की कमाई का बड़ा जरिया होता है। कुछ राज्यों को छोड़कर बाकी में इसकी बिक्री धड़ल्ले से की जाती है। अतीत में कुछ राज्यों ने शराबबंदी का जोखिम उठाया किन्तु बाद में कदम पीछे खींच लिए। लेकिन गांधी के गुजरात और जयप्रकाश के बिहार में मद्यनिषेध लागू है। बिहार में कुछ साल पहले नीतीश कुमर ने महिलाओं की मांग पर ये निर्णय किया था। पिछला विधानसभा चुनाव जीतने में उन्हें महिलाओं का काफी समर्थन भी मिला। कुछ साल पहले शिवराज सरकार ने भी प्रदेश में राजमार्गों और पवित्र नदियों के करीब शराब बेचने पर रोक लगाई थी। नई शराब दुकानें न खोलने  की बात भी अक्सर सुनाई देती है। लेकिन शराब सस्ती करने, घर में उसे रखने की मात्रा बढ़ाने, एक करोड़ से ज्यादा आय वालों को घर में बार खोलने जैसे फैसलों के साथ ही घरेलू हिंसा में दिव्यांग हुए महिलाओं को मुआवजा देने जैसा फैसला विरोधाभासी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बड़े ही सात्विक व्यक्ति हैं। दर्शनशास्त्र के मेधावी विद्यार्थी होने से धर्म  और आध्यात्म के अच्छे ज्ञाता भी हैं किन्तु शराब को लेकर उनकी सरकार ऐसा कुछ न कर सकी जिससे लगता कि वह इस बुराई को खत्म करने या कम करने के प्रति संकल्पबद्ध है। उनके मंत्रीमंडल में कुछ महिलाएं भी हैं जो सामाजिक जीवन में सक्रिय रहने के दौरान इस वास्तविकता से भली-भांति परिचित होंगीं कि घरेलू हिंसा का एक प्रमुख कारण शराबखोरी भी है। विशेष रूप से निम्न आय वर्गीय परिवारों में तो ये समस्या बहुत है। मनरेगा के अस्तित्व में आने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में भी शराब की बिक्री में वृद्धि ने महिलाओं पर घरेलू हिंसा की घटनाओं में वृद्धि की है। हालाँकि इनमें से ज्यादातर लोक-लाज में दबी रह जाती हैं। आर्थिक निर्भरता के कारण महिला के सामने प्रतिरोध का विकल्प भी नहीं रहता। उस दृष्टि से शिवराज सरकार ने घरेलू हिंसा में दिव्यांग होने वाली महिलाओं को आर्थिक क्षतिपूर्ति देने का जो फैसला किया वह उसकी सम्वेदनशीलता का परिचायक है लेकिन इसी के साथ ही शराब को सस्ती करने और उसके घर में रखे जाने की  सीमा बढ़ाने  और  घर को बार बनाने की सुविधा से तो शराबखोरी और घरेलू हिंसा में वृद्धि होना अवश्यंभावी है। इसके अलावा परिवार के किशोर और युवाओं पर भी बुरा असर पड़े बिना नहीं रहेगा। ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री और उनके मंत्रीमंडलीय साथी शराब के दुष्प्रभावों से अपरिचित हों। अपराध और भ्रष्टाचार बढ़ाने में भी नशे का कारोबार सहायक है। बावजूद इसके कभी महिलाओं के लिए अलग शराब दूकान खोलने की चर्चा होती है तो कभी घर-घर शराब पहुँचाने की बात सुनाई देती है। इन सबसे शराब का उपयोग कम होने की बजाय और बढ़ेगा ही। इस कदम के पीछे सरकार ने पड़ोसी राज्यों की तुलना में म.प्र में शराब महंगी होने का जो तर्क दिया है वह हास्यास्पद है क्योंकि इस आधार पर तो सबसे पहले  प्रदेश में पेट्रोल-डीजल सस्ता करना चाहिये था। उल्लेखनीय है उ.प्र में पेट्रोल-डीजल म.प्र की तुलना में 8 से 10 रु. प्रति लिटर सस्ता है। इस कारण सीमावर्ती जिलों के लोग उ.प्र जाकर पेट्रोल-डीजल खरीदते हैं। वहीं म.प्र में आने या जाने वाले यात्री और व्यावसायिक वाहन चालक इस बात का ध्यान रखते हैं कि वे उ.प्र में ही अपने वाहन की टंकी पूरी भरवा लें। वैसे भी पेट्रोल-डीजल वे चीजें हैं जिनका उपयोग हर वर्ग के द्वारा किया जाता है और जो अर्थव्यवस्था को सीधे प्रभावित करती हैं। ये देखते हुए सरकार चलाने वाले नेता और उनके मातहत कार्य करने वाले नौकरशाह इस बात को अच्छी तरह समझते होंगे कि शराब पीने वालों के कारण जहां उनके परिवार की आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ता है वहीं पेट्रोल-डीजल सस्ता होने से परिवार को होने वाली बचत से लोगों का जीवन सुधरता है। इसलिए सरकार को सस्ता करना ही था तो बजाय शराब के यदि वह पेट्रोल डीजल सस्ता करती तो पूरे प्रदेश में ही नहीं अपितु दूसरे राज्यों की जनता भी उसकी प्रशंसा करती। लेकिन ऐसा लगता है सरकार में बैठे महानुभावों को बढ़ती महंगाई से नशाखोरों को हो रही परेशानी की ज्यादा चिंता है किन्तु उस जनता की नहीं जिसका महंगा पेट्रोल और डीजल खरीदते-खरीदते तेल निकला जा रहा है। उल्लेखनीय है म.प्र उन राज्यों में से हैं जहां ये चीजें सबसे ज्यादा महंगी हैं। इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमाश्री भारती ने हाल ही में प्रदेश में शराब बंदी हेतु अभियान चलाने की बात कही थी। इसे उनका दोबारा सक्रिय राजनीति में आगमन का संकेत भी कहा गया। लेकिन इसी के साथ स्मरणीय है कि जब मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के राज में खजुराहो में विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए कैसिनो खोलने का प्रस्ताव आया तब सुश्री भारती ने उसका जबरदस्त विरोध किया और पूरी भाजपा दिग्विजय पर चढ़ बैठी थी। आश्चर्य की बात है उसी भाजपा की सरकार प्रदेश में शराब की बिक्री बढ़ाने के लिए उसके दाम घटाने नीतिगत निर्णय ले रही है। घरों में शराब रखने की मात्रा बढ़ाने और बड़ी आय वालों को बार खोलने की अनुमति भी समझ से परे है। बेहतर होगा शिवराज सरकार और भाजपा सार्वजनिक तौर पर ये घोषित करें कि उनकी नजर में शराब अच्छी है या बुरी? रही बात उससे होने वाली आय से तो फिर उसका सामाजिक पक्ष भी देखना चाहिए क्योंकि उसके कारण होने वाले अपराधों पर नियन्त्रण रखने में सरकार का जो खर्च होता है वह भी कम नहीं है। और यदि शराब को सस्ती कर दूसरे राज्यों से होने वाली तस्करी को रोककर सरकार अपनी कमाई बढ़ाना चाहती है तब उसे नशा मुक्ति केन्द्रों पर ताला डाल देना चाहिए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment