Monday 31 January 2022

बजट : जनता को भाषण नहीं राहत चाहिए



आज से संसद का बजट सत्र प्रारंभ हो रहा है | वैसे तो सभी सत्र महत्वपूर्ण होते हैं लेकिन इस सत्र का सम्बन्ध देश की अर्थव्यवस्था और लोगों की आय और खर्च से होता है इसलिए इस पर समाज के हर वर्ग की निगाह रहती है | वर्ष 2021 में आये बजट पर कोरोना की काली छाया थी | आर्थिक मोर्चे पर जबरदस्त निराशा  और अनिश्चितता के बीच बजट बनाना ही  दुष्कर कार्य था किन्तु वह एक संवैधानिक आवश्यकता है जिसे टालना संभव न होने से उसे पूरा करना पड़ता है | सौभाग्य से इस साल कारोबारी जगत से आने वाले संकेत बीते दो वर्षों की तुलना में बेहद उत्साहजनक हैं | यद्यपि अभी भी कोरोना का असर पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है लेकिन ये कहना गलत न होगा कि आर्थिक मोर्चे पर खोया हुआ आत्मविश्वास न सिर्फ लौटा है अपितु उसमें पूर्वापेक्षा वृद्धि भी हुई है | तीसरी लहर के रूप में आये संकट की तीव्रता कम होने से उद्योग – व्यापार में रौनक लौटती नजर आने लगी  है | उपभोक्ताओं के उत्साहजनक संकेतों से  बाजारों में रौनक दिखाई देने लगी  है | दो साल से ठन्डा पड़ा पर्यटन उद्योग भी  गुलजार हुआ है | लेकिन ये बात भी स्वीकार करनी होगी कि इस दौरान महंगाई में भी जबरदस्त वृद्धि हुई है | घटते रोजगार और बढ़ती कीमतों ने आम जनता  का कचूमर निकालकर रख दिया है | कोरोना काल में बड़ी संख्या में नौकरियां चली गईं । निजी क्षेत्र ने  कार्यरत कर्मचारियों के वेतन – भत्ते कम कर दिए | निश्चित रूप से सरकार को भी राजस्व की कमी से जूझना पड़ा और ऊपर से राहत कार्यों पर उसे अतिरिक्त खर्च करना पड़ा | लेकिन ज्यों – ज्यों कोरोना का असर कम हो रहा है त्यों – त्यों आर्थिक स्थिति भी कुलांचे भरने को बेताब है | ऐसे में कल मंगलवार को पेश होने वाले केन्द्रीय बजट पर न सिर्फ देश वरन पूरे विश्व की नजरें लगी हैं | वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण निश्चित तौर पर बीते वर्ष के दबाव से काफी मुक्त होंगीं किन्तु प्रधानमन्त्री के मन पर  उ.प्र सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का बोझ जरूर है | और इसीलिये बीते कुछ दिनों से ये सुनने में आ रहा है कि बजट में अर्थव्यवस्था को बूस्टर डोज लगाने के साथ ही आम जनता के लिए भी राहत का इंतजाम किया जावेगा | ये आयकर छूट की सीमा बढ़ाये जाने के रूप में होगा  या किसी और रूप में ये तो साफ़ नहीं है लेकिन सरकार को इस बात का ध्यान रखना ही होगा कि कारोबार जगत को बीते दो वर्ष में जितने झटके लगे हैं उनसे उसे उबारने के पुख्ता प्रबंध बजट में  किये जावें जिससे कि रोजगार में आ रही गिरावट को रोका जा सके | ये इसलिए जरूरी हो गया है क्योंकि जिन युवाओं को दुनिया भर में प्रधानमन्त्री भारत की बड़ी ताकत बताते हैं वह  बिना काम के तनाव में आकर आपा खोने लगा है | इसी के साथ ही किसान आंदोलन के बहाने ग्रमीण क्षेत्रों में सरकार के बारे में नकारात्मक छवि बनाने का जो अभियान चल रहा है उससे निपटने के लिए बजट में ऐसा कुछ करना आवश्य्क है जिससे किसान समुदाय के मन को शांति मिले | दुनिया भर के आर्थिक विशेषज्ञ मौजदा वित्तीय वर्ष में अर्थव्यवस्था के बेहतरीन प्रदर्शन की जो बात कह रहे हैं वह सरकार का हौसला बढ़ाने वाली है | जीएसटी के रूप में आने वाला कर संग्रह उम्मीद के  मुताबिक होने से भी बजट में मिठास घोली जाने की गुंजाईश है | लेकिन ये तभी होगा जब बजट को शुष्क सिद्धान्तवादिता के बजाय व्यवहारिक जमीनी सच्चाइयों से प्रेरित रखा जावे | उस दृष्टि से वित्तमंत्री को कितनी छूट मिलेगी ये कहना कठिन है क्योंकि बजट पेश भले ही वे करती हों लेकिन उसे बनाने का असली काम वे नौकरशाह करते हैं जिनका आम जनता से जुड़ाव खत्म सा हो चुका होता है और जिनकी नजर में आंकड़ो की फसल ही खुशहाली का द्योतक होती है | ये देखते हुए प्रधानमंत्री से भी  अपेक्षा है कि वे बजट को अंतिम रूप देते समय इस बात का ध्यान रखें कि वित्तमंत्री नहीं बल्कि वे ही इस सरकार का चेहरा हैं और इसीलिये इसे  मोदी सरकार कहा जाता है | चूंकि उनकी  कार्यप्रणाली भी शक्तियों के केन्द्रीकरण पर आधारित है इसलिए जिस तरह से उपलब्धियों का  श्रेय वे लूटते हैं उसी तरह नाकामियां और जनता का गुस्सा भी किसी  अन्य के बजाय उन्हीं के खाते में आता है | जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं वहां भी श्री मोदी ही भाजपा के तारणहार होंगे | सबसे बड़ी बात ये है कि जिस उ.प्र ने उनको दो बार सत्ता में पहुँचाया वहां इस बार मुकाबला काफी कड़ा बताया जा रहा है | किसान आन्दोलन के कारण भाजपा की सोशल इन्जीनियरिंग  भी खतरे में है |  ये देखते हुए बजट इन चुनावों पर सीधा असर डालने वाला होगा | चूँकि नया वित्त्तीय वर्ष चुनाव संपन्न होने के बाद शुरु होगा इसलिए बजट में दी जाने वाली राहतों का लाभ  जनता को तत्काल नहीं मिलने वाला | वैसे भी बजट का तकनीकी पक्ष कम ही  लोगों को समझ में आता है | ऐसे में ये जरूरी है कि श्रीमती सीतारमण केवल अच्छा बजट भाषण ही न दें अपितु उसके जरिये ऐसी राहतों का ऐलान करें जो आम जनता के साथ ही कारोबारी जगत को फ़ौरन और आसानी से समझ में आ जाए | ये बजट राष्ट्रीय और राजनीतिक दोनों ही दृष्टियों से बहुत महत्वपूर्ण है | इसी साल गुजरात और आगामी वर्ष म.प्र , राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होंगे तथा उनके 6 महीने बाद ही लोकसभा का महा - मुकाबला होगा | इसलिए  इस बजट में जनता के लिए उपदेश नहीं अपितु राहत का सीधा सन्देश होना चाहिए क्योंकि केंद्र सरकार ने अब तक जो कुछ भी किया उसका पुरस्कार जनता उसे दे चुकी है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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