Thursday 23 December 2021

राम धाम में लूट है, लूट सके तो लूट : अयोध्या से पहले अपने विकास की वासना




अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जोरशोर से चल रहा है। इसी के साथ इस प्राचीन नगरी के चौतरफा विकास की परियोजना पर भी काम शुरू कर दिया गया है। वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तरह ही अयोध्या को भी वैश्विक स्तर का तीर्थ स्थल बनाने की महत्वाकांक्षा केंद्र सरकार की है। अयोध्या उ.प्र के सबसे पिछड़े इलाकों में रहा है। राम जन्मभूमि विवाद के कारण इसकी चर्चा भले ही दुनिया भर में हो गई और राष्ट्रीय राजनीति में ये मुद्दा बड़े बदलाव का आधार भी बना लेकिन सनातन धर्म के अनुयायियों के आराध्य भगवान राम की ये नगरी विकास की दृष्टि से आज भी पिछड़ी हुई ही है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राम जन्मभूमि प्रकरण का फैसला किये जाने के बाद विवादित भूमि हिन्दुओं को मिलते ही अनिश्चितता खत्म हो गई और मंदिर निर्माण का काम भी जोरशोर से शुरू हो गया। इसी के साथ अयोध्या में वे सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाने की योजना भी बनी जिनसे धार्मिक पर्यटन बढ़े। हवाई अड्डा, रेलवे स्टेशन, चारों तरफ  उच्चस्तरीय राजमार्गों का निर्माण, होटल आदि इसमें शामिल हैं। राम जन्मभूमि मुद्दे ने दुनिया भर में फैले हिन्दुओं के मन में अयोध्या आने की जो उत्कंठा पैदा की उसके मद्देनजर आने वाले कुछ सालों के भीतर ये शहर दुनिया भर के सैलानियों की पसंद बनना निश्चित है। इस कारण से देश भर के होटल व्यवसायी और बिल्डरों ने अयोध्या में जमीनें खरीदने में रूचि दिखाई जो नितांत स्वाभाविक है। लेकिन ऐसा हो पाता उसके पहले ही स्थानीय राजनेताओं के अलावा प्रशासन और पुलिस के तमाम अधिकारियों ने बिना देर लगाये सस्त्ती दरों पर जमीनें खरीद लीं। चूँकि यही वह वर्ग है जिसकी जानकारी में किसी क्षेत्र की विकास परियोजना का खाका सबसे पहले आता है इसलिए नेताओं और नौकरशाहों के पास मौके की जमीनें सस्ते दामों पर खरीदने का भरपूर अवसर रहता है। उस दृष्टि से अयोध्या में जो हुआ उसमें अनपेक्षित कुछ भी नहीं है। व्यवसाय करना हर किसी का मौलिक अधिकार है लेकिन राम जन्मभूमि से पहले अपना विकास करने की वासना निश्चित रूप से पद का दुरूपयोग है। उ.प्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले की जांच करते हुए एक सप्ताह में रिपोर्ट माँगी है। जो जानकारी आई है उसके अनुसार अयोध्या के महापौर सहित एक विधायक और ओबीसी आयोग के सदस्य ने अपने नाम से महत्वपूर्ण स्थलों पर जमीनें खरीद डालीं , वहीं संभागायुक्त, डीआईजी, सूचना आयुक्त और एक विधायक के अलावा कुछ सेवा निवृत्त नौकरशाहों ने अपने रिश्तेदारों के नाम से भी जमीनों में भारी-भरकम निवेश किया है। मुख्यमंत्री के आदेश पर होने वाली जांच में यदि इसकी पुष्टि हो जाती है तब भी जमीनें खरीदने वालों के विरुद्ध कौन सा अपराध साबित होगा ये बड़ा सवाल है। यदि उनके द्वारा अपनी वैध कमाई से भूमि की खरीदी की गयी तब उसमें कुछ भी गलत नहीं कहा जा सकता। हालांकि रिश्तेदारों के नाम पर जमीनें खरीदने का मकसद काले को सफेद करना ही होता है। यदि निजी जमीनें खरीदी गईं तब उसमें किसी भी प्रकार की गलती शायद ही मिले लेकिन सरकारी भूमि का क्रय हुआ तब जरूर ये देखा जाना चाहिए कि समूची प्रक्रिया विधि सम्मत और निष्पक्ष थी या नहीं? वैसे इस समाचार से किसी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ होगा क्योंकि ये चलन पूरे देश में एक समान है। जमीन हथियाने के मामले में सभी राजनीतिक दलों के नेता और विभिन्न राज्यों के नौकरशाहों में जबरदस्त समानता है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है जैसा नारा ऐसे प्रकरणों में सटीक साबित होता है। देश की राजधानी दिल्ली के चारों तरफ  बने आलीशान फॉर्म हाउसों का सर्वेक्षण करने पर ये बात सामने आना तय है कि उनके मालिकों में बड़ी संख्या नेताओं और नौकरशाहों की ही है। आजकल शहरों के बाहर रिसॉर्ट और मैरिज गार्डन बनाने का व्यवसाय भी जोरों पर है। नेता और नौकरशाह इस बात को समय रहते जान लेते हैं कि शहर के बाहर किस इलाके का विकास होना है। इसके पहले कि विकास परियोजना सार्वजानिक हो वहां की महत्वपूर्ण जमीनों का सौदा हो चुका होता है। चूँकि जमीन ही वह चीज है जिसकी खरीद में काले धन का निवेश आसानी से संभव है इसलिए भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों की जुगलबंदी बिना शोर मचाये पीढ़ियों का इंतजाम कर लेती है। उस दृष्टि से अयोध्या में भी जमीनों की खरीदी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नेताओं और नौकरशाहों द्वारा की गई तो उसमें नया कुछ भी नहीं है। कटु सत्य ये है कि जमींदारी प्रथा भले ही कानूनी तौर पर समाप्त हो गई हो लेकिन जमीनी सच्चाई ये है कि जमींदारी मिटाने का दावा करने वाले ही नये जमींदार बन बैठे।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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