सूर्य नमस्कार को लेकर आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने एक बार विरोध में आवाज उठाई है | उसके महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा है कि आजादी के अमृत महोत्सव पर आयोजित सूर्य नमस्कार के कार्यक्रम में मुस्लिम छात्र हिस्सा न लें | बोर्ड के प्रवक्ता ने भी श्री रहमानी के मत का समर्थन करते हुए कहा कि सूर्य नमस्कार के अंतर्गत लगाये जाने वाले आसन चूँकि सूर्य की आराधना हैं और इस्लाम में अल्लाह के अलावा अन्य किसी की पूजा नहीं की जाती इसलिए मुस्लिम छात्रों को सूर्य नमस्कार की अनुमति नहीं है | हालाँकि इसके विरोध में मुस्लिम समाज के भीतर से भी आवाजें आईं हैं | जिनमें कहा गया है कि सूर्य नमस्कार शरीर के लिए लाभदायक एक व्यायाम है जिसे करते समय सूर्य संबंधी मंत्र बोलना भी अनिवार्य नहीं है | नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद योग को प्रोत्साहित करने के लिए जो प्रयास हुए उसी के कारण संरासंघ ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया | अनेक देशों में इसके प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की गई है | लेकिन हमारे देश में एक तबका इस व्यायाम में भी धर्म का तड़का लगाने से नहीं चूकता | इस्लाम में सूर्य की बजाय चाँद को महत्व दिया जाता है जिससे किसी को आपत्ति भी नहीं है | इस मजहब में अनेक ऐसी बातें हैं जो अन्य किसी भी धर्म में नहीं देखी जातीं | एक ही धर्म का पालन करने वालों के रीति – रिवाजों में भी अंतर होता है | उस दृष्टि से यदि मुस्लिम सूर्य उपासना नहीं करते तो ये उनका अपना मामला है | लेकिन व्यायाम के किसी तरीके को धर्म के नाम पर नकारना बुद्धिमत्ता नहीं कही जा सकती | सूर्य और चंद्रमा को सभी धर्म अपने – अपने दृष्टिकोण से देखते हैं | इस्लाम में चंद्रमा के आधार पर त्यौहार और तिथियाँ तय होती हैं | लेकिन सूर्य समूचे ब्रह्माण्ड में ऊर्जा का ऐसा स्रोत है जिसकी वजह से पूरी सृष्टि संचालित होती है | इस्लाम के अनुयायी देश पाकिस्तान या सऊदी अरब में भी सुबह तभी होती है जब सूर्य का उदय होता है | किसी भी धर्म या देश में सूर्योदय के बाद ही दैनिक जीवन की गतिविधियाँ प्रारंभ होती हैं | यहाँ तक कि पशु – पक्षी तक उसके बाद ही सक्रिय होते हैं | कुछ साल पहले दिन के समय पूर्ण सूर्य ग्रहण होने के कारण कुछ देर के लिए रात का एहसास हुआ तब पक्षी भी हतप्रभ होकर अपने ठिकानों पर लौटते देखे गये थे | सही बात तो ये है कि पृथ्वी के सृजन के पहले भी सूर्य और अन्य गृह अस्तित्व में थे | मनुष्य की उत्पत्ति उसके बाद हुई और धर्म तो बहुत बाद में आई चीज है | इस्लाम तो सबसे बाद में अस्तित्व में आया | ऐसे में सूर्य नमस्कार नामक व्यायाम को इस्लाम विरोधी बताने वालों को धर्म का कितना ज्ञान है ये विचारणीय प्रश्न है | समूची दुनिया में जो मुर्गा पाया जाता है वह सूर्योदय पर ही बांग देता है | वहीं उल्लू और चमगादड़ रात के अँधेरे में विचरण करने वाले प्राणी हैं | ऐसे में क्या एक को सूर्य पूजक और दूसरों को चन्द्रमा उपासक के तौर पर विभाजित किया जा सकता है | सवाल और भी हैं लेकिन उनका जवाब तभी दिया जा सकेगा जब मन साफ़ हो | मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को यदि व्यायाम में भी धर्म नजर आ रहा है तब तो उसे भारतीय शास्त्रीय संगीत की उन राग – रागिनियों का भी विरोध करना चाहिए जिनका मुसलमान संगीतकार और गायक उपयोग करते हैं | सूर्य नमस्कार के अलावा भी अनेक ऐसी बातें हैं जिनको इस्लाम विरोधी ठहराकर मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड मुसलमानों को उनका पालन करने से रोक सकता है | लेकिन ऐसा करना मुस्लिमों के हित में नहीं होगा और वे मुख्य धारा से कटे रहेंगे | भारत में कट्टरता के समर्थक मुस्लिम संगठनों को इस्लाम के सबसे बड़े संरक्षक सऊदी अरब से कुछ सीखना चाहिए जहाँ शाही परिवार ने समाज को कठमुल्लेपन से मुक्ति दिलाने की शुरुआत कर दी है | महिलाओं को कार चलाने , खेलकूद में हिस्सा लेना , अकेले विदेश यात्रा करने की छूट देने के साथ ही शादी के लिए पिता की अनुमति जैसी बंदिश हटा ली | पड़ोसी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी हाल ही में अशरा-ए रहमतुल-इल-अलामीन कांफ्रेंस में कहा कि विद्यार्थियों और युवाओं को अन्य धर्मों के बारे में भी पढ़ाया जाना चाहिए | उल्लेखनीय है उक्त दोनों देश कट्टर इस्लामी हैं | हालाँकि भारत के मुस्लिम समाज में अनेक सुधारवादी लोग खुलकर सामने आने लगे हैं | युवक – युवतियों में धर्म के साथ आधुनिकता और शिक्षा के प्रति रुझान भी बढ़ रहा है | लेकिन मुस्लिम संगठन अभी भी सीमित दायरे से निकलने की मानसिकता नहीं बना पा रहे | सूर्य नमस्कार को सूर्य की आराधना से जोड़ना एक अच्छी चीज से अपने समुदाय को वंचित करना है | जिस तरह किसी मजार पर जाने से हिन्दू व्यक्ति का धर्म परिवर्तन नहीं हो जाता उसी तरह कोई मुसलमान सूर्य नमस्कार व्यायाम कर लेने मात्र से काफ़िर हो जायेगा , ये मान लेना दिमागी दिवालियेपन का ही प्रतीक है | कभी वन्दे मातरम तो कभी सूर्य नमस्कार का विरोध कर मुस्लिम संगठन और उनके पदाधिकारी अपने समाज को अलग - थलग रखने का षडयंत्र इसलिए रचा करते हैं जिससे उनका रूतबा कायम रहे | यही लोग हैं जिनकी वजह से मुस्लिम समाज नेतृत्वविहीन होकर ऐसे दलों का बंधुआ बन जाने मजबूर है जो चुनावी सफलता के लिए उपयोग करने के बाद उसको बदहाली में जीने छोड़ देते हैं | मुसलमानों की नई पीढ़ी को ये सोचना चाहिए कि समय के साथ चले बिना वे विकास नहीं कर पाएंगे | धर्म का पालन बुरा नहीं है लेकिन कालातीत हो चुकी कुरीतियों से बंधे रहने से प्रगति रुक जाती है | भारत के मुसलमान आजादी के सात दशक बाद भी अगर अशिक्षित और अच्छे जीवन स्तर से वंचित हैं तो उसकी मुख्य वजह वे संगठन हैं जो किसी भी सुधारवादी प्रयास को इस्लाम विरोधी बताकर लागू होने से रोक देते हैं | भारत में हिन्दू बाहुल्य के बावजूद मुस्लिम , ईसाई और पारसी भी रहते हैं | वैसे तो जैन , बौद्ध और सिख भी अपने को अल्पसंख्यक मानते हैं किन्तु उनका हिन्दू धर्म से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रिश्ता है | इन सबके बीच तुलनात्मक विश्लेषण किया जावे तो सबसे पिछड़े मुस्लिम ही हैं | उनमें शिक्षा का प्रसार नहीं हो पाना इसका कारण है | आजादी के पहले मुस्लिमों के सामाजिक नेताओं द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम विवि की स्थापना के पीछे जो दूरदर्शिता दिखाई थी उसे आजादी के बाद उपेक्षित कर दिया गया | कहने को तो देश में सरकारी खर्च पर चलने वाले लाखों मदरसे हैं लेकिन उनमें दी जा रहे शिक्षा प्रगतिशीलता को रोकने का साधन बनकर रह गयी | ऐसा नहीं है कि बाकी धर्मों में कट्टर सोच रखने वाले न हों | लेकिन उनका विरोध करने वाले भी कम नहीं मिलेंगे जबकि मुस्लिम समाज के भीतर किसी भी नई बात को अपनाने का जो विरोध होता है उसकी मुखालफत करने वाले साहसी गिने - चुने ही हैं |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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