Friday 31 December 2021

जीएसटी सरकारी मुनाफाखोरी का जरिया बना : एक देश , एक कर , एक दर का सपना अधूरा



 जुलाई 2017 से लागू हुई जीएसटी नामक एकीकृत कर प्रणाली का कितना लाभ हुआ ये आकलन करना समय की मांग है | एक देश एक टेक्स के नारे से ओतप्रोत यह व्यवस्था  लागू किये जाने के बाद राज्यों को अनेक प्रकार के करों को रद्द करना पड़ा  | उसके एवज में उन्हें पाँच वर्ष तक केंद्र द्वारा क्षति पूर्ति किये जाने का निर्णय भी किया गया था | दरअसल इस प्रणाली को जमीन पर उतारने के लिए राज्यों  के वित्तमंत्रियों की  एक  काउन्सिल बनाई गई थी | उसने लम्बे विचार – विमर्श के बाद जो ढांचा बनाया उसी के अनुसार इस कर प्रणाली को लागू किया गया जिसका उद्देश्य विभिन्न राज्यों में करों के अंतर को खत्म कर उपभोक्ता को लाभान्वित करने के साथ ही पारदर्शिता लाना था | हालाँकि इसे अपनाने में व्यापारी और उद्योगपति वर्ग को अनेकानेक परेशानियां उठानी पड़ीं | सरकार द्वारा जिस तेजी से नियमों , शर्तों , तथा दरों में बदलाव किये गये  उससे जबरदस्त अनिश्चितता बनी रही | वैसे प्रारम्भिक तौर पर ऐसा होना लाजमी भी था लेकिन इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि जीएसटी की दरों के साथ ही उसमें शामिल होने या बाहर रखी जाने वाली वस्तुओं को लेकर आज तक उहापोह कायम है और  साढ़े चार साल बीत जाने के बाद भी  काउंसिल किसी ऐसे मुकाम पर नहीं पहुंच सकी  जिससे ये कहा जा सके कि अब लम्बे समय तक  दरों के अलावा उसे जुड़ी प्रक्रियाओं में कोई बदलाव नहीं होगा | आज फिर काऊंसिल की बैठक है जिसमें करों के चार स्तरों की बजाय तीन किये जाने के साथ ही कुछ वस्तुओं पर  दरों में घटा - बढ़ी की सम्भावना व्यक्त की गई है | ये कहना गलत न होगा कि इस प्रणाली से कर चोरी काफी हद तक रुकी है और केंद्र सरकार को अपेक्षित राजस्व भी मिल रहा है | विभिन्न राज्यों के करों में विभिन्नता समाप्त होने से उनकी सीमाओं पर बने नाकों में होने वाले भ्रष्टाचार में भी कमी आई है | यद्यपि सरकारी अमले और कर चोरों के बीच संगामित्ति की खबरें भी आने लगी हैं लेकिन प्रति माह के आंकड़ों से ये साबित हो गया है कि जीएसटी केंद्र सरकार के लिए तो फायदेमंद है परन्तु  इससे राज्यों की समस्या बढ़ गईं क्योंकि  उनको जिस क्षतिपूर्ति का वायदा किया गया था वह समय पर नहीं मिलती | गत दिवस वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बजट पूर्व चर्चा हेतु   जो बैठक हुई उसमें अधिकतर राज्यों के प्रतिनिधियों ने ये मांग कर डाली कि क्षति पूर्ति का प्रावधान पाँच साल और बढ़ाया जावे |इसके पीछे ये तर्क दिया गया कि कोरोना के कारण उत्पन्न हालातों के कारण अर्थव्यवस्था जिस तरह डगमगाई  उसकी वजह से उनकी आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ा है | उनकी मांग तर्कसंगत तो  है ही तथ्यपूर्ण भी है | आज हो रही  काउंसिल की बैठक में भी  इस बारे में  केंद्र की घेराबंदी होना तय है लेकिन मुख्य मुद्दा कुछ वस्तुओं पर कर बढ़ने और घटने के अलावा 5 फीसदी की दर समाप्त कर केवल 12 , 18 और 28 फीसदी रखना है | निष्पक्ष आकलन करने पर जीएसटी की तमाम अच्छाइयों के बीच जो सबसे बड़ी बुराई देखने में मिली वह है दरों की विभिन्न पायदानों के अलावा पेट्रोलियम पदार्थों को  जीएसटी से बाहर रखा जाना | जो राज्य काउंसिल की बैठक में अपने राजस्व के नुकसान का रोना रोते हैं वे जनता की परेशानियों के प्रति जिस तरह असंवेदनशील बने रहते हैं उसे  देखकर ये कहा जा सकता है कि सैद्धांतिक मतभेदों के बावजूद जनता के शोषण में  सब एक हैं | जिन देशों में जीएसटी काफी पहले से लागू है उनमें से अधिकतर ने करों की एक या अधिकतम दो दरें ही रखी हैं | विलासिता की चीजों पर अधिक करारोपण पर किसी को आपत्ति नहीं होती किन्तु आम जनता के दैनिक उपयोग की चीजों पर भी भारी - भरकम जीएसटी थोपना उसके प्रति अन्याय नहीं तो और क्या है ? यदि जीएसटी काउंसिल को जनता के प्रति जरा सी भी हमदर्दी है तो उसे एक देश एक कर और एक दर के सूत्र को लागू करने का साहस दिखाना चाहिए | बहरहाल विलासिता की वस्तुओं पर अधिभार लगाकर राजस्व बढ़ाया जा सकता है | इसी तरह पेट्रोल , डीजल सहित अन्य पेट्रोलियम वस्तुओं को जीएसटी के अंतर्गत लाकर आम जनता के कन्धों पर पड़ रहे बोझ को कम करना राष्ट्रीय अपेक्षा है | कोरोना काल के बाद अर्थव्यवस्था जिस तेजी से पटरी पर लौट रही है और उद्योग , व्यापार जगत के साथ ही उपभोक्ता बाजार में उत्साह नजर आ रहा है उसके चलते उक्त दोनों मांगों पर काउंसिल को विचार करना चाहिए क्योंकि कर प्रणाली में किया गया ये बदलाव सरकार का खजाना भरने के उद्देश्य के साथ ही आम उपभोक्ता को करों की विसंगतियों से बचाकर राहत देने के लिए  था | अभी तक जो देखने में आया है उसके अनुसार सरकार के खजाने में तो  अपेक्षित राजस्व आने लगा है  | कोरोना काल में सरकार के सामने जो आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ उस दौरान जनता ने भी धैर्य रखते हुए कोई दबाव नहीं बनाया | लेकिन  अब जबकि खुद सरकार ये दावा करने में जुटी है कि आर्थिक मोर्चे पर भी कामयाबी के कारण विकास दर 9 फीसदी होने की संभावना बढ़ती जा रही है तब  आम उपभोक्ता उससे  ये उम्मीद करता है कि  आसमान छूती महंगाई से राहत दिलवाने के लिए जीएसटी की दरें घटाए जाने के साथ ही अधिकतम दो पायदानें ही रखी जावें | सबसे बड़ी मांग जनता के हर वर्ग की है पेट्रोल – डीजल आदि को जीएसटी के अंतर्गत लाने की क्योंकि महंगाई का सबसे बड़ा स्रोत यही है |  आज होने वाली बैठक केन्द्रीय बजट के पूर्व होने से उसके निर्णयों का असर श्रीमती सीतारमण द्वारा पेश किये जाने वाले आगामी बजट पर पड़ना स्वाभाविक ही है | रही बात काउंसिल की स्वायत्तता को बनाये रखने की तो लगभग डेढ़ दर्जन राज्यों में भाजपा या उसके अनुकूल सरकारें होने से यदि वह चाह ले तो जनहित के तमाम फैसले बहुमत से करवा सकती है | लेकिन इस बारे में अनेक तरह के विरोधाभास भाजपा शासित राज्यों के बीच भी देखने मिलते हैं | मसलन  उ.प्र और म.प्र में ही पेट्रोल – डीजल के दामों में 10 रु. प्रति लिटर का बड़ा अंतर है | स्मरणीय है केंद्र सरकार ने दीपावली के तोहफे के तौर पर इन दोनों पर करों में कमी की तो मजबूरन भाजपा राज्यों ने भी उसमें सहयोग दिया | देखा - सीखी अन्य दलों की राज्य सरकारों को भी  वैसा करना पड़ गया | उसके बाद से अर्थव्यवस्था में और सुधार हुआ है जिसे देखते हुए जीएसटी काउंसिल को कल से शुरू होने जा रहे नव वर्ष पर आम जनता को ऐसा उपहार देना चाहिए जिससे वह राहत अनुभव कर सके | पता नहीं सत्ता में बैठे राजनेताओं को ये बात कब समझ में आयेगी कि करों की कम दरें उनकी चोरी रोकती हैं वहीं महंगाई पर नियन्त्रण होने से उपभोक्ता की क्रय शक्ति में होने वाला इजाफा अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी



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